18वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आने के पश्चात अप्रत्याशित रूप से भाजपा आरएसएस के निशाने पर आ गई है। भाजपा के परंपरागत ” फीलगुड ” के रोग को आरएसएस के बड़े नेता इंद्रेश कुमार ने लताड़ा है। उन्होंने संकेत में कहा है कि इस पार्टी को अहंकार हो गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रभु राम सभी के साथ न्याय करते हैं। उनका न्याय बहुत विचित्र है। जो 2024 के चुनाव में भी दिखाई दिया । आरएसएस नेता ने कहा कि जिन लोगों ने राम की भक्ति की, परंतु उनमें अहंकार आ गया तो उनको प्रभु ने सबसे बड़ी पार्टी तो बनाया पर सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत प्राप्त करने में असफल होने से वे शक्ति और पूरा अधिकार प्राप्त नहीं कर पाए। ऐसा अहंकार के कारण हुआ।
भाजपा इस चुनाव में ” 400 पार ” के नारे के साथ उतरी थी। इसके उपरांत भी अनेक लोगों को यह अपेक्षा थी कि भाजपा ” 400 पार ” तो नहीं पर 300 पार अवश्य चली जाएगी। परंतु चुनाव परिणाम आए तो भाजपा स्वयं सदमे में आ गई। इस बात को समझने के लिए आरएसएस के ही प्रमुख मोहन भागवत के उस वक्तव्य की ओर हमें चलना होगा, जिसमें उन्होंने कहा है कि ” चुनाव को युद्ध की तरह लड़ा गया।” स्पष्ट है कि मोहन भागवत ने ऐसा कहकर यह स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव के दौरान चुनावी सभाओं में भाजपा के नेताओं के द्वारा अपने विरोधियों को लेकर जिस भाषा का प्रयोग किया गया, वह उनके भीतर के अहंकार को प्रकट कर रही थी। भाजपा की स्मृति ईरानी की भाषा को देखें तो वह अलोकतांत्रिक और अनार्यादित ही थी। अपने विरोधी को चुनौती देना अलग बात है और अपने विरोधी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाना अलग बात है ।अपने विरोधी के स्वाभिमान को चोटिल कर यदि आप सद्भाव की अपेक्षा करते हैं तो यह आपकी नादानी ही कही जाएगी या फिर अहंकार के वशीभूत होकर आपके द्वारा जानबूझकर की जा रही गलती कही जाएगी। भाजपा के नेताओं के द्वारा राहुल गांधी को बार-बार नामदार या कुछ ऐसे ही व्यंग्यात्मक शब्दों के साथ संबोधित करना भाजपा के नेताओं के अहंकार को झलका रहा था। इस प्रकार के संबोधन ने राहुल गांधी को नेता ना होते हुए भी नेता बना दिया। विपक्ष की ओर से भी इसी तरह के संबोधन और शब्दों का प्रयोग किया गया। अपने विरोधियों के प्रति पूरी तरह ईर्ष्या भाव रखते हुए प्रत्येक विपक्षी नेता ने अपने मन की भड़ास निकाली।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा और विशेष रूप से देश के प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर के बिंदु पर लाकर बुरी तरह घेर दिया है। उन्होंने मणिपुर में फैली अशांति का उल्लेख करते हुए कहा है कि संघर्ष से जूझ रहे मणिपुर राज्य की स्थिति पर प्राथमिकता से विचार किया जाना अपेक्षित है। उन्होंने कहा कि मणिपुर पिछले एक वर्ष से शांति की प्रतीक्षा कर रहा है। राज्य में 10 वर्ष पहले शांति थी। ऐसा लगता था कि वहां बंदूक संस्कृति अब समाप्त हो चुकी है, परंतु राज्य में अचानक हिंसा देखी गई। आरएसएस प्रमुख का यह कथन बहुत गंभीर संकेत कर रहा है। इसका एक अर्थ यह हो सकता है कि वह भाजपा प्रणीत केंद्र सरकार द्वारा अपनाई जा रही मणिपुर संबंधी नीतियों से सहमत नहीं हैं। जबकि एक अर्थ यह भी हो सकता है कि वह प्रधानमंत्री श्री मोदी की कार्यक्षमता और कार्यशैली दोनों पर ही प्रश्नचिह्न लग रहे हों और उन्हें यह बता रहे हों कि वहां के मूल समाज के साथ जिस प्रकार के अत्याचार मोदी सरकार के रहते हुए भी हो रहे हैं उनकी अपेक्षा इस सरकार से नहीं की गई थी। यदि इसके उपरांत भी ऐसा हो रहा है तो निश्चित रूप से सरकार अपनी अक्षमता का प्रदर्शन कर रही है। मोहन भागवत के मणिपुर संबंधी बयान के पश्चात केंद्र की मोदी सरकार पर विपक्ष के हमले भी तेज हो गए हैं। इन सब स्थिति परिस्थितियों से स्पष्ट हो रहा है कि केंद्र की भाजपा सरकार और आरएसएस के बीच संबंध इस समय सामान्य नहीं हैं । भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा यह कहा जाना कि भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आवश्यकता अटल जी के समय तो थी परन्तु अब नहीं है, परिस्थितियों को और भी अधिक विषाक्त कर गया है। आरएसएस के मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि जैसे ही जे0पी0 नड्डा का यह बयान आया तो हम लोगों ने भाजपा के लिए काम करना एकदम बंद कर दिया। यद्यपि इससे पहले भी भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता अनमने मन से ही कार्य कर रहे थे। क्योंकि उन्हें चुनाव में साथ देने के लिए भाजपा की ओर से कोई औपचारिक निवेदन नहीं किया गया था।
मोहन भागवत के बयान के पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मेंबर रतन शारदा ने संघ के मुख्य पत्र ” ऑर्गेनाइजर ” में एक लेख लिखा। जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा पार्टी के कार्यकर्ता जनता की आवाज सुनने के स्थान पर प्रधानमंत्री श्री मोदी के फैन फॉलोइंग की चमक का आनंद ले रहे थे। बात स्पष्ट है कि भाजपा का कार्यकर्ता इस भ्रांति में था पार हो जाएगा। पार्टी प्रत्याशी भी इसी भ्रांति में थे कि प्रधानमंत्री की साफ सुथरी छवि के नाम पर ही वह जीत जाएंगे। इस भूल का ही परिणाम रहा कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में तो उभरकर आई परन्तु वह 300 पार नहीं कर पाई। रतन शारदा ने अपने उसे लेख में यह भी स्पष्ट किया है कि भाजपा के नेता चुनाव चुनावी सहयोग के लिए स्वयंसेवकों तक नहीं पहुंचे भाजपा ने उन कार्यकर्ताओं को सम्मान नहीं दिया जो जमीन पर काम कर रहे थे वहीं पार्टी ने उन कार्यकर्ताओं पर विश्वास किया जो सेल्फी के सहारे प्रचार कर रहे थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मेंबर रतन शारदा ने अपने लेख में आगे लिखा है कि यह चुनाव परिणाम भाजपा के लिए एक रियलिटी चेक है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से भाजपा पर हो रहे ये हमले बता रहे हैं कि भाजपा की अति आत्मविश्वास की नीति रणनीति और राजनीति से संघ पूर्णतया असहमत था। भाजपा को इन हमलों की वास्तविकता को समझना ही होगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
मुख्य संपादक, उगता भारत