शिव शरण त्रिपाठी
ममता बनर्जी सरकार को बुधवार को एक और करारा झटका लगा है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायाधीश राजशेखर मंथा की पीठ ने बुधवार को कहा कि 2010 के बाद जितने भी ओबीसी प्रमाण पत्र जारी किए गए है वह कानून के मुताबिक नहीं बनाए गए हंै। इसलिए उन्हे रद्द किया जाना चाहिए, लेकिन साथ ही हाई कोर्ट ने कहा कि इस निर्देश का उन लोगों पर कोई असर नहीं होगा जो पहले ही इस प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी पा चुके हंै या नौकरी पाने की प्रक्रिया में हंै। अन्य लोग अब इस प्रमाण पत्र का उपयोग रोजगार प्रक्रिया में नहीं कर सकेगें। पीठ ने कहा कि इसके बाद राज्य विधान सभा को यह तय करना है कि ओबीसी कौन होगा। पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ओबीसी की सूची निर्धारित करेगा। इसी सूची को राज्य विधानसभा को भेजना होगा। जिनके नाम विधानसभा द्वारा अनुमोदित किए जाएंगे उन्हे भविष्य में ओबीसी माना जाएगा।
जिस मामले के आधार पर हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया वह मामला 2012 में दायर किया गया था।
उच्च न्यायालय के उक्त फ ैसले का मुख्य विपक्षीदल भाजपा ने जहां स्वागत किया है वहीं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी एक बार पुन: बौखला गई हैं। उन्होने ऐलानिया कहा है कि मंै इस निर्णय को स्वीकार नहीं करूंगी। बंगाल सरकार द्वारा लाया गया ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा। इसे कोई नहीं छीन सकता है। हमने घर-घर सर्वेक्षण करने के बाद विधेयक बनाया था। मंत्रिमंडल तथा विधान सभा ने इसे पारित कर दिया था। जज को निर्देश देकर यह फ ैसला कराया गया है।
हाईकोर्ट के फ ैसले पर ममता बनर्जी का यह कोई पहला हमला नहीं है। इसके पूर्व बीते माह २२ अप्रैल को वो २०१४ में हुये २४ हजार शिक्षकों की भर्ती को हाईकोर्ट द्वारा अवैध करार देकर सभी को मिले वेतन को वापस करने का आदेश देने के बाद भी ममता बनर्जी आपे से बाहर हो गई थी। उन्होने इस फैसले की कड़ी आलोचना की और सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी दी। फि लहाल सुप्रीम कोर्ट ने कुछ बिन्दुओं को लेकर हाई कोर्ट के फ ैसले पर रोक लगा दी। किन्तु फ ौरीतौर पर सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे सरकार का घोटाला मान लिया है।
भला देश पश्चिम बंगाल सरकार की नाक के नीचे हुये संदेश खाली कांड को कैसे भूल सकता है। यह कांड पूरी तरह मुस्लिम तुष्टीकरण का नतीजा रहा है। जिस तरह ममता के एक खास गुर्गे शाहजहां शेख और उसके साथी संदेश खाली की महिलाओं का खुलेआम शोषण करते रहे यदि मामले की जांच सीबीआई को न मिली होती और एक पीड़िता का वीडियो वायरल न हुआ होता तो शायद दुनिया के सामने दरिंदे शेख की करतूतों का पर्दाफ ाश न होता। यही नहीं करोड़ों के राशन घोटाले की जांच करने वाली ईडी टीम पर हमला करने वाले शेख को बचाने की ममता सरकार ने हर संभव कोशिश की परन्तु हाईकोर्ट के कड़े रूख के बाद सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने पर ममता सरकार को उसे सीबीआई को सौंपना ही पड़ा।
ममता बनर्जी पहले राज्यपाल जगदीप धनक्कड़ को भाजपा का एजेन्ट बताती रही थीं और अब राज्यपाल सी.वी. आनन्द बोस पर भी वही आरोप लगाती दिखती हैं। राज्यपाल बोस की घेराबंदी करने की मंशा से उन पर युवती के यौन उत्पीड़न तक का आरोप लगवा दिया गया और फि र राज्यपाल के इस्तीफे तक की मांग की गई।
हालांकि राज्यपाल ने अपने ऊपर लगे आरोपों का कड़ा प्रतिबाद करते हुये कहा कि ममता बनर्जी की राजनीति गंदी है। फि र भी मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा कि वो उन्हे बचा लें। लेकिन यह भगवान के लिये भी मुश्किल है। मंै राज्यपाल के प्रतिष्ठित पद पर इस दादागीरी को कभी स्वीकार नहीं करूंगा।
ममता बनर्जी ने जहां संवैधानिक संस्थाओं का अपमान करने, उन्हे नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है वहीं वो केन्द्र सरकार के आदेशों, कानूनों का पालन न करने का खुलेआम ऐलान करने से गुरेज नहीं करती। वो बार-बार दोहराती हैं कि गठबंधन की सरकार बनने पर वो सीएए (संशोधित नागरिकता कानून) एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण) और यूसीसी (समान नागरिक संहिता) जैसे कानून को रद्द करने का काम करेगी।
यहां बताने की जरूरत नहीं है कि किस तरह पंश्चिम बंगाल के हर चुनाव में चाहे वो पंचायत चुनाव हो, चाहे विधान सभा चुनाव और चाहे आम चुनाव भारी हिंसा होती रही है। भारी संख्या में लोग मौत के मुंह में धकेल दिये जाते हैं। इससे अधिक चिंता की बात हो भी क्या सकती है कि हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणियों के साथ-साथ निष्पक्ष व हिंसारहित चुनाव कराने के आदेश/निर्देश के बाद भी हर चुनाव खून से सराबोर होते रहे हैं।
यह भी कम चिंता की बात नहीं है कि हर चुनाव में भारी रक्तपात, राज्यपालों के अपमान तथा केन्द्रीय एजेन्सियों पर हमले दर हमले के बावजूद केन्द्र सरकार सिवाय निंदा करने के ममता सरकार का आज तक बाल भी बांका नहीं कर सकी है। ऐसे में यदि पश्चिम बंगाल में ममता सरकार की अराजकता को लेकर केन्द्र सरकार पर भी अंगुलिया उठती रही हैं तो गलत भी नहीं कहा जा सकता है।
‘दि मॉरलÓ में पंचायत चुनाव में हुई भयावह हिंसा पर 11 जुलाई 2023 के अंक में जनाजा लोकतंत्र का! के शीर्षक से ममता सरकार पर गंभीर आरोप लगाये थे। इसी तरह 18 जुलाई 2023 के अंक में यर्थाथ स्तम्भ के तहत केन्द्र सरकार की विवशता को और बाल भी बांका न हो सका ममता बनर्जी का ! शीर्षक के तहत उजागर किया था।