भारत की 18 लोकसभाओं के चुनाव और उनका संक्षिप्त इतिहास , भाग 18 ( 2 )

लोगों ने यह भी विचार किया…

18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव के दृष्टिगत यदि हम जनता की दृष्टि से सोचें तो सबसे पहले हमको इस बात पर विचार करना चाहिए कि जिस समय मोदी जी देश के प्रधानमंत्री नहीं थे, उस समय देश की राजनीतिक परिस्थितियों कैसी थीं ? देश की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा कितने संकटों से या खतरों से जूझ रही थी ? देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति क्या थी ? आदि आदि। सबसे पहले देश की राजनीतिक परिस्थितियों पर विचार करते हैं। जिस समय मोदी जी सत्ता में नहीं आए थे, उससे पहले देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था । अटल जी अपने भाषणों में अक्सर कहा करते थे कि देश इस समय संक्रमण काल से गुजर रहा है । उनकी बात का अर्थ था कि देश एक निश्चित व्यवस्था को प्राप्त करने के लिए इस समय संघर्ष कर रहा है। उसने छलांग तो लगा दी है पर अभी छलांग का अपने गंतव्य पर पहुंचना शेष है। संक्रमण काल में सर्वत्र अस्थिरता देखी जाती है। अराजकता, अशांति, असंतोष सब कुछ सर्वत्र दिखाई दिया करता है। देश में नकारात्मक शक्तियों का प्राबल्य हो जाता है।

18 वीं लोकसभा के समय देश के मतदाताओं ने इस बात को गंभीरता से समझा है कि राजनीतिक हितों को साधने वाले लोग अपना-अपना उल्लू सीधा करते हुए देखे जाते हैं। उन्हें इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि उनके ऐसा करने से देश की स्थिति क्या होगी ? उन्हें केवल और केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ की चिन्ता होती है। ऐसे लोग गठबंधन करते हैं । यह अलग बात है कि उनका गठबंधन केवल सत्ता पाने के लिए होता है और वास्तव में यह गठबंधन न होकर ठगबंधन होता है। ऐसे ठगबंधनों का उद्देश्य राजनीतिक शक्ति प्राप्त करके इतिहास की धारा को विकृत करना होता है। इसमें प्रधानमंत्री पद के अनेक दावेदार होते हैं। जिनमें से किसी एक का ही दांव प्रधानमंत्री बनने का लगता है। जो व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने से वंचित रह जाता है वह प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदार लोगों के साथ मिलकर उस प्रधानमंत्री को हटाने की जुगलबंदियों को आरंभ कर देता है। इसका प्रभाव और परिणाम यह होता है कि देश की राजनीति सत्ता के सांप सीढ़ी के खेल में व्यस्त हो जाती है । जिससे नौकरशाहों को भ्रष्टाचार करने का अवसर उपलब्ध होता है। क्योंकि उनके ऊपर बैठे जनप्रतिनिधि कमजोर सिद्ध हो चुके होते हैं। भ्रष्टाचार से देश का आर्थिक विकास प्रभावित होता है। देश के भीतर बैठे राजनीतिक लोग और नौकरशाहों के इस प्रकार के आचरण को देखकर जनता में भी वर्चस्व प्राप्त करने वाले लोग दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं। इस प्रकार सारा देश अस्त व्यस्त और अराजकता का शिकार होकर रह जाता है । देश के भीतर विघटनकारी शक्तियां बलवती होने लगती हैं। देश को तोड़ने के लिए विभिन्न संगठन सक्रिय हो उठते हैं। 18वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आए तो सत्ता के सौदागर और सत्ता स्वार्थी ठगठगबंधनों के नेताओं ने जनादेश का गलत अर्थ निकालना आरंभ कर दिया। उन्होंने कहा कि जनादेश मोदी सरकार के विरुद्ध है। यद्यपि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को लोगों ने स्पष्ट बहुमत देकर भेजा, परंतु उसके उपरांत भी सत्ता स्वार्थी लोगों ने ठगबंधन बनाकर सत्ता को प्राप्त करने के षड़यंत्र करने आरंभ किये। इनके लिए सत्ता षड़यंत्रों का खेल है, और सारे षड़यंत्र सत्ता के लिए होते हैं।

सत्ता की भागीदारी- लूट का प्रमाण पत्र

 सत्ता में भागीदारी करने वाले लोग अपने-अपने भाग की लूट के लिए देश के राजनीतिक नेतृत्व पर दबाव बनाते हैं और वे देश के खजाने में से अधिक से अधिक हिस्सा पाने के लिए कोई ना कोई ऐसा हथकंडा अपनाते रहते हैं जिससे बहती गंगा में अधिक से अधिक हाथ धोने का उन्हें अवसर उपलब्ध हो जाए।

यही वह स्थिति थी जो प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में पहुंचने से पहले सर्वत्र देखी जा रही थी। आप यदि थोड़ा सा अपनी स्मृति पर दबाव बनाएंगे तो आपको अनेक चेहरे ऐसे दिखाई देंगे जो उस समय अपने आप को प्रधानमंत्री पद का दावेदार कहते थे। उनमें मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, मायावती, ममता बनर्जी, शरद पवार, शरद यादव, नीतीश कुमार जैसे लोगों की लंबी सूची थी।
उस समय राजनीति एक ऐसी कीचड़ में धंसी खड़ी थी, जहां से उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। छोटे-छोटे दलों के और छोटे-छोटे दिलों के नेता बड़ी-बड़ी बातें तो करते थे, पर उनके पास ना तो कोई चिंतन था और ना ही देश को चलाने की कोई क्षमता उनके पास थी। राज्य स्तरीय अथवा क्षेत्रीय दलों के नेता भी अपने आप को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते थे। उनकी सोच केवल एक होती थी कि किसी भी प्रकार से यदि उन्हें 20 से 50 तक भी सांसद अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीतकर मिल जाते हैं तो वह देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं और उन सांसदों के बल पर बड़ा राजनीतिक लाभ अर्थात प्रधानमंत्री का पद प्राप्त कर सकते हैं। 18वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम के पश्चात भी कई नेता हैं जिनकी अपनी हैसियत वैसे तो राज्य स्तरीय है ,पर वह अपने कुछ सांसदों के बल पर देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। कोई समय था जब ऐसे नेता अपने सांसदों की संख्या के बल पर वे देश के केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपना स्थान प्राप्त करने में सफल हो जाते थे।
उस समय देश के लोगों को एक ऐसे राजनीतिक नेतृत्व की आवश्यकता बड़ी तीव्रता से अनुभव हो रही थी जो इस प्रकार की सारी राजनीतिक अव्यवस्था और अराजकता के परिवेश को समाप्त करने में सक्षम हो सके। जिसे अटल जी संक्रमण का काल कहते थे, वह वास्तव में राष्ट्र के लिए अमृत मंथन का काल था, चिंतन का काल था। तितिक्षा का काल था। देश का अंतर्मन संक्रमण के उस दुखदायक दौर से बाहर निकलना चाहता था। गठबंधनों के ठगबंधनों से देश दु:खी हो चुका था। वह समस्या का एक स्थाई समाधान चाहता था। देश का जनमानस इस बात के लिए आंदोलित हो चुका था कि अब राष्ट्र को विकास की सही दिशा में लेकर चलने वाले राजनीतिक नेतृत्व को बागडोर दी जाए। जन्माष्टमी की इसी अपेक्षा को पूरा करने के लिए सौभाग्य से देश के आम चावन का समय आया तो 2014 में देश के जागरूक मतदाताओं ने कमान मोदी जी के हाथों में दी। निश्चित रूप से उनके हाथों में दी गई कमान के पीछे का मंतव्य यही था कि देश का जनमानस अब स्थिरता चाहता है, शांति चाहता है, प्रगति चाहता है, विकास चाहता है और इन सबसे बढ़कर अपने राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति में स्वयं की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए वह देश को विश्व गुरु के रूप में स्थापित होते देखना चाहता है। इस प्रकार मोदी जी इन सब अपेक्षाओं का केंद्रीभूत पुंज हैं। पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने देश के जनमानस की उन अपेक्षाओं को पूर्ण करने का सराहनीय प्रयास किया, जिनको लेकर लोगों ने उन्हें देश की कमान सौंपी थी। माना जा सकता है कि मोदी जी ने अपने पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल में द्रुतगति से कई समस्याओं का सफलतापूर्वक समाधान दिया है। प्रत्येक क्षेत्र में देश को स्थिरता प्रदान की है , परंतु इस सबके उपरांत भी अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। उस शेष के लिए ही उन्हें 18वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम के रूप में जनादेश प्राप्त हुआ है।

प्रधानमंत्री मोदी की वापसी

भाजपा ने 18वीं लोकसभा के चुनाव को 400 पार के नारे के साथ लड़ना आरंभ किया था। परंतु चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि भाजपा 300 पार भी नहीं कर पाई है। इसके उपरांत भी हमें इस जनादेश पर अधिक निराश होने की आवश्यकता नहीं है।  इसे समझने के लिए स्वाधीनता उपरांत के इतिहास के उस उदाहरण की ओर जाना चाहिए जब 1977 में इंदिरा गांधी को लोगों ने सत्ता से बाहर किया था। उस समय भी विपक्ष ने एकजुटता का परिचय देते हुए सत्ता के विरुद्ध गठबंधन किया था। जिसमें लोगों ने विपक्षी एकता पर अपनी सहमति की मोहर लगाई थी। परंतु 18 वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट है कि चाहे विपक्ष पहले से अधिक मजबूत हो गया हो परंतु जनादेश मोदी के विरुद्ध नहीं है। लोगों को विपक्ष ने चाहे कितना ही भ्रमित कर दिया हो, परंतु उन्होंने मोदी के साथ अपने जुड़ाव में और प्यार में किसी प्रकार की कमी नहीं आने दी है। यही कारण है कि चुनाव परिणाम आने पर लोकसभा में बहुमत के लिए आवश्यक 272 के आंकड़े से भी अधिक 291 सांसद लोगों ने एनडीए के नाम पर चुनकर भेजे हैं। यहां पर यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि राजग चुनाव पूर्व अस्तित्व में था। यह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अर्थात यूपीए की तर्ज पर सत्ता प्राप्ति के लिए चुनाव परिणाम आने के पश्चात बना ठगबंधन नहीं है। चुनाव परिणाम आने के पश्चात बना कोई भी राजनीतिक गठबंधन ठगबंधन ही होता है। यह संविधान की आत्मा के विरुद्ध होता है। इससे संविधान की आत्मा का हनन होता है, परंतु जो गठबंधन चुनाव पूर्व ही अस्तित्व में हो, यदि उसे लोग सरकार बनाने का बहुमत दे रहे हैं तो यह पूर्णतया न्याय संगत और संविधान सम्मत ही कहा जाएगा कि वह गठबंधन सरकार बनाए।
     यह एक उत्साहजनक तथ्य है कि 18वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों ने एक इतिहास रचते हुए स्वयं इतिहास को ही प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष लाकर खड़ा कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी इतिहास के पास नहीं गए हैं अपितु कहना पड़ेगा कि इतिहास स्वयं चलकर मोदी जी के समक्ष आ खड़ा हुआ है। आज देश का जनमानस ही नहीं , स्वयं इतिहास भी उनका अभिनंदन कर रहा है। निरंतर तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनने का गौरव उनसे पहले केवल पंडित जवाहरलाल नेहरू को ही प्राप्त हुआ था। जिन्होंने 1952 ,1957 और 1962 का चुनाव लड़कर तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी। श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने जीवन काल में 1967 और 1971 में निरंतर दो चुनाव लड़कर प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी ,परंतु 1977 में जब उनके कार्यकाल में तीसरी बार लोकसभा के चुनाव हुए तो वह चुनाव हार गई थीं। 

प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 2014 ,2019 और अब 2024 में निरंतर तीसरी बार चुनाव जीतकर और अपने लिए स्पष्ट जनादेश लेकर इतिहास को अपने सामने झुकने के लिए भी विवश कर दिया है।
यद्यपि भाजपा के अपने बल पर स्पष्ट बहुमत न लेने की बात भी बहुत विचारणीय है।
आज इतिहास श्री मोदी को एक इतिहास पुरुष के रूप में देख रहा है। दसों दिशाएं उनका अभिनंदन कर रही हैं। उनका पुरुषार्थ, परिश्रम और तेजस्वी नेतृत्व इतिहास की धरोहर बन चुके हैं। वह एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं । जिससे भारतीय धर्म परंपरा को वैश्विक मंचों पर अभिनन्दित होने का शुभ अवसर उपलब्ध हो रहा है। देश के विपक्षी नेताओं ने और प्रधानमंत्री मोदी के विरोधियों ने उन्हें जितना अधिक घेरने का प्रयास किया वह उतने ही अधिक मुखरित होकर सामने आए। अपने विरोधियों पर हमला करते हुए वह कहते भी रहे कि उन पर जितना ही अधिक कीचड़ उछाला जाएगा, ‘ कमल ‘ उतना ही अधिक खिलेगा। यही हुआ भी। देश के लोगों ने उन्हें सरकार बनाने का एनडीए के नेता के रूप में स्पष्ट जनादेश किया है। इसके साथ यह बात भी स्पष्ट है कि हाथ का पंजा और साइकिल भी मजबूत हुए हैं।
इस चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे0पी0 नड्डा ने आरएसएस के लिए कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आवश्यकता भाजपा को अटल जी के जमाने में थी, अब हमें उसकी आवश्यकता नहीं है। उनका यह बयान और भाजपा के नेताओं की आरएसएस के प्रति उपेक्षापूर्ण सोच का ही यह परिणाम रहा कि भाजपा सरकार की नीतियों को आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने घर-घर तक पहुंचाने में संकोच किया। यह एक सर्वमान्य सत्य है कि जब कोई भी पार्टी या राजनीतिक संगठन किसी एक व्यक्ति के भरोसे रह जाता है तो उसका परिणाम नकारात्मक ही आता है। कांग्रेस का पतन भी इसीलिए हुआ था कि वह एक व्यक्ति या एक परिवार के अधीन होकर रह गई थी।
कार्यकर्ताओं के आधार पर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने का दम भरती रही है। यदि उसके एक कार्यकर्ता ने दो-चार मतदाताओं को भी अपने साथ लगा लिया होता और उसे मतदान स्थल तक पहुंचाने का अपना दायित्व निर्वाह किया होता तो आज भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करती, पर ऐसा हुआ नहीं।
विपक्ष के नेताओं ने झूठे विमर्श तैयार किये। उन्होंने ” संविधान खतरे में है ” का नारा लगाकर ” इस्लाम खतरे में है ” की तर्ज पर ” जय भीम और जय मीम ” के नारे को ऊर्जा प्रदान कर दी। विपक्ष की इस खतरनाक चाल का परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेश में बहुत बड़ा खेल हो गया। बसपा का वोटर भी मुसलमान के साथ मिलकर सपा के साथ जा बैठा।
जिससे भाजपा को भारी हानि उठानी पड़ी। राजनीति में झूठ को पंख लगाना कोई बड़ी बात नहीं है और जब झूठ को पंख लग जाते हैं तो वह इतनी तेजी से वायरस बनाकर फैलता है कि सब कुछ सर्वनाश कर देता है। इस लोकसभा चुनाव में यही हुआ है।
मोदी जी सत्ता में तो आ गए हैं , परंतु जिस उत्साह के साथ उनकी वापसी होनी चाहिए थी वैसी वापसी नहीं हो सकी है। इससे समान नागरिक संहिता को लागू करने , पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने और जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानून लागू करने के उनके काम प्रभावित होंगे। सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें कई सिद्धांतों से समझौता भी करना पड़ सकता है। क्योंकि अब उनकी नाव में ऐसे लोग बैठे होंगे जो कभी भी बंदर की तरह छलांग लगाकर नाव को डुबोने का काम कर सकते हैं। इसलिए बहुत सावधानी के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा।
देश की 18वीं लोकसभा के चुनावों की घोषणा 16 मार्च 2024 को की गई थी। जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि लोकसभा के लिए मतदान की तिथियां 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून हैं। बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सभी सात चरणों में मतदान किए जाने के कार्यक्रम को भी स्पष्ट किया गया। चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि मतों की गिनती 4 जून को होगी। भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त श्री राजीव कुमार ने इस कार्यक्रम की घोषणा की थी। 4 जून को आए चुनाव परिणाम से भाजपा को 291 और कांग्रेस नीत गठबंधन को 236 सीटें प्राप्त हुईं।

देश के लोगों का धन्यवाद …

इससे पहले प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जिस प्रकार अपने कहे अनुसार अयोध्या स्थित राम मंदिर का निर्माण समय अवधि के भीतर कराया और उसका 22 जनवरी 2024 को विधिवत उद्घाटन कर उसे राष्ट्र के लिए समर्पित किया, उस एक घटना ने ही उनकी सत्ता में वापसी सुनिश्चित कर दी थी। यदि उस समय देश में चुनाव हो गए होते तो निश्चित रूप से भाजपा को जितनी सीटें अब मिली हैं, उससे बहुत अधिक सीटें उसे उसी समय संपन्न हुए चुनावों में मिल जातीं। 18 वीं लोकसभा में जिस प्रकार भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर जीत प्राप्त की है उसका एक कारण यह भी है कि राम मन्दिर जैसे भावनात्मक मुद्दे को लेकर जहां प्रधानमंत्री श्री मोदी ने विपक्ष को घेरने में सफलता प्राप्त की, वहीं इस मुद्दे को लेकर विपक्ष नकारात्मक हिंदू विरोध की राजनीति करता रहा। प्रधानमंत्री श्री मोदी की वापसी को सुनिश्चित करने वाला जनादेश देकर देश के लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जिस प्रकार 2019 में कश्मीर के लिए संविधान में चली आ रही धारा 370 को हटाने का काम किया था, वह उसे भली प्रकार याद है। लोगों ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री श्री मोदी जिस प्रकार तीन तलाक के मुद्दे को लेकर संवेदनशील हुए और उन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर न चलकर मुसलमानों की आधी आबादी को सुख की सांस लेने के लिए खुली हवाएं उपलब्ध कराईं , उस पर देश का जनमानस उनके साथ है।
देश के मतदाताओं ने प्रधानमंत्री श्री मोदी की वापसी इसलिए भी की है कि वही देश में समान नागरिक संहिता ला सकते हैं । वही जनसंख्या नियंत्रण कानून ला सकते हैं और वही पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में लाने की क्षमता रखते हैं। देश का मतदाता इन तीनों कामों को पूर्ण होता हुआ देखना चाहता है। देश के मतदाता ने अपने आपको किसी जाति, संप्रदाय ,भाषा या प्रांत की संकीर्णता में न फंसाकर अपने व्यापक दृष्टिकोण का परिचय देते हुए संतुलित जनादेश देकर प्रधानमंत्री श्री मोदी से यह भी अपेक्षा की है कि वह देश को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट दिलाने में सफल होंगे।
भारत के स्वाधीनता आंदोलन के समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने नारा लगाया था कि ” तुम मुझे खून दो – मैं तुम्हें आजादी दूंगा ” । आज के प्रधानमंत्री श्री मोदी का भी अपने आचरण की भाषा से यही नारा रहा है कि ” तुम मुझे वोट दो – मैं तुम्हें सब प्रकार की ” गारंटी ” दूंगा।” लोगों ने वोट दे दिया है , परन्तु वोट के बदले वह अपनी गारंटी भी चाहता है। जी हां , देश की सुरक्षा की गारंटी। देश की समृद्धि की गारंटी। देश के वैश्विक नेतृत्व की गारंटी और इस सब के उपरान्त उसकी अपनी सुख, शांति , समृद्धि और अवसर की समानता की गारंटी। 4 जून को जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आए तो प्रधानमंत्री श्री मोदी ने नई दिल्ली स्थित भाजपा के कार्यालय में उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए आज भी देश प्रथम ही रहेगा, इसलिए वह कठोर निर्णय लेने में अभी भी किसी प्रकार का संकोच नहीं करेंगे। उन्होंने देश के कोटि-कोटि मतदाताओं को भी धन्यवाद दिया, जिनके कारण वह सत्ता में निरंतर तीसरी बार आने में सफल हुए हैं।
इससे पूर्व प्रधानमंत्री अपनी चुनावी सभाओं में कहते रहे हैं कि ” मोदी है तो मुमकिन है ” और ” मोदी की गारंटी ” ही सब समस्याओं का एकमात्र समाधान है। लोगों ने ” मोदी की गारंटी ” पर विश्वास करके अन्य सभी नेताओं की गारंटीयों को मूल्यहीन घोषित कर दिया है। लोगों ने अन्य नेताओं की हवा हवाई बातों पर भरोसा न करके ” मोदी की गारंटी ” को ही अपने लिए ठोस गारंटी के रूप में स्वीकार किया है। लोगों ने भाजपा व उसके साथियों को प्रचंड बहुमत देकर ” मोदी की गारंटी ” के भरोसे पर अपने भरोसे अर्थात अपनी वोट की मुहर लगाई है।
18वीं लोकसभा के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी को मिली यह सफलता उनकी व्यक्तिगत सोच और कार्य प्रणाली की जीत है। देश के मतदाताओं ने उन पर विश्वास करके एक बार पुनः उन्हें बड़ा दायित्व सौंप दिया है। हमें आशा करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री श्री मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में निर्बाध और निरंतर देश सेवा करते हुए नये कीर्तिमान स्थापित करेंगे और देश उनके नेतृत्व में निरंतर आगे बढ़ता रहेगा।

देश के कुल मतदाता कितने हैं ?

संशोधन मतदाता सूची 2019 के अंतिम प्रकाशन के समय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदान केंद्रों की संख्या 1035919 थी। उस समय राज्यों और  केन्‍द्रशासित प्रदेशों में सामान्य मतदाताओं की संख्‍या 896076899 थी। दिव्‍यांग सामान्य मतदाताओं की संख्‍या 4563905 थी। प्रवासी भारतीय मतदाताओं की कुल संख्‍या 71735 थी। सेवा मतदाताओं की कुल संख्‍या 1662993 थी। इस प्रकार 2019 की मतदाता सूची के लिए मतदाताओं की कुल संख्या 897811627 रही थी।
2024 में 18 वीं लोकसभा के चुनाव के समय चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार भारत में 96 करोड़ 88 लाख कुल मतदाता हैं। इनमें से 6% मतदाता नए जुड़े हैं जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2.63 करोड़ नए मतदाताओं ने अपना पंजीकरण कराया है। इन नए मतदाताओं में महिलाओं की भागीदारी अधिक है। 1.41 करोड़ महिला मतदाता हैं। जबकि इनमें पुरुष मतदाताओं की भागीदारी केवल 1.22 करोड़ ही है।
18वीं लोकसभा का चुनाव 19 अप्रैल से आरंभ होकर 1 जून 2024 तक चला। कुल 7 चरणों में संपन्न हुए इस लोकसभा चुनाव में देश के कुल 65.14 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया। देश की पहली लोकसभा के चुनाव 1952 में हुए थे। लोकसभा के पहले चुनाव 4 महीने में संपन्न हुए थे। उसके बाद 1957 से लेकर आज तक जितने भर भी लोकसभा चुनाव हुए हैं, उन सबकी अपेक्षा 18वीं लोकसभा की चुनावी प्रक्रिया सबसे लंबी रही है।1980 में तो केवल 4 दिन में ही चुनाव संपन्न हो गए थे। जबकि 2019 के चुनाव 39 दिन में संपन्न हुए थे।

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