अच्छा रिश्ता मिलना समस्या क्यों?*
(फौजिया नसीम ‘शाद’- विभूति फीचर्स)
कहते हैं कि रिश्ते आसमान पर बनते हैं। जमीन पर तो उनका सिर्फ मिलन होता है और इस मिलन को भाग्य में लिखे गए जीवनसाथी को तलाश करने में माता-पिता और निकट संबंधियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन आज के इस निरन्तर परिवर्तित युग में यह दायित्व मैरिज ब्यूरो और इन्टरनेट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने उठा लिया है। इतनी सुविधाएं उपलब्ध होने पर भी आज अच्छा रिश्ता मिलना एक गंभीर समस्या बन गया है। आखिर क्या कारण है जिनके चलते अच्छे रिश्तों का अकाल पड़ गया है? आज इसी समस्या के कारण असंख्य अविवाहित लड़कियां विवाह का अरमान लिए प्रौढ़ावस्था में प्रवेश कर जाती हैं। जहां पहुंचकर उन्हें असंख्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है कभी-कभी तो उन्हें विवाहित पुरुष की दूसरी पत्नी बनने की पीड़ा सहनी पड़ती है। इतना ही नहीं कुंवारे होने पर भाई-भावजों के तानों के साथ समाज के व्यंग्य को भी सहना पड़ता है। हमारे समाज में रिश्ते पहले भी हुआ करते थे, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या कारण है कि आज अच्छा रिश्ता मिलना असंभव सा हो गया है? इस लेख के माध्यम से हम जानने का प्रयत्न करेंगे कि इस समस्या के लिए हमें क्या उपाय करना चाहिए।
बेहतर से बेहतर की तलाश अच्छा रिश्ता न मिलने का सबसे महत्वपूर्ण कारण है। बहुत से माता-पिता सुंदर वर-वधू की तलाश करते हैं जिसके चलते अच्छे भले रिश्ते भी उनके हाथ से निकल जाते हैं। विवाह की आयु निकल जाने पर उन्हें परिस्थितियों से समझौता कर अपने लड़के-लड़कियों का अनमेल विवाह करना पड़ता है जो आगे चलकर समाज में असंख्य सामाजिक समस्याओं को उत्पन्न करता है।
पहले रिश्ते निकटतम स्थानों में ही हो जाया करते थे लेकिन वर्तमान समय में माता-पिता द्वारा अपने बच्चों का बाहर रिश्ता करने से भी यह समस्या गंभीर हो गई है।
आज के युग में धन का महत्व बढ़ जाने के कारण अभिभावक वर-वधू के गुणों और प्रतिभा को देखने के विपरीत उसके परिवार के बैंक बैलेंस को महत्व देने लगे हैं। जिसके कारण आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से संबंध रखने वाली असंख्य लड़कियां अविवाहित ही रह जाती हैं। युवा लड़के-लड़कियों के विवाह संबंध में अपनी पसंद भी प्राय: इस समस्या को उत्पन्न करती है। जिन माता-पिता के लड़के उच्च पदों पर नियुक्त होते हैं उनके दिमाग सातवें आसमान पर होते हैं। ऐसे माता-पिता अच्छे रिश्तों में भी खोट निकालते रहते हैं। वे भूल जाते हैं कि कल उन्हें भी अपनी लड़कियों को लेकर इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली की शबाना खुर्शीद जो एक समाज सुधारक भी हैं, उनका मानना है कि जब तक समाज की मानसिकता को नहीं बदला जाएगा, तब तक विवाह से संबंधित समस्याओं के समाधान के बारे में विचार करना व्यर्थ ही होगा। अभिभावक जब तक लड़की अथवा लड़के के गुणों को नजर अंदाज कर धन को महत्व देते रहेंगे, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। (विभूति फीचर्स)