-ललित गर्ग-
पूरी दुनिया में बाल श्रम एक ज्वलंत समस्या है, कैसा विरोधाभास है कि हमारा समाज, सरकार और राजनीतिज्ञ बच्चों को देश का भविष्य बताते हुए नहीं थकते लेकिन क्या इस उम्र के लगभग 25 से 30 करोड़ बच्चों से बाल मजदूरी के जरिए उनका बचपन और उनसे पढने का अधिकार छीनने का यह सुनियोजित षड्यंत्र नहीं लगता? बचपन इतना डरावना एवं भयावह हो जायेगा, किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। आखिर क्या कारण है कि बचपन अपराध एवं बाल श्रम की अंधी गलियों में जा रहा है? बचपन इतना उपेक्षित क्यों हो रहा है? बचपन के प्रति न केवल अभिभावक, बल्कि समाज और सरकार इतनी बेपरवाह कैसे हो गयी है? यह प्रश्न विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाते हुए हमें झकझोर रहे हैं। पूरी दुनिया में प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की पहल अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने की थी, जिसका मकसद बाल श्रम को रोकना था। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2024 की आधिकारिक थीम है- ‘आइए अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करें-बाल श्रम समाप्त करें!’ यह दिन जागरूकता बढ़ाने, परिवर्तन की वकालत करने तथा बाल श्रम से मुक्त भविष्य की दिशा में योगदान देने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है।
मालूम हो कि इसको मनाने के पीछे एक खास वजह यह थी कि बच्चों को मजदूरी न कराकर उनको स्कूलों की ओर शिक्षा के लिए प्रेरित किया जा सके। मालूम हो कि बाल श्रम लगातार एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है, जिसके कारण बच्चों का बचपन गर्त में जा रहा है और उनको अपना अधिकार नहीं मिल पा रहा है। उनका यह बचपन रूपी भविष्य आज बाल श्रम के कारण नशे, अपराध एवं जटिलताओं की दुनिया में धंसता चला जा रहा है। जब हम किसी गली, चौराहे, बाजार, सड़क और हाईवे से गुजरते हैं और किसी दुकान, कारखाने, रैस्टोरैंट या ढाबे पर 12-14 साल के बच्चे को टायर में हवा भरते, पंक्चर लगाते, चिमनी में मुंह से या नली में हवा फूंकते, जूठे बर्तन साफ करते, गारा उठाते, या खाना परोसते देखते हैं और जरा-सी भी कमी होने पर उसके मालिक से लेकर ग्राहक द्वारा गाली देने से लेकर, धकियाने, मारने-पीटने और दुर्व्यवहार होते देखते हैं तो अक्सर ‘हमें क्या लेना है’ या ज्यादा से ज्यादा मालिक से दबे शब्दों में उस मासूम पर थोड़ा रहम करने के लिए कहकर अपने रास्ते हो लेते हैं। लेकिन कब तक हम बचपन को इस तरह प्रताड़ित एवं उपेक्षा का शिकार होने देंगे।
बचपन से जुड़ी इस त्रासद एवं दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों पर नियंत्रण के लिये, बाल श्रम के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और इसको पूरी तरह से समाप्त करने के लिए व्यक्ति, गैर सरकारी संगठन एवं सरकारी संगठनों को प्रेरित करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, पिछले दो दशकों से पूरी दुनिया में बाल श्रम को कम करने के लिए लगातार पहल की जा रही है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों के दौरान संघर्षों, संकटों और कोरोना महामारी ने विश्व में कई परिवारों को गरीबी में धकेल दिया है, जिसके कारण लाखों बच्चों को बाल श्रम के लिए मजबूर होना पड़ा है। आज का बालक ही कल के समाज का सृजनहार बनेगा। बालक का नैतिक रूझान व अभिरूचि जैसी होगी निश्चित तौर पर भावी समाज भी वैसा ही बनेगा। आज दुनिया में 160 मिलियन बच्चे अभी भी बाल श्रम में लगे हुए हैं। यह दुनिया भर में लगभग दस में से एक बच्चा है। बाल श्रम के मामले में अफ्रीका सभी क्षेत्रों में सबसे ऊपर है। अफ्रीका और एशिया और प्रशांत क्षेत्र में दुनिया भर में बाल श्रम में लगे हर दस बच्चों में से लगभग नौ बच्चे बाल-श्रमिक हैं। शेष बाल श्रमिक आबादी अमेरिका (11 मिलियन), यूरोप और मध्य एशिया (6 मिलियन) और अरब राज्यों (1 मिलियन) में विभाजित है। जबकि बाल श्रम में बच्चों का प्रतिशत निम्न आय वाले देशों में सबसे अधिक है, वास्तव में उनकी संख्या मध्यम आय वाले देशों में अधिक है। निम्न-मध्यम आय वाले देशों में 9 प्रतिशत बच्चे और उच्च-मध्यम आय वाले देशों में 7 प्रतिशत बच्चे बाल श्रम में हैं।
पिछले कुछ वर्षों में बाल श्रम को कम करने में बहुत प्रगति हुई है, हाल के वर्षों में वैश्विक रुझान उलट गए हैं और अब पहले से कहीं अधिक यह महत्वपूर्ण है कि सभी रूपों में बाल श्रम को समाप्त करने की दिशा में कार्रवाई में तेजी लाने के लिए मिलकर काम किया जाए। 2022 में बाल श्रम के उन्मूलन पर 5वें वैश्विक सम्मेलन के बाद प्रतिनिधियों द्वारा अपनाई गई डरबन कॉल टू एक्शन रास्ता दिखाती है। अब बाल श्रम के उन्मूलन को वास्तविकता बनाने का समय आ गया है। मालूम हो कि बाल श्रम का प्रमुख कारण गरीबी है, जिसके कारण बच्चों को पढ़ाई छोड़कर मजबूरी में मजदूरी का रास्ता चुनना पड़ता है। हालांकि, कई बच्चों को अपराध रैकेट द्वारा बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता है। भारत की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तो लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। इन बाल श्रमिकों में से 19 प्रतिशत के लगभग घरेलू नौकर हैं, ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में तथा कृषि क्षेत्र से लगभग 80 प्रतिशत जुड़े हुए हैं। शेष अन्य क्षेत्रों में, बच्चों के अभिभावक ही बहुत थोड़े पैसों में उनको ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो अपनी व्यवस्था के अनुसार उनको होटलों, कोठियों तथा अन्य कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। उनके नियोक्ता बच्चों को थोड़ा सा खाना देकर मनमाना काम कराते हैं। 18 घंटे या उससे भी अधिक काम करना, आधे पेट भोजन और मनमाफिक काम न होने पर पिटाई यही उनका जीवन बन जाता है।
केवल घर का काम नहीं इन बालश्रमिकों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले बनाना, पीतल उद्योग में काम करना, कांच उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस, बीड़ी बनाना, खेतों में काम करना (बैल की तरह), कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, सीमेंट उद्योग, दवा उद्योग में तथा होटलों व ढाबों में झूठे बर्तन धोना आदि सभी काम मालिक की मर्जी के अनुसार करने होते हैं। इन समस्त कार्यों के अतिरिक्त कूड़ा बीनना, पोलीथिन की गंदी थैलियाँ चुनना, आदि अनेक कार्य हैं जहाँ ये बच्चे अपने बचपन को नहीं जीते, नरक भुगतते हैं परिवार का पेट पालते हैं। इनके बचपन के लिए न माँ की लोरियां हैं न पिता का दुलार, न खिलौने हैं, न स्कूल न बालदिवस। इनकी दुनिया सीमित है तो बस काम काम और काम, धीरे धीरे बीड़ी के अधजले टुकड़े उठाकर धुआं उडाना, यौन शोषण को खेल मानना इनकी नियति बन जाती है। इन कमजोर नींवों पर हम कैसे एक सशक्त राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं? बच्चों को बचपन से ही आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर हकीकत में हम उन्हें पैसा कमाकर लाने की मशीन बनाकर अंधकार में धकेल रहे हैं। बचपन बचाओ आंदोलन, चाइल्ड फंड, केयर इंडिया, तलाश एसोसिएशन, चाइल्ड राइट्स और ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर आदि संस्थाओं ने बाल श्रम खत्म करने की दिशा में सार्थक पहल की है।
बाल मजदूरी से बच्चों का भविष्य अंधकार में जाता ही है, देश भी इससे अछूता नहीं रहता क्योंकि जो बच्चे काम करते हैं वे पढ़ाई-लिखाई से कोसों दूर हो जाते हैं और जब ये बच्चे शिक्षा ही नहीं लेंगे तो देश की बागडोर क्या खाक संभालेंगे? इस तरह एक स्वस्थ बाल मस्तिष्क विकृति की अंधेरी और संकरी गली में पहुँच जाता है और बाल-श्रमिक एवं अपराधी की श्रेणी में उसकी गिनती शुरू हो जाती हैं। ऐसा न हो इसके लिए आवश्यक है कि अभिभावकों और बच्चों के बीच बर्फ-सी जमी संवादहीनता एवं संवेदनशीलता को फिर से पिघलाया जाये। फिर से उनके बीच स्नेह, आत्मीयता और विश्वास का भरा-पूरा वातावरण पैदा किया जाए। सरकार को बच्चों से जुड़े कानूनों पर पुनर्विचार करना चाहिए एवं बच्चों के समुचित विकास के लिये योजनाएं बनानी चाहिए। ताकि इस बिगड़ते बचपन और भटकते राष्ट्र के नव पीढ़ी के कर्णधारों का भाग्य और भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।