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” भारतीय लोकतंत्र लोकगाथा”*

“1- भारतं भारते भाति,भारते भाति भारती।
” विभाति भारते भानुः,भक्ताः विभान्ति भारते।।”
भावार्थ- मेरा भारत (भा में निरंतर रत रहने वाला )भारत में विभासित हो रहा है,भारती ( सरस्वती ) भारत में भासमान हो रही है,भानु ( भास्कर अपनी आभा से )भारत में विभासित हो रहा है और भक्तगण ( अपनी भक्ति से ) भारत में भासमान हो रहे हैं।
“2- लोकतन्त्रं महातन्त्रं,लोकतन्त्रं मयस्करम्।”
” लोकतन्त्रं महालोके,लोकतन्त्रं हि भारते।।”
भावार्थ- लोकतंत्र महान तंत्र है,लोकतंत्र सुख एवं शांति संवर्धक है,इस महालोक में लोकपति का लोकतंत्र है,भारत में निश्चय से ही लोकतंत्र है।
“3- विजयो लोकतन्त्रस्य,लोकोत्सवो महोत्सवः।”
” महालोके महालोकाः,लोकतन्त्रानुगामिनः।।”
भावार्थ- आज लोकतंत्र की महाविजय है,आज लोकतंत्र का लोकोत्सव और महोत्सव है,इस महान लोक में महान लोग महान लोकतंत्र के अनुगामी हैं।
“4- लोकतंत्रस्य मूल्यानि,लोकतन्त्रस्य वैभवम्।”
” लोकतंत्रस्य गाथा वै,लोकतन्त्रस्य गायनम्।।”
भावार्थ-लोकतंत्र के महान मूल्य ( सिद्धान्त, नियम आदि ), लोक में लोकतंत्र का वैभव (प्रभाव,प्रताप ),लोकतंत्र की निश्चय ही महान यशगाथा और लोकतंत्र की महानता का गायन मिलकर करें।
“5- लोकतन्त्रं प्रभो! भातु, भूमण्डले च भारते।”
” लोकतन्त्रं महानन्दं,प्रभो!चन्द्रस्य प्रार्थना।।”
भावार्थ-हे प्रभो! आपकी परम कृपा से यह लोकतंत्र भारत में और भूमण्डल में अपनी लोकप्रियता से सदा भासमान हो,यह लोकतंत्र ही सदा आनन्द (सुख,समृद्धि,शांति,सद्भाव और प्रगति ) को देने वाला हो, हे प्रभो! यही पावन प्रार्थना और सर्वकल्याण की कामना आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा के मन की है।
” लोकतंत्रगाथागायकः”
आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा
स्वस्ति-सदन, ग्वालियर।

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