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भारतीय संस्कृति

*जैन पंथ समीक्षा*

डॉ डी के गर्ग

ये लेख छ भाग में है ,कृपया अपने विचार बताए और शेयर करे।
भाग १

जैन पंथ में णमोकार मंत्र–प्रचलित मान्यता —
जैन मत में णमोकार मंत्र की सबसे अधिक मान्यता है। उनका मानना है की इस मंत्र के जप से मुक्ति मिलती है। इसलिए अक्सर यज्ञ हवन कीर्तन आदि के स्थान पर जैन समाज अपने यहां णमोकार मंत्र जाप का आयोजन करता है। उनका मानना है की जोर जोर से बोलकर मंत्र का जाप करना चाहिए जिसे दूसरे लोग भी सुन सकें । इसमें होंठ नहीं हिलते किंतु अंदर जीभ हिलती रहे । इसमें न होंठ हिलते हैं और न जीभ हिलती है इसमें मात्र मन में ही चिंतन करते हैं । मन में जो णमोकार मंत्र का चिंतन था वह भी छोड़ देना सूक्ष्म जाप है । जहाँ उपास्य उपासक का भेद समाप्त हो जाता है । अर्थात् जहाँ मंत्र का अवलंबन छूट जाये वो ही सूक्ष्म जाप है ।
यह पंच नमस्कार मंत्र सभी पापों का नाश करने वाला है तथा सभी मंगलों में प्रथम मंगल है । यथा – मंगल शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है ।
मंङ्ग = सुख । ल = ददाति , जो सुख को देता है , उसे मंगल कहते हैं ।
मंगल – मम् = पापं । गल = गालयतीति = जो पापों को गलाता है , नाश करता है उसे मंगल कहते हैं ।
मंत्र के प्रभाव से –
पद्मरुचि सेठ ने बैल को मंत्र सुनाया तो वह सुग्रीव हुआ । रामचंद्र जी ने जटायु पक्षी को सुनाया तो वह स्वर्ग में देव हुआ । जीवंधर कुमार ने कुत्ते को सुनाया तो वह यक्षेन्द्र हुआ । अंजन चोर ने मंत्र पर श्रद्धा रखकर आकाश गामिनी विद्या को प्राप
णमोकार मंत्र सुनने से सद्गति प्राप्त करने वाले दो पशुओं के नाम हैं-१. कुत्ता जो जीवंधर कुमार द्वारा णमोकार मंत्र सुनकर देव हुआ और बैल जो णमोकार मंत्र सुन कालान्तर में सुग्रीव हुआ।

*णमोकार मंत्र क्या है ?

णमो अरिहंताणं ,णमो-सिद्धाणं ,णमो आयरियाणं ,णमो उवज्झायाणं ,णमो लोए सव्व साहूणं

इसमें ये 5 परमेष्ठी हैं, जिन्‍हें भावपूर्वक पंच नमस्कार किया जाता है.

जैन पंथ के अनुसार उपरोक्त मंत्र का केवल इतना भावार्थ :बताया जाता है :
णमो अरिहंताणं-अरिहंतों को नमस्कार हो, णमो-सिद्धाणं-सिद्धों को नमस्कार हो.
णमो आयरियाणं-आचार्यों को नमस्कार हो.
णमो उवज्झायाणं- उपाध्यायों को नमस्कार हो,
णमो लोए सव्व साहूणं-लोक के सभी साधुओं को नमस्कार हो।

प्रचलित विस्वास: –णमोकार मंत्र की महिमा का गान
यह पंचनमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सभी मंगलों में पहला मंगल है।और इस महामंत्र से ८४ लाख मंत्र निकले हैं।
णमोकार मंत्र को सुनकर सद्गति प्राप्त करने वाले जीव– एक बार जीवन्धर कुमार ने मरते हुए कुत्ते को णमोकार मंत्र सुनाया जिसके प्रभाव से वह मरकर देवगति में सुदर्शन यक्षेन्द्र हो गया।

1.यह पंचनमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है
2.सभी मंगलों में पहला मंगल है।सभी मंत्रों का मूल मंत्र अर्थात् जड़ है , जड़ के बिना वृक्ष नहीं रहता है , इसी प्रकार इस मंत्र के अभाव में कोई भी मंत्र टिक नहीं सकता है!
3.मृत्युंजयी मंत्र – इस मंत्र से मृत्यु को जीत सकते हैं अर्थात् इस मंत्र के ध्यान से मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं ।
4.सर्वसिद्धिदायक मंत्र – इस मंत्र के जपने से सभी ऋद्धि सिद्धि प्राप्त हो जाती है ।
5.तरणतारण मंत्र – इस मंत्र से स्वयं भी तर जाते हैं और दूसरे भी तर जाते हैं ।
6.आदि मंत्र – सर्व मंत्रों का आदि अर्थात् प्रारम्भ का मंत्र है ।
6.पंच नमस्कार मंत्र – इसमें पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया जाता है ।
7.मंगल मंत्र – यह मंत्र सभी मंगलों में प्रथम मंगल है ।
8.केवलज्ञान मंत्र – इस मंत्र के माध्यम से केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं ।
9 णमोकार मंत्र प्राकृत भाषा में है व यह मंत्र अनादिनिधन मंत्र है। अर्थात् इसे किसी ने बनाया नहीं है, यह प्राकृतिकरूप से अनादिकाल से चला आ रहा है।
10 णमोकार मंत्र को प्रत्येक अवस्था में और हर जगह जपना चाहिए। कहा भी है- अपवित्र या पवित्र जिस स्थिती में हो। यह पंचनमस्कार जपें पाप दूर हो।। (अपवित्र अवस्था में इस मंत्र को केवल मन में स्मरण करना चाहिए, बोलना नहीं चाहिए।
11. णमोकार मंत्र का लघु रूप ‘ॐ’ है। इस ‘असिआउसा’ मंत्र में भी णमोकार मंत्र के पाँचों पद समाहित हो जाते हैं।
जैसे की ‘अरिहंत’ का ‘अ’, सिद्ध (अशरीरी) का अ, आचार्य का ‘आ’, उपाध्याय का ‘उ’ और साधु अर्थात् मुनि का ‘म’, इस प्रकार अ+अ+आ+उ+म· ओम्’ बना।
12.णमोकार मंत्र दुःख में , सुख में , डर के स्थान , मार्ग में , भयानक स्थान में , युद्ध के मैदान में एवं कदम कदम पर णमोकार मंत्र का जाप करना चाहिए । यथा –
दुःखे – सुखे भयस्थाने , पथि दुर्गे – रणेSपि वा ।
श्री पंचगुरु मंत्रस्य , पाठ : कार्य : पदे पदे ॥
13.णमोकार मंत्र ९ या १०८ बार जपते हैं क्योकि ९ का अंक शाश्वत है उसमें कितनी भी संख्या का गुणा करें और गुणनफल को आपस में जोड़ने पर ९ ही रहता है । जैसे ९*३ =२७ , २ + ७ = ९
14.कर्मों का आस्रव १०८ द्वारों से होता है , उसको रोकने हेतु १०८ बार णमोकार मंत्र जपते हैं । प्रायश्चित में २७ या १०८ , श्वासोच्छवास के विकल्प में ९ या २७ बार णमोकार मंत्र पढ़ सकते हैं ।
णमोकार मंत्र का अपमान करने वाले का परिणाम– सुभौम चक्रवर्ती छ: खण्डों का स्वामी था। एक ज्योतिष्क देव ने शत्रुता से राजा को मारना चाहा परन्तु राजा के णमोकार मंत्र जपने से वह मार नहीं सका। तब उसने छल से राजा से कहा कि तुम इस णमोकार मंत्र पर पैर रख दो तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा। राजा ने वैसा ही किया। मंत्र के अपमान करने के कारण देव ने उसे समुद्र में डुबोकर मार दिया और वह मरकर सांतवें नरक में चला गया।

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