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सिकंदर महान के जन्म दिवस पर

मित्रो ।आज तथाकथित सिकंदर महान का जन्म दिवस बताया जाता है ।ईसा पूर्व 356 ई0 में आज के दिन मकदूनिया में इस क्रूर शासक का जन्म हुआ था। इसको विश्व विजेता के रूप में हमारे तथाकथित इतिहासकारों ने स्थापित करने का प्रयास किया है। जबकि यह बहुत छोटे से साम्राज्य का शासक था ।
जी हां , इसका साम्राज्य हमारे कश्मीर के महान शासक ललितादित्य मुक्तापीड़ और बप्पा रावल जैसे उन शासकों के राज्य से भी बहुत छोटा था जिनको इतिहास के कूड़ेदान में फेंकने का अपराध हमारे इन देशघाती इतिहासकारों ने किया है। इन इतिहासकारों की मूर्खतापूर्ण धारणाओं ने इतिहास की सरिता को बहुत अधिक प्रदूषित करके रख दिया है , ऐसे ही एक उदाहरण को हम यहां प्रस्तुत करते हैं।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर हैं जिनका नाम है प्रोफेसर डीपी दुबे । इन महोदय ने एक बार बीबीसी से साक्षात्कार में कहा था कि मेरे विचार से सिकंदर ने भारत पर कभी कोई आक्रमण ही नहीं किया। उसने यदि आक्रमण किया भी तो वह पाकिस्तान पर किया था। प्रथम दृष्टया तो इन महोदय की बात उचित ही जान पड़ती है , परंतु यदि इनके कथन पर गहराई से विचार करें और जो उन्होंने कहा है उसको इतिहास में पढ़ाया जाने लगे तो इतिहास के विद्यार्थियों के मन – मस्तिष्क में एक विचार घर कर जाएगा कि ईसा पूर्व 326 में जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था, तब भी पाकिस्तान का अस्तित्व था । देर सवेर इसका दूसरा परिणाम यह निकलेगा कि पाकिस्तान जब 326 ईसा पूर्व में भी अस्तित्व में था तो 1947 तक उसे भारत ने वास्तव में ही अपने नियंत्रण में रखने का अपराध किया। अपने इतिहास की पुस्तकों में पाकिस्तान अपने विद्यार्थियों को यह पढ़ा भी रहा है कि सन 1000 के लगभग उसका निर्माण महमूद गजनवी और फिर बाद में गौरी के माध्यम से हो चुका था। इस तथ्य की पुष्टि कराने में प्रोफेसर डीपी दुबे जैसे तथाकथित इतिहास के विद्वानों के कथन और भी अधिक सहायक हो जाएंगे तब पाकिस्तान को यह कहने का अवसर मिलेगा कि वह सिकंदर महान के आक्रमण के समय भी अस्तित्व में था । क्या इन मूर्खतापूर्ण धारणाओं या तथाकथित विद्वत्तापूर्ण कथनों से हमें बचना नहीं चाहिए ?
अब सत्य क्या था ? – इस पर भी विचार करें ।
जिस समय सिकंदर का जन्म हुआ उस समय भारत का विशाल साम्राज्य मकदूनिया से भी आगे तक था । इसका अभिप्राय है कि वह भारत में ही पैदा हुआ और भारत में ही उसने एक दूसरे राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाई । यह वैसे ही था जैसे हमारे देश के राजा चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए अक्सर करते रहे थे । चक्रवर्ती सम्राट बनने का सपने देखना हमारे वैदिक धर्म ग्रंथों ने भी राजा के लिए अपेक्षित माने हैं । इसके पीछे वेद और वैदिक ग्रंथों का उद्देश्य यह था कि संपूर्ण भूमंडल का एक राजा ही संपूर्ण भूमंडल पर एक वैश्विक व्यवस्था विकसित कर सकता है । तीसरे कृण्वंतो विश्वमार्यम् और वसुधैव कुटुंबकम का हमारा दिव्य राष्ट्रीय संकल्प पूर्ण होता है ।
भारत में ही जन्म लेने के कारण सिकंदर न तो विदेशी था और न ही वह विश्व विजेता था । उसने भारत के एक छोटे से शासक पोरस पर आक्रमण किया और जब पोरस ने अपना पौरुष दिखा कर उसकी धुनाई की तो वह तुम दबा कर भाग निकला। विश्व विजेता बनने के जिस संकल्प को पूर्ण करने के लिए उसने अपने पिता तक की हत्या की उसके उस पाप का दंड उसे हमारे राजा पोरस ने दे दिया । यह भारत की क्षात्र परंपरा है । जिसके अनुसार किसी भी पापी को दंड देना राजा का कार्य है ।अपने इस राजधर्म को हमने इतिहास में महिमामंडित नहीं किया । हमारे आपराधिक प्रवृत्ति के इतिहासकारों ने एक पापी को पुण्यात्मा बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया , जबकि एक राष्ट्रभक्त राजा को मिट्टी में मिलाने का अपराध किया ।
यदि इतिहास के तथ्यों को इस सत्य के साथ प्रस्तुत किया जाए तो इतिहास गौरवबोध से भर उठेगा और न केवल गौरवबोध से भर उठेगा अपितु हमें सत्यान्वेषी भी बनाएगा ।इसलिए हमारा मानना है कि इतिहास को गौरवबोध कराने वाली सत्यान्वेषी भाषा में ही प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है ।
इतिहास के पुनर्लेखन के हमारे अभियान के साथ जुड़िए ।
आज सिकंदर के जन्मदिवस पर उसके गुणगान करने का समय नहीं , अपितु अपने राजा पोरस का गुणगान करने का समय है । जिसने इस पितृहन्ता क्रूर शासक को उसकी क्रूरता का उचित पुरस्कार दिया और उसके विश्व विजेता बनने के संकल्प को मिट्टी में मिला दिया ।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

One reply on “सिकंदर महान के जन्म दिवस पर”

आपने बिलकुल सही बात कही है श्रीमान् .
दिक्कत केवल देशद्रोही, धर्मद्रोही विद्वानों से है जिन्होंने सत्य सनातन धर्म और इससे जुडी सभी चीजों के विकृतीकरण का महान अपराध किया है.
बर्बर और असभ्य विदेशी आक्रान्ताओं का गुणगान तथा अपनी परम्पराओं का अपमान इनका मुख्य कार्य रहा है.
तभी तो हमारे देश की राजधानी में बाबर, तुगलक आदि के नाम से सड़कें हैं.
सत्तर सालों से कांग्रेसियों और वामपंथियों ने अपने हिसाब से इतिहास गढ़ कर भारत की जनता को दिग्भ्रमित कर रखा है.
मैकाले ने पहले ही गुरुकुलों को मृतप्राय कर दिया है. अत: वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने में बहुत ही अडचनें हैं.

इस परिस्थिति में साधुवाद के पात्र हैं क्योंकि आप हमें सही राह दिखा रहें हैं.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

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