मित्रों ! आज हमारे देश के एक महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती है । इनका जन्म आज ही के दिन 1906 में उन्नाव जिले के झाबुआ नामक ग्राम में हुआ था । 2011 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने इस गांव का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद के नाम पर आजाद नगर कर दिया है । आजाद जिस समय 15 वर्ष के थे , उस समय उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भाग लेकर यह सिद्ध किया था कि वह बालक होकर भी देश के बारे में सोचते हैं और देश के लिए जीने का संकल्प ले चुके हैं । असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार होने पर उन्होंने अंग्रेज अधिकारी को अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्र बताया था । जब अंग्रेज अधिकारी ने उनसे उनका निवास स्थान पूछा तो उन्होंने अपना निवास स्थान जेल बताया था । आजाद की इस निर्भीकता को देखकर अंग्रेज अधिकारियों ने 15 कोड़े मारने की सजा दी थी।
असहयोग आंदोलन समाप्त होते ही चंद्रशेखर आजाद का गांधीजी से मोह भंग हो गया कि वह सशस्त्र क्रांति के माध्यम से देश को आजाद कराने के समर्थक थे ।यही कारण था कि वह 1924 में वह राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों के द्वारा निर्मित की गई हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में सम्मिलित हो गए । अपने इन्हीं क्रांतिकारी साथियों के साथ 9 अगस्त 1925 को हुए काकोरी कांड में भी चंद्रशेखर आजाद की सक्रिय भूमिका रही ।
हमारे इस महान क्रांतिकारी को मरवाने में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भूमिका रही थी ? इस विषय मे नेहरू के जमाने के एक गुप्तचर अधिकारी धर्मेंद्र गौड़ ने सेवानिवृत्त होने के बाद कई खुलासे किए थे। वह अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि जिस दिन आजाद की मृत्यु हुई, उस दिन आजाद नेहरू से मिलने आनंद भवन गए थे। यहां नेहरू और उनमें तकरार हुई। इसके बाद वह सीधे कंपनी बाग चले गए। वहां 80 पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया। यहां पर आजाद ने अपनी ही पिस्टल से अपना सर्वोत्कृष्ट बलिदान मां भारती के चरणों में चढ़ा दिया था।
इस पर कुछ समय पूर्व यूपी पत्रिका के एक अंक में चंद्रशेखर आजाद के भतीजे सुजीत ने भी नेहरू पर यही आरोप लगाया था कि उनके कारण ही आजाद की मृत्यु हुई थी । उन्होंने कहा कि हो सकता है नेहरू ने ही अंग्रेजों को आजाद के बारे में यह जानकारी दी हो कि वह इस समय कंपनी बाग में है । सुजीत आजाद के इस कथन से यह बात और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है कि नेहरू के कारण ही हमारे इस क्रांतिकारी को अपना सर्वोत्कृष्ट बलिदान देना पड़ा था।
नेहरू के बारे में लाल बहादुर शास्त्री ने भी लिखा है कि जब काकोरी कांड के कुछ लोग बरी होकर इलाहाबाद पहुुंचे थे तो उनके स्वागत करने वालों को नेहरू ने रोका था। नेहरू ने उन लोगों से कहा था कि अगर आप उनके स्वागत में जाओगे तो अंग्रेज नाराज हो जाएंगे । नेहरू परिवार प्रारंभ से ही क्रांतिकारियों का विरोधी रहा है।
इन तथ्यों से तो स्पष्ट हो जाता है कि चंद्रशेखर आजाद के हत्यारे अंग्रेज नहीं ,अपितु हमारे ही देश की कांग्रेस पार्टी का तत्कालीन एक बड़ा नेता अर्थात जवाहरलाल नेहरू था।
नेहरू जैसे लोगों को देख कर ही संभवत: राम प्रसाद बिस्मिल को यह शेर लिखना पड़ा था :–
जिन्हें हम हार समझे थे गला अपना सजाने को।
वहीं अब नाग बन बैठे हमारे काट खाने को।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत