आज आर्य जगत के एक महान शिक्षाशास्त्री महात्मा हंसराज जी के सुपुत्र बलराज भल्ला का जन्म दिवस है । बलराज भल्ला एक ऐसे क्रांतिकारी हैं जिनका नाम इतिहास से पूर्णतया गायब कर दिया गया है । 10 जुलाई 1888 को गुजरान्वाला पंजाब में जन्मे बलराज भल्ला को 1919 में वायसराय की गाड़ी पर बम फेंकने के आरोप में 3 वर्ष की कठोर सजा दी गई थी । इसके साथ-साथ उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में भी जेल की कठोर यातनाएं सहन करनी पड़ी थीं ।लाला लाजपत राय की विचारधारा से प्रेरित बलराज भल्ला उस समय क्रांतिकारी आंदोलन के दैदीप्यमान नक्षत्रों में से एक माने जाते थे ।स्वतंत्रता के उपरांत जब देश का इतिहास कांग्रेसी सरकारों में लिखवाया तो उसमें यह व्यवस्था कर दी गई थी कि क्रांतिकारी आंदोलन को हटाकर महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले आंदोलन को प्रमुखता दी जाए। कांग्रेस की इसी देश घाटी सोच के चलते हमारे ऐसे अनेकों क्रांतिकारी हमारे सामने नहीं आ पाए जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए महान कार्य किए थे।इतिहासकार आरसी मजूमदार को यह दायित्व दिया गया था कि वह आजादी की लड़ाई के इतिहास को लिखकर लोगों के सामने लाएं , लेकिन जब उन्होंने उसमें क्रांतिकारी आंदोलन को प्रमुखता दी तो 1954 में जवाहरलाल नेहरू ने उनसे यह काम छीनकर अपने प्रिय डॉ ताराचंद मुल्ला को आजादी का इतिहास लिखने का काम दे दिया था । ताराचंद स्वयं भी एक प्रोफेसर थे ।इस्लामपरस्त होने के कारण उनके विद्यार्थी उनको मुल्ला के उपनाम से पुकारते थे । नेहरू को ऐसा ही आदमी चाहिए था जो इस्लामपरस्त हो और सारे इतिहास का गुड गोबर करके रख दे । बस , यही कारण रहा कि बलराज भल्ला जैसे लोग हमारी आंखों से ओझल हो गए । सचमुच क्या आज फिर अपने इतिहास को लिखने की आवश्यकता नहीं है ?क्रांतिकारी आंदोलन के महान नक्षत्रों के साथ विश्वासघात करने वाले ऐसे देशघाती इतिहास लेखकों के लिए ही मैंने अपनी पुस्तक ‘ हिंदवी स्वराज्य संस्थापक शिवाजी और उनके उत्तराधिकारी ‘ के पृष्ठ संख्या 77 पर लिखा है : —-” उद्यम किया गया है यहां इतिहास के बिगाड़ का ।है वामपंथ ने ठेका लिया भारत के विनाश का ।।सारी परिभाषाएं बदल दी बदल दी सब परंपरा ।निज भाषा दे इतिहास को बदल दिए हैं जल हवा ।।
राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत