भाजपा कहीं हार गई तो कहीं हारते हारते बची है ,आखिर क्यों
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि विकास के कारण भी हार हो सकती है? अर्थात, कोई नेता या पार्टी इसीलिए हार जाए क्योंकि उसने विकास किया?
सुनने में ये अजीब और हास्यास्पद जरूर लगे… लेकिन, अपने भारत के संदर्भ में ये बिल्कुल सच है।
असल में इस चुनाव से कुछ पहले मेरा देवघर जाना हुआ था… देवघर मतलब बाबा बैद्यनाथ की नगरी.. जो कि, हमारे 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
वो गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में आता है और वहाँ के वर्तमान सांसद तेजतर्रार निशिकांत दुबे हैं… जिन्होंने, देवघर में AIMS से लेकर एयरपोर्ट और नए रेलवे स्टेशन आदि ढेरों काम करवाए।
और, चुनाव से कुछ दिन पहले वहाँ प्रधानमंत्री मोदी जी गए थे और उन्होंने वहाँ बाबा बैद्यनाथ मंदिर में पूजा करने के उपरांत उस मंदिर के जीर्णोउद्धार के लिए 700 करोड़ देने का ऐलान किया।
बस, इसी बात से वहाँ मंदिर के आसपास के लोग बहुत नाराज हो गए कि… पहले तो एयरपोर्ट और एम्स… और, अब मंदिर का जीर्णोउद्धार?
हम भाजपा को वोट देबे नहीं करेंगे…
न भाजपा सत्ता में आएगी और न मंदिर का जीर्णोउद्धार होगा।
मेरे ये समझाने पर कि… अरे बाबा मंदिर का जीर्णोउद्धार होगा तो यहाँ और भी ज्यादा श्रद्धालु आएंगे जिससे पूरे देवघर शहर की आमदनी बढ़ेगी… क्योंकि, लोग आएंगे तो यहीं होटल में रुकेंगे, कुछ खाएंगे, कुछ खरीदेंगे, पूजा पाठ करेंगे और दान दक्षिणा भी देंगे…
लोग, मुझसे ही लड़ने लगे कि… अगर मंदिर का जीर्णोउद्धार हुआ आसपास के सभी घर/दुकान टूटेंगे… सड़कें चौड़ी होंगी… फुटपाथ पर लाइट्स लगेंगे तो गरीब दुकान कहाँ करेंगे? आदि आदि इतनी समस्याएँ गिनवाने लगे कि… अंततः मैंने पूजा करके चुपचाप वापस हो जाना बेहतर समझा।
और, अभी सुनने में आया कि वहाँ के सांसद साहब (भाजपा) भी हारते हारते बचे हैं।
तो, इस व्यक्तिगत अनुभव के बाद मुझे अच्छे से समझ आ गया कि आखिर लोग चाहते क्या है?
और, क्यों वाराणसी से लेकर अयोध्या तक में भाजपा कहीं हार गई तो कहीं हारते हारते बची है।
कहते हुए तो अच्छा नहीं लग रहा है… लेकिन, एक बार पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने कटेशरों के संबंध में कहा था… “अरे, वे गटर में पड़े रहना चाहते हैं तो रहने दो न… काहे उन्हें वहाँ से निकालने का प्रयास कर रहे हो। अगर तुम उन्हें गटर से निकालने का प्रयास करोगे तो वे तुम्हीं से रूष्ट होकर चुनाव में हरा देंगे।”
हालाँकि, नरसिंह राव ने ये उक्ति कटेशरों के लिए कही थी… लेकिन, अब लगता है कि उनकी ये उक्ति इस खेमे के लिए भी पूरी तरह सच है।
सूत्रों के अनुसार मोदी जी बनारस भी इसीलिए हारते हारते बचे हैं क्योंकि उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर को गंदी बजबजाती नालियों और तंग गलियों से मुक्त करवा दिया। उन्होंने, काशी का कायाकल्प करते हुए वहाँ गंगा घाट पर क्रूज और बोट चलवा दिए…! जिससे कि, वहाँ के पंडित और मल्लाह नाराज हो गए। पंडित इसीलिए नाराज हो गए क्योंकि मोदी जी ने मंदिर के पास से सभी अवैध और कब्जा की गई जमीन से उन्हें हटा दिया (बामय मुआवजा)। जबकि, मल्लाह इसीलिए नाराज हो गए क्योंकि पुरानी काशी में अपने टूटे फूटे बोट से थोड़ा बहुत कमा लेते थे।
लेकिन, क्रूज और आधुनिक बोट आने से उनकी एकछत्रता खत्म हो गई।
(सिर्फ एकछत्रता ही खत्म हुई कमाई नहीं… क्योंकि, पहले जहाँ रोजाना 200 लोग बनारस जाते थे तो अब 2000 लोग रोज जाते हैं। इसी तरह पहले जहाँ उनकी बोट पर पहले 100 लोग बैठते थे अब 150-200 लोग बैठते हैं)
इसीलिए, मल्लाह भी भाजपा से बहुत नाराज हैं जिनकी संख्या ढाई लाख से लगभग बताई जाती है।
शायद, ऐसा ही कुछ अयोध्या के बारे में भी हो। क्योंकि… चौड़ी सड़क, एयरपोर्ट तक के लिए कनेक्टिविटी, पार्क आदि के लिए जो तोड़ फोड़ हुई होगी इससे वहाँ के लोग नाराज होंगे।
कुल मिलाकर हम हिंदुओ की तरफ से संदेश ये है कि… देखो, हमको विकास फिकास नहीं चाहिए। हमको नाली में पड़े रहने में ही सुख है। तथा, हमें… गंदी बजबजाती नालियों, अतिक्रमित संकरी गलियों और टूटे फूटे मंदिरों (अगर मंदिर की जगह टेंट रहे तो और भी उत्तम) में ही आस्था नजर आती है। इसीलिए, इन्हें बदलने की कोशिश मत करो…!
बस, हमको 400 रुपया में गैस सिलिंडर, 60 रुपया लीटर पेट्रोल और 25 रुपया किलो प्याज देते रहो हम उसी में खुश हैं।
और हाँ… साल में दो चार गो सरकारी नौकरी (चपरासी, किरानी, मास्टरी आदि) का वैकेंसी निकालते रहो… 100-200 यूनिट बिजली फ्री देते रहो… और, देखो… हम आपको कैसे भर भर के वोट देते हैं।
लेकिन… अगर कहीं विकास फिकास की बात की… तो, फिर… इस बार प्रधानमंत्रियो को अपना सीट बचाना मुश्किल हो जाएगा… समझे?
काहे कि… फलानों को घी… और, हमको विकास हजम नहीं होता है…!!
साभार पोस्ट है
और लेखक महोदय को हार्दिक धन्यवाद कि देश का सही खांचा खींच दिए 🙏🙏
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