‘विशेष शेर’: –
ज्ञान की गहराई,
चरित्रा की ऊँचाई,
दिलों पर गहरी छाप छोड़ती हैं। एक लम्हा ऐसा भी आता है,
जब ज़िन्दगी को,
रुहानी राह की तरफ मोड़ती हैं॥2674॥
सोचो, यह कितना बढ़ा अज्ञान है?
ऐ बशर ! जो तेरा नहीं है,
उसे तू मेरा कहता है।
खुदा का नाम तेरा था,
तेरा है,तेरा रहेगा,
अफ़सोस उससे तू दूर रहता है॥2675॥
मनुष्य की महान भूल
माया के आनंद में,
जीव हुआ मशगूल ।
आत्मा के आन्न्द का,
धाम गया वह भूल ॥2676॥
तत्वार्थ – भाव यह है कि मानव जन्म का मुख्य लक्ष्य प्रभु-प्राप्ति था किन्तु उसकी बुद्धि पर माया का ऐसा परदा पड़ा कि वह भौतिक वाद के भवर में फंस कर प्रभु प्राप्ति के लक्ष्य को भूल गया जिससे ये मानव जन्म सार्थक ना हो सका। अत: मानव जीवन को सार्थक बनाना है तो अध्यात्मवाद की और चलो और जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करो।
दोहा
भाव- शुद्धि और विचार शुद्धि की महत्त्ता के संदर्भ में :-
भाव-विचार को शुद्ध रख,
व्यवहार के हैं आधार ।
इनको नित शोधित करो,
अपना हो संसार॥2677॥
कौन किसका मूल है?
धर्म का मूल तो वेद हैं,
वायु का आकाश।
आत्मा का परमात्मा,
चलो उसी के पास॥2678॥
विशेष :-संसार और स्रष्टा के संदर्भ में ‘शेर’
संसार को देखना है,
तो थोड़ा हटकै देखो।
मगरा ख़ुदा को देखना है,
तो उसमें रमकै देखो॥2679॥
‘शेर’- ऊँचे तो उठो, मगर अपने मूल से सदा जुड़े रहो-
इंसान ऊंचा चढ़ जाता है,
मगर अपनों से अकेला भी पड़ जाता है॥2680॥
ओ३म् -नववर्ष के अवसर पर मानव जीवन के संदर्भ में:-
कविता
अरे यह साल भी बीता,
अरे यह साल भी बीता ।
मगर भक्ति के मार्ग में,
खड़ा हूँ आज भी जीता ॥
अरे यह साल भी बीता ….
मन में विकारों का लगा है,
आज भी डेरा ।
माया अग्नि ने मुझे ,
चहुँ ओर से घेरा ।
फंस गया माया के व्यूह में,
नहीं भक्ति किला – जीता ॥
अरे यह साल भी बीता…
देता रहा उपदेश जग को,
ये करो ! ये मत करो।
देखता है न्यायकारी,
खौफ़ उसके से डरो॥
काश ! आत्मसात करता,
वेद और गीता ।
अरे यह साल भी बीता ….
प्रभु – प्रप्ति लक्ष्य मनुष्य का,
ओटन लगा कपास ।
मीरा ध्रुव प्रहलाद की भांति,
मिट जाती तेरी प्यास।
ब्रहम रस का पान कर,
जीवन यदि जीता॥
अरे यह साल भी बीता —
बड़ी मुश्किल से होता है,
रूहानी राह पर चलना ।
ख़ुदा की तौफ़ीक होती है,
तभी हो संत का मिलना ।
सुर्खरू होकर निकलती,
ज्यों अग्नि से सीता।
अरे यह साल भी बीता.. ..
अभिलाषा एक बाकी है,
तेरा दीदार हो जाये।
तेरी ज्योति जले मन में,
मेरा उध्दार हो जाये ।
विजय तेरे द्वार पर आया,
ना जाये ये कभी रीता ।
अरे यह साल भी बीता–
अरे यह साल भी बीता – -॥2681॥
ओम् शांति ?
क्रमशः