महर्षि दयानन्द का पर्यावरण चिंतन

महर्षि दयानन्द जी ने अपनी पुस्तक गौकरूणानिधि नामक पुस्तक पर्यावरण की रक्षा के विषय में लिखते हैं–

इसीलिये आर्यावर्त्तीय राजा, महाराजा, प्रधान और धनाढ़्य लोग आधी पृथ्वी में जंगल रखते थे कि जिससे पशु और पक्षियों की रक्षा होकर औषधियों का सार दूध आदि पवित्र पदार्थ उत्पन्न हों, जिनके खाने पीने से आरोग्य, बुद्धि-बल, पराक्रम आदि सदगुण बढ़ें।

वृक्षों के अधिक होने से वर्षा-जल और वायु में आर्द्रता और शुद्धि अधिक होती है। पशु और पक्षी आदि के अधिक होने से खाद भी अधिक होता है।

परन्तु इस समय के मनुष्यों का इससे विपरीत व्यवहार है कि जंगलों को काट और कटवा डालना, पशुओं को मार और मरवा खाना और विष्‍टा आदि का खात खेतों में डाल अथवा डलवा कर रोगों की वृद्धि करके संसार का अहित करना, स्वप्रयोजन साधना और परप्रयोजयन पर ध्यान न देना; इत्यादि काम उल्टे हैं।

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