आखिर क्यों ढ़हा भाजपा का मजबूत किला*
(शिव शरण त्रिपाठी-विनायक फीचर्स)
यदि भाजपा 2024 के आम चुनाव में अपने बलबूते बहुमत न हासिल न कर सकी तो इसका मुख्य कारण उत्तर प्रदेश में भाजपा का किला ढहना माना जा रहा है। जिस उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 2014 के आम चुनाव में 71 सीटे जीती हो और 2019 के आम चुनाव में 62 उसी उत्तर प्रदेश में यदि योगी जी के सुशासन में भाजपा की सीटे आधी यानी 33 रह जाये तो यह भाजपा के लिए घोर चिंता का विषय तो है ही। किसी को विश्वास नहीं हो पा रहा है कि भाजपा 71 से 33 सीटों पर कैसे आ सकती है।
मार्च 2017 में सत्ता की बागडोर संभालने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने जिस तरह प्रदेश को माफियाओं, बाहुबलियों और शातिर अपराधियों से मुक्त कराकर प्रदेश में कानून का राज स्थापित किया उसकी नजीर मिलनी मुश्किल है। जिस मुख्यमंत्री योगी के बुल्डोजर की धमक देश ही नहीं दुनिया में महसूस की गई हो यदि वही मुख्यमंत्री 2024 के आम चुनाव में भाजपा का किला ढहने से ‘अपराध बोध’ से ग्रस्त होने को मजबूर हो तो इसे विडम्बना ही कही जायेगी।
नि:संदेह भाजपा को 2024 के आम चुनाव में अपना किला ढहने के कारणों की तह में जाना ही होगा। आखिर वो कौन से कारक और कारण है जिनकी वजह से उत्तर प्रदेश में भाजपा की नैया डूब गई और केन्द्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार न बन सकी।
चुनाव परिणामों के बाद अब तो सभी राजनीतिक विश्लेषकों का एक समान मत है कि उत्तर प्रदेश में जातिवाद और विपक्षी दलों का मतदाताओं को दिया गया प्रलोभन सिर चढ़कर बोला। जातिवाद की आंधी से प्रभावित और मुफ्त की चाशनी में नहाये मतदाताओं को न तो भव्य राम मंदिर का स्मरण रहा, न राष्ट्रवाद का और न ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस सुशासन का भी जिसके चलते सूबे में माफियाओं, बाहुबलियों, शातिर अपराधियों द्वारा की जाने वाली वसूली रंगदारी, अपहरण जैसी घटनायें अतीत की बात हो गई हों। और महिलायें देर रात तक घर के बाहर आने जाने में अपने को सुरक्षित महसूस करने लगी हो।
कांग्रेस द्वारा महिलाओं को प्रतिवर्ष खटाखट 1 लाख रुपये दिये जाने के लॉलीपॉप ने किस हद तक महिलाओं को अपने पक्ष में वोट देने को बाध्य किया उसका प्रमाण इसी से मिल जाता है कि आज हजारों महिलायें लखनऊ में कांग्रेस कार्यालय में एक लाख रुपये दिये जाने की गुहार लगा रही हैं और चीख-चीखकर कह रही है कि उन्होने एक लाख रुपये के लालच में ही कांग्रेस को वोट दिया है।
मजेदार बात यह है कि कोई भी कांग्रेस का नेता, पदाधिकारी उन्हें यह समझाने को तैयार नहीं है कि कांग्रेस की सरकार नहीं बनी है इसलिये अभी एक लाख देना संभव नहीं है। अतएव वे कांग्रेस की सरकार बनने की प्रतीक्षा करें।
अब सवाल यह उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार के उपरोक्त कारण ही हैं या और भी कारण हैं जिनसे भाजपा की रीढ़ ही टूट गई। सर्वाधिक चिंता अयोध्या में हार को लेकर जताई जा रही है। वहां के मतदाताओं पर तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप भी मढ़े जा रहे हैं। नि:संदेह अयोध्या में हार को लेकर विदेशों तक में रह रहे हिन्दुओं मे क्षोभ है। अधिकांश हिन्दुओं का यह कहना है कि माना भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह के प्रति मतदाताओं में गहरी नाराजगी थी। माना कि अयोध्या को भव्य बनाने में उसकी जद में आये अनेक दुकानों व मकानों को तोड़ा गया। किन्तु क्या इतनी नाराजगी से अयोध्या में भाजपा सरकार/संगठनों द्वारा किये गये अप्रतिम योगदान को बिसारा जा सकता है।
यदि भाजपा की हार अयोध्या धाम तक ही सीमित होती तो भी प्रत्याशी से नाराजगी और दुकान/मकान तोड़े जाने का कारण माना जा सकता है किन्तु अयोध्या मण्डल की सभी पांच सीटों पर हार के क्या मायने है? अयोध्या के अलावा भाजपा जिन सीटों पर हारी है उनमें अमेठी से मजबूत प्रत्याशी स्मृति ईरानी, सुल्तानपुर से दिग्गज नेत्री मेनका गांधी प्रमुख है।
यही नहीं तीर्थस्थल चित्रकूट और सीतापुर में भाजपा की हुई हार केवल नाराजगी का परिणाम नहीं मानी जा सकती है। ऐसे ही कई अन्य सीटों की हार भी सवालों के घेरे में है।
फिलहाल भाजपा की हार के जो प्रमुख कारण सामने रहे हैं वे हैं विपक्षी दलों द्वारा जातिवाद की राजनीति तथा मुफ्त की रेवड़ी बांटने की घोषणा करना। बेशक प्रत्याशियों से मतदाताओं की नाराजगी भी हार के कारणों में एक रही है। पार्टी के भितर घात ने कोढ़ में खाज का काम किया है।
ऐसा भी नहीं है कि भाजपा ने जातिवाद का सहारा न लिया हो पर भाजपा के रणनीतिकार अखिलेश यादव के पीडीए समीकरण की न तो काट ढूढ़ सके और न ही मतदाताओं की नाराजगी और भितरघात को ही गंभीरता से ले सके। जिन योगी जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश ने हर मायने में इतिहास रचा हो यदि उसी उत्तर प्रदेश में भाजपा घुटनों पर आ गई तो योगी जी का क्षुब्ध व अपमानित महसूस करना स्वाभाविक ही है। लेकिन यह भी सत्य है कि प्रदेश की अधिसंख्य जनता योगी जी की दीवानी है और सबकुछ ठीक रहा तो 2027 में होने वाले प्रदेश के विधान सभा के चुनाव में जनता उन्हे नायक सिद्ध करके ही रहेगी।
फिलहाल जरूरत है हार के कारणों की विस्तृत व सघन जांच की। जांच में जो भी दोषी पाया जाये उसे पार्टी से निष्कासन की सजा ही दी जाये। यदि ऐसा न हुआ तो फिर आगे भी ऐसे ही हालातों का सामना करने के लिये कम से कम भाजपा को तैयार रहना ही चाहिये।(विनायक फीचर्स)
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