परमात्मा किस प्रकार सर्वोच्च शक्ति है?

परमात्मा किस प्रकार सर्वोच्च शक्ति है?
क्या परमात्मा हमारे सभी सपनों और इच्छाओं को पूर्ण करते हैं?

भूरि त इन्द्र वीर्यं1 तव स्मस्यस्य स्तोतुर्मघवन्काममा पृण।
अनु ते द्यौर्बृहती वीर्यं मम इयं च ते पृथिवी नेम ओजसे।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.57.5

(भूरि) बहुत अधिक (ते) आपकी (इन्द्र) सर्वोच्च शक्ति, परमात्मा (वीर्यम्) बल और शक्ति (तव) आपकी (स्मसि) अधीन (अस्य) मैं जो हूँ (स्तोतु) आपके लिए प्रशंसाओं से पूर्व (मघवन्) सम्पदा और शक्ति से परिपूर्ण, परमात्मा (कामम्) इच्छाएँ (आपृण) पूर्ण (अनु – ममे से पूर्व लगाकर) (ते) आपकी (द्यौः बृहती) बृहद आकाश तथा अन्तरिक्ष (वीर्यम्) शक्ति और बल (अनु ममे) अनुसरण करना और प्रतिनिधित्व करना (इयम्) यह (च) और (ते) आपकी (पृथिवी) धरती (नेम) नतमस्तक (ओजसे) शक्ति के लिए।

व्याख्या:-
परमात्मा किस प्रकार सर्वोच्च शक्ति है?

इन्द्र, सर्वोच्च शक्ति, परमात्मा! मैं आपकी असीम और अत्यधिक शक्तियों और बलों पर निर्भर हूँ। आप सम्पदाशाली तथा शक्तिशाली हैं। मैं आपके प्रति प्रशंसाओं से पूर्ण हूँ। कृपया मेरी इच्छाओं को पूर्ण करो। विशाल आकाश तथा अन्तरिक्ष आपकी शक्तियों और बलों का अनुसरण करते हैं और उनका प्रतिनिधित्व करते हैं तथा धरती माता भी आपकी शक्तियों के कारण आपके समक्ष नतमस्तक होती है।

जीवन में सार्थकता: –
क्या परमात्मा हमारे सभी सपनों और इच्छाओं को पूर्ण करते हैं?

परमात्मा के पास असीम तथा अत्यधिक शक्तियाँ और बल हैं। सभी जीव तथा निर्जीव पदार्थ उसी पर निर्भर हैं। यहाँ तक कि विशाल आकाश, अन्तरिक्ष और यह विशाल भूमि भी उसी का अनुसरण और प्रतिनिधित्व करती है। इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सर्वोच्च मुखिया होने के कारण परमात्मा निश्चित रूप से सबकी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। परन्तु समस्याएँ तब शुरू होती हैं जब मनुष्य अपने अस्तित्व की मूल आवश्यकताओं की सीमाओं को लांघकर इच्छाओं में अति करने लगता है। वह अपनी असीमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए भी योग्य बना दिया जाता है, परन्तु यह उसके स्वयं के लिए कष्टकारी और हानिकारक होता है। जैसे राजा मिडास को यह वरदान मिला कि वह जिस चीज को स्पर्ष करेगा वह वस्तु सोने की बन जायेगी, इस प्रकार अन्ततः उसे भूखा मरना पड़ा। असीमित इच्छाओं के पथ पर, मनुष्य यह भूल जाता है कि इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होतीं, वह स्वयं ही पहले समाप्त हो जाता है। अतः हमें अपनी इच्छाओं पर स्वयं नियंत्रण रखना चाहिए और उन्हें केवल आवश्यकताओं तक सीमित रखना चाहिए।
 


अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें

आप वैदिक ज्ञान का नियमित स्वाध्याय कर रहे हैं, आपका यह आध्यात्मिक दायित्व बनता है कि इस ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें जिससे उन्हें भी नियमित रूप से वेद स्वाध्याय की प्रेरणा प्राप्त हो। वैदिक विवेक किसी एक विशेष मत, पंथ या समुदाय के लिए सीमित नहीं है। वेद में मानवता के उत्थान के लिए समस्त सत्य विज्ञान समाहित है।

यदि कोई महानुभाव पवित्र वेद स्वाध्याय एवं अनुसंधान कार्यक्रम से जुड़ना चाहते हैं तो वे अपना नाम, स्थान, वाट्सएप नम्बर तथा ईमेल 0091 9968357171 पर वाट्सएप या टेलीग्राम के माध्यम से  लिखें।

अपने फोन मैं प्लेस्टोर से टेलीग्राम डाउनलोड करें जिससे आप पूर्व मंत्रो को भी प्राप्त कर सके।
https://t.me/vedas4

आईये! ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्ति परमात्मा के साथ दिव्य एकता की यात्रा पर आगे बढ़ें। हम समस्त पवित्र आत्माओं के लिए परमात्मा के इस सर्वोच्च ज्ञान की महान यात्रा के लिए शुभकामनाएँ देते हैं।

टीम
पवित्र वेद स्वाध्याय एवं अनुसंधान कार्यक्रम
द वैदिक टेंपल, मराठा हल्ली, बेंगलुरू, कर्नाटक
वाट्सएप नम्बर-0091 9968357171

Comment: