एक अग्नि पुरुष की तरह किसको दिव्य जीवन प्राप्त होता है?
दधुष्द्वा भृृगवो मानुषेष्वा रयिं न चारुं सुहवं जनेभ्यः।
होतारमग्ने अतिथिं वरेण्यं मित्रं न शेवं दिव्याय जन्मने ।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.58.6 (Total verse 679)
(दधुः – आ दधुः) पूर्ण रूप से धारण करता है (त्वा) आपको (भृृगवः) ज्ञान में परिपक्व (मानुषेषु) मनुष्यों में (आ – दधु से पूर्व लगाया गया) (रयिम्) सम्पदा (न) जैसे (चारुम्) सुन्दर (सुहवम्) आसानी से भुलाये जाने योग्य (जनेभ्यः) लोगों के द्वारा (होतारम्) लाने वाला, स्वीकार करने वाला (अग्ने) सर्वोच्च ऊर्जा, परमात्मा (अतिथिम्) हर समय और किसी भी समय स्वागत के योग्य (वरेण्यम्) धारण करने के योग्य (मित्रम्) मित्र (न) जैसे (शेवम्) कल्याण करने वाला (दिव्याय) दिव्य (जन्मने) जन्म के लिए।
व्याख्या:-
एक अग्नि पुरुष की तरह किसको दिव्य जीवन प्राप्त होता है?
सर्वोच्च ऊर्जा, परमात्मा! पुरुषों में आपको केवल वही धारण करते हैं जो ज्ञान में परिपक्व हैं। आप इनके लिए अत्यन्त सुन्दर सम्पदा हो। आप लोगों के द्वारा सरलता से बुलाये जा सकते हो। आप उनके जीवन में सबकुछ देते हो। आप हर समय ऐसे लोगों के द्वारा स्वागत करने के योग्य हो। आप उनके द्वारा धारण करने के योग्य हो। आप उनका कल्याण एक मित्र की तरह करते हो। आप उन्हें एक दिव्य जन्म देते हो जिससे उन्हें अपनी तरह अग्नि पुरुष बना सको।
जीवन में सार्थकता: –
सर्वोच्च चेतना में जीवन कैसे जीयें?
हमें सर्वोच्च ऊर्जा, परमात्मा, के बारे में सिद्धान्त स्पष्ट होना चाहिए। परमात्मा के अस्तित्व और शक्तियों का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करना न कठिन है और न असंभव। वह सर्वव्यापक और तरंगित शक्ति है जो हमारे लिए मित्रवत और हमारी व्यक्तिगत है। जबकि वह सारे ब्रह्माण्ड का कल्याणकर्त्ता तथा नियंत्रक है।
हमें अपने जीवन की इस व्यक्तिगत शक्ति के लिए अपने गहरे हृदय आकाश में प्रेम विकसित करना चाहिए। वह प्रत्येक कण का दाता है। अतः हमें सदैव और सब स्थानों पर उसकी चेतना के स्तर पर जीना चाहिए। ऐसा जीवन स्वाभाविक रूप से इन्द्र बन जायेगा।
उसके साथ चेतना पूर्वक जीवन जीने के बाद ही हमें एक दिव्य जीवन प्राप्त होता है।
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
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पवित्र वेद स्वाध्याय एवं अनुसंधान कार्यक्रम
द वैदिक टेंपल, मराठा हल्ली, बेंगलुरू, कर्नाटक
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