Categories
भारतीय संस्कृति

जैन मत समीक्षा* भाग 7

*
डॉ डी के गर्ग

निवेदन : ये लेखमाला 20भाग में है। इसके लिए सत्यार्थ प्रकाश एवं अन्य वैदिक विद्वानों के द्वारा लिखे गए लेखो की मदद ली गयी है। कृपय अपने विचार बताये और उत्साह वर्धन के लिए शेयर भी करें।
भाग-7

जैन पंथ में णमोकार मंत्र

विश्लेषण:-
1 णमोकार मंत्र को लेकर पहला प्रश्न ये है की ये मंत्र कब और किसने लिखा? किस धर्म ग्रन्थ से लिया गया है? इसका कोई प्रमाण नहीं है,और ये भी स्पष्ट है कि ये मंत्र जैन धर्म के संस्थापक महावीर या किसी ऋषि ने नहीं दिया।ये बाद में अचानक जोड़ दिया ।

एक उत्तर ये मिलता हैं कि “पाले” महाराष्ट्र की सबसे प्राचीन गुफा है, जिसका समय ईसा से 200 सदी पूर्व का माना जाता है |यहाँ पर ब्राह्मी लिपि में णमोकार मंत्र लिखा मिला था | ये भी कहा जाता है की 162 ईसापूर्व में हाथीगुम्फा अभिलेख में णमोकार मंत्र एवं जैन राजा खारबेळा का उल्लेख है।
स्पष्ट है की ये मन्त्र शाश्त्रोक्त नहीं है ।

2 णमोकार मंत्र को महामंत्र के रूप में मान्यता किसने दी?
3 मंत्र जाप से कुत्ते को लाभ हुआ और अनादर से समुंद्र में डुबाकर मार दिया,ये अंधविस्वास है ।चाहे तो प्रमाण के लिए ऐसा करके देखे ले।

जैन मत के अनुसार णमोकार मंत्र का अर्थ — :
णमो अरहंताणं -अरिहंतों को नमस्कार हो।
णमो सिद्धाणं -सिद्धों को नमस्कार हो।
णमो आइरियाणं -आचार्यों को नमस्कार हो।
णमो उवज्झायाणं – उपाध्यायों को नमस्कार हो।
णमो लोए सव्व साहूणं – इस लोक के सभी साधुओं को नमस्कार हो।
एसो पंच णमोक्कारो – यह पाँच परमेष्ठी अति सम्माननीय है ।

जैन धर्म के अनुसार मंत्र का अर्थ :
१ जैन धर्म में पांच अरिहंत – जिन्होंने चार शत्रु कर्मों को नष्ट कर दिया है -‘नमो अरिहंताणं । ‘
२ सिद्ध -वे व्यक्ति जिन्होंने “सिद्धि” प्राप्त कर ली है,जैन धर्म में सिद्ध शब्द यानी मुक्त आत्मा, जिन्होंने अपने सारे कर्मो का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया है उन्हें संबोधित करने के लिए किया जाता हैं।
३ आचार्य – वे शिक्षक जो आचरण करना / जीवन जीना सिखाते हैं
४ उपाध्याय – कम उन्नत तपस्वियों के गुरु
५ साधु -संसार में सम्यक चारित्र (सही आचरण) का पालन करने वाले भिक्षु या ऋषि
जैन धर्म के विद्वान कहते है कि इन पांचों परम आत्माओं को नमन करने से उसके सभी कर्म नष्ट हो सकते हैं ।

ध्यान रहे कि इस नमस्कार में किसी देव यानी देवताओं जैसे भूमि, वायु ,जल ,पृथ्वी आदि और किसी विशिष्ट व्यक्ति महापुरुष जैसे श्री कृष्ण ,राम, चरक ,वेद व्यास ,परशुराम , पतंजलि आदि के नाम का उल्लेख नहीं है।
क्या उपरोक्त पाँच परमेष्ठी को लगातार नमस्कार करने मात्र से मुक्ति मिलेगी और पाप नष्ट हो जाएंगे?
विस्तार से विश्लेषण :
१ पहला प्रश्न है की इसको मंत्र के रूप में स्वीकार करना चाहिए ? –

मन्त्र किसे कहते है?

मननात त्रायते इति मन्त्रः
मंत्र वह है, जिससे आप जन्म और मृत्यु के चक्र से तर जाते हैं । पुनरावृत्त विचार ही चिंता है। मंत्र आपको अपनी चिंताओं से मुक्त करने में मदद करते हैं। कई बार हमें आश्चर्य होता है कि हम मन्त्रों का अर्थ समझे बिना कुछ ध्वनियों का जप क्यों करते हैं? क्या हमारी समझ से परे कुछ हमारी सहायता कर सकता है?
हर मंत्र का अर्थ अनंत है। मन्त्र ध्वनि, मन के ज्ञान से परे एक कंपन है। जब मन अनुभूति करने में असमर्थ होता है तो वह बस विलीन हो जाता है और ध्यानस्थ अवस्था में चला जाता है।
इस विषय में स्वयं जैन समाज का कहना है की इस मंत्र द्वारा जैन तीर्थंकरों या संन्यासियों से कोई अनुग्रह या भौतिक लाभ या दुरित से सद्मार्ग पर चलने की कामना नहीं की गई है। यह मंत्र केवल उन प्राणियों के प्रति गहरे सम्मान के संकेत के रूप में कार्य करता है जिनके बारे में उनका मानना है कि वे आध्यात्मिक रूप से विकसित हैं, साथ ही ऐसे लोगों को आदर्श का प्रतीक मानकर उनके द्वारा प्राप्त किए गए अंतिम लक्ष्य यानी मोक्ष (मुक्ति) की याद दिलाता है।

२ जैन समाज इस मंत्र के अर्थ स्वरूप नमस्कार शब्द का प्रयोग करता आया है ,इसलिए नमस्ते और नमस्कार का भावार्थ और अंतर् भी समझना जरुरी है–
प्रायः लोग नमस्ते और नमस्कार को एक समान अर्थ वाला मानते है ,जो गलत है।
नमस्ते से भाव है — नमः तुभ्यं अर्थात् आपके लिए नमन या अभिवादन है । झुकना हमारी संस्कृति की विशेषता है अत्यधिक आदर — सम्मान प्रकट करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है ।
नमस्कार में नमः के साथ कार लगा होने से यह क्रिया पद को बतलाता है । प्रायः बेजान वस्तुओं के लिए इसका प्रयोग किया जाता है जैसे सूर्य नमस्कार , चंद्र नमस्कार , सागर नमस्कार । इसलिए नमस्ते और नमस्कार में से नमस्ते शब्द अधिक सार्थक है ।इस आलोक में जड़ पदार्थो को नमस्ते या नमस्कार करना कहा तक उचित है ?
किसी जड़ पदार्थ को केवल नमस्ते या नमस्कार करने के कैसे मुक्ति मिल सकती है ? ये अंधविस्वास नहीं तो और क्या है ?
प्रचलित अन्य मान्यताओं का विश्लेषण :
इस बात का कोई प्रमाण नहीं है की इस नमस्कार को बार बार बोलने से पाप नाश हुए हो ,या ना बोलने से नरक में गया हो। अथवा कोई पशु णमोकार मंत्र सुनने से सद्गति प्राप्त हो जाये ।

णमोकार मंत्र का वास्तविक भावार्थ भी समझते है ,जिस पर जैन समाज को चिंतन करने की जरूरत है?

इस नमस्कार मंत्र के भावार्थ में ही इसकी वास्तविकता और एक गूढ़ सन्देश छिपा है ,जिसको समझना चाहिए ,इसके जाप करने के बजाय इसके पीछे छिपे सूत्र /सन्देश का अनुकरण करना जरुरी है।
१ पहला नमस्कार सूत्र — ‘नमो अरिहंताणं । ‘अरी का अर्थ है शत्रु और ‘हन्ताणं’ का अर्थ है जीतना। जिसने क्रोध, मान, कपट, लोभ, राग और द्वेष के सभी आंतरिक शत्रुओं पर विजय पा ली है।परन्तु मनु ने धर्म के १० नियम बताये है ,किसी एक को छोड़ना अधर्म के श्रेणी में आता है। इसलिए ये अधूरा है। धर्म के दस लक्षण हैं – धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, स्वच्छता, इन्द्रियों को वश में रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना (अक्रोध)।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version