प्रमोद भार्गव
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और लोकप्रिय नेता शिवराज सिंह चौहान को केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें ठिकाने लगाने की कई कोशिशें कीं, लेकिन शिवराज सभी पर पार पाते हुए आज प्रदेश के सबसे बड़े प्रतिश्ठित नेता में सुमार हो गए हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते समेत सात सांसदों को विधानसभा के टिकट देकर यह कोशिष की थी कि शिवराज का कद बौना हो जाए और वह राजनीतिक रूप से किनारे लग जाएं। इसी क्रम में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी उनके समांतर खड़ा करने के प्रयास किए गए, लेकिन शिवराज ने अपनी दम पर प्रदेश में विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव की सभी 29 सीटें जिताकर यह जता दिया कि वे लोकप्रियता में ही नहीं चुनाव जिताऊ रणनीति के भी शिल्पकार हैं। इसीलिए फिनिक्स पक्षी की भांति राख से फिर-फिर जी उठते हैं।
दरअसल विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जीत मिलने के बाद मुख्यमंत्री बनने के पहले हकदार शिवराज थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उनका कद देशव्यापी न हो जाए, इस नाते मुख्यमंत्री का सिंहासन मोहन यादव को सौंप दिया। उनके चुने जाने पर भाजपा के 163 विधायकों समेत जनता भी हतप्रभ रह गई। लाडली बहनों के लिए तो शिवराज को किनारे करना एक सदमे की तरह महसूस हुआ। अतएव शिवराज जब-जब जनता के बीच गए, तब-तब वे शिवराज के गले से लिपटकर विलाप करती दिखाई दीं। बावजूद शिवराज ने कभी केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व के विरुद्ध नाराजी नहीं जताई। पार्टी के निर्णय को सर्वोपरि माना और अपने काम में लगे रहे। लोकसभा के चुनाव में पार्टी ने समझ लिया कि शिवराज को महत्व दिए बिना प्रदेश में चुनावी वैतरणी पार करना कठिन है। गोया, उन्हें विदिशा से न केवल टिकट दिया गया, बल्कि उनके कहने पर ज्यादातर टिकट दिए गए। तीन टिकट ग्वालियर, मुरैना और भिंड नरेंद्र सिंह तोमर के खाते में थे। यही नहीं शिवराज प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र की अधिकांश विधानसभाओं में प्रत्याशियों का प्रचार करने गए। विदिशा से जब उन्हें प्रत्याशी घोषित किया गया तो इन पांव-पांव वाले भैया को बहनाओं ने चुनाव लड़ने के लिए चंदा से एकत्रित की राशि कई बार भेंट की। इसलिए जब 29 की 29 सीटें भाजपा जीती तो उनको केंद्र में बड़ा पद देना नरेंद्र मोदी की मजबूरी हो गई। हालांकि मोदी जब विदिषा में चुनावी सभा लेने आए थे, तब उन्होंने मतदाताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि शिवराज उनके पुराने साथी हैं और वे उन्हें दिल्ली ले जाकर बड़ा दायित्व सौंपेंगे। अतएव जब शिवराज ने इंदौर के बाद सबसे बड़ी जीत हासिल की तो उसी अनुरूप उन्हें मंत्रीमंडल में अत्यंत महत्वपूर्ण मंत्रालय कृषि एवं किसान कल्याण और पंचायत एवं ग्रामीण विकास सौंपे गए। शिवराज ही हैं, जो भाजपा से नाराज किसानों को मना सकते हैं और किसानों की आय दोगुनी करने का उपाय भी करने की क्षमता रखते हैं। शिवराज ने करीब 8 लाख 21 हजार मतों से जीत हासिल करके अपने विरोधियों को जता दिया है कि उनकी पैठ मतदाता के घर में हैं।
हालांकि प्रदेश में शिवराज समेत पांच मंत्री बनाए गए हैं। दूसरा बड़ा चेहरा गुना-शिवपुरी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया है। सिंधिया बीते कार्यकाल में नागरिक एवं उड्ढयन और इस्पात मंत्री थे, किंतु अब उन्हें दूरसंचार एवं पूर्वोत्तर विकास मंत्री बनाया गया है। इसे गुना संसदीय क्षेत्र की जनता उचित या उनके कद के अनुरूप दिए मंत्रालय नहीं मान रही है। दरअसल दूरसंचार के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर कुछ करने की गुंजाइश नहीं रह गई है। संचार की व्यवस्था निजी कंपनियों के हाथ में है और दूरांचल क्षेत्रों में भी मोबाइल टॉवर कई साल पहले लगाए जा चुके हैं। अतएव एक सांसद के रूप में सिंधिया के पास जनता एवं अपने कार्यकर्ताओं के लिए देने को बहुत कुछ नहीं रह गया है। पूर्वोत्तर भारत के विकास की जिम्मेदारी सिंधिया को मिली है, वहां वे अपनी क्षमताओं के अनुरूप जो भी कुछ करेंगे, वह यहां के लोगों को दिखाई नहीं देगा। ऐसे में सिंधिया को मतदाता से आंतरिक निकटता बनाए रखने में कठिनाई पेश आ सकती है। हालांकि सिंधिया शिवराज की तरह नावाचारी है। अतएव वे अपने संसदीय क्षेत्र की जनता को पूर्वोत्तर के कामाख्या देवी समेत अन्य तीर्थ स्थलों से नई रेलें देकर यह जता सकते हैं कि मध्यभारत को पूर्वोत्तर से जोड़ने का उन्होंने उल्लेखनीय काम किया है। परंतु गुना, शिवपुरी और अशोकनगर से नई रेलें आरंभ करने के लिए उन्हें रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से आग्रह करना होगा। बहरहाल सिंधिया को अपने मंत्रालय के जरिए मतदाता से समन्वय बिठाना थोड़ा कठिन होने जा रहा है ?
प्रदेश से वीरेंद्र खटीक, दुर्गादास उईके और आदिवासी नेत्री सावित्री ठाकुर को भी मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के रूप में जगह मिली है। खटीक पिछले कार्यकाल में भी सामाजिक न्याय मंत्री थे, अब उन्हें फिर से इसी मंत्रालय का उत्तरदायित्व मिला है। उईके को जनजातीय मामलों का मंत्री बनाया गया है। पहली बार संसद में पहुंची सावित्री ठाकुर को महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री का दर्जा मिला है। वे किसी राजपरिवार से नहीं आती हैं, अपनी ही दम पर पंचायत के नेतृत्व से अब सांसद की हैसियत से नेतृत्व संभाल रही है। आदिवासी समाज से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को इस बार मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया है। प्रदेश विधानसभा में अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के किसी भी सांसद को मंत्रिमंडल में मौका नहीं दिया गया है। उनके तीन सांसद मुरैना से शिवमंगल सिंह तोमर भिंड से संध्या राय और ग्वालियर से भारत सिंह कुशवाह जीतकर आए हैं। सिंधिया सांसद भले ही गुना से हैं, लेकिन उनकी पैठ समूचे ग्वालियर-चंबल अंचल में है। ऐसे में उन्हें तोमर के सांसदों से समन्वय बनाने में अड़चन अनुभव हो सकती है। क्योंकि इस अंचल की राजनीति में सिंधिया और तोमर दो विपरीत ध्रुव रहे हैं। तोमर ने गुना क्षेत्र में नाममात्र चुनावी सभाओं को संबोधित किया। इसी अनुरूप सिंधिया मुरैना, भिंड और ग्वालियर में ज्यादा समय नहीं दे पाए। दरअसल सिंधिया की निगाह अपने ही संसदीय क्षेत्र में अधिक थी। क्योंकि वे 2019 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव हार गए थे। इसलिए पूरा समय अपनी जीत के लिए सपरिवार लगाया। फलतः 5 लाख 40,000 वोट से रिकॉर्ड जीत हासिल की। लेकिन अब शिवराज का बड़ा कद प्रदेश के उन सब क्षत्रपों के लिए झेलना मुश्किल हो रहा है, जिनकी शिवराज से प्रतिस्पर्धा रही है।
प्रमोद भार्गव