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डॉ डी के गर्ग
निवेदन : ये लेखमाला 20 भाग में है। इसके लिए सत्यार्थ प्रकाश एवं अन्य वैदिक विद्वानों के द्वारा लिखे गए लेखो की मदद ली गयी है। कृपय अपने विचार बताये और उत्साह वर्धन के लिए शेयर भी करें।
भाग-10
जैन मत में मूर्ति पूजा

जैन मत से पूर्व हमारे देश आर्यवर्त में मूर्ति पूजा बिलकुल भी नहीं, मूर्ति पूजा की शुरुआत जैनियों ने कराई।
मूर्ति पूजा के विषय में जैन मत क्या कहता है -देखें
”सन्ध्या समय के भोजन में जिनबिम्ब अर्थात् उनकी मूर्तियों का पूजना, द्वारपूजा में बड़े-बड़े बखेड़े और नियम, मन्दिर बनाने और पुराने मन्दिरों की मरम्मत करने से मुक्ति हो जाती है।
यह बीसवें पृष्ठ में और तेईसवें पृष्ठ में—
मन्दिर में इस प्रकार जावे, जाकर बैठे, बड़े भाव, प्रीति से पूजा करे। “नमो जिनेन्द्रेभ्यः” इत्यादि मन्त्रों से स्नानादि करावे, जल, चन्दनादि चढावे।
वैसे ही रत्नसारभाग के बारहवें पृष्ठ में मूर्त्तिपूजा का फल—पुजारी को राजा और प्रजा कोई न रोक सके।
तेरहवें पृष्ठ में—मूर्त्तिपूजा से रोग, पीड़ा, महादोष छूट जाय। पांच कौड़ी का फूल चढाया, उसने १८ देश का राज पाया, उसका नाम कुमारपाल हुआ था, इत्यादि।
विवेकसार पृष्ठ २१—जिनमन्दिर में मोह नहीं आता। भवसागर के पार उतारने वाला है।
विवेकसार पृष्ठ ५१ और ५२—मूर्त्तिपूजा से मुक्ति होती है और जैनमन्दिर में जाने से सद्गुण आते हैं। जो जल चन्दनादि से जिनमूर्त्तियों की पूजा करे वह नरक से छूट स्वर्ग को जाय।
विवेकसार पृष्ठ ५५ में—जिनमन्दिर में ऋषभदेव आदि की मूर्त्तियों के पूजने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध होता है।
विवेकसार पृष्ठ ६१ में—जिनमूर्त्तियों की पूजा से सब पाप छूट जाते हैं।
पृष्ठ ६७ में—जिनमूर्त्तियों की पूजा करें तो जगत् के क्लेश छूट जांय।
पृष्ठ ८१ में—श्री जिन की पूजा से सब पाप छूट जाते हैं।
इत्यादि बड़े-बड़े विचित्र, असम्भव बातों के गपोड़े उड़ाये हैं।
और यह भी विवेकसार के तीसरे पृष्ठ में लिखा है कि—
जो ‘जिन’ की मूर्त्ति स्थापन करते हैं, उन आचार्यों ने अपनी और अपने कुटुम्ब की आजीविका चलाई है, ऐसा खण्डन भी करते हैं।
और उसी ग्रन्थ के २२५ पृष्ठ में शिव, विष्णु आदि मूर्त्ति की पूजा करनी बहुत बुरी है अर्थात् नरक का साधन है।
तत्त्वविवेक पृष्ठ १६९—जो मनुष्य लकड़ी-पत्थर को देवबुद्धि कर पूजता है, वह अच्छे फलों को प्राप्त होता है।
समीक्षक—जो ऐसा हो तो सब कोई दर्शन करके सुखरूप फलों को प्राप्त क्यों नहीं होते?
रत्नसार भाग १ पृष्ठ १०—पार्श्वनाथ की मूर्त्ति के दर्शन से पाप नष्ट हो जाते हैं।
कल्पभाष्य पृष्ठ ५१ में लिखा है कि—“सवालाख मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया” इत्यादि मूर्त्तिपूजाविषय में इनका बहुत सा लेख है, इसी से समझा जाता है कि मूर्त्तिपूजा का मूलकारण जैनमत है।

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