बौद्ध पंथ –एक विस्तृत अध्ययन 11

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डॉ डी क गर्ग –भाग-11

नोट : प्रस्तुत लेखमाला ९ भाग में है ,ये वैदिक विद्वानों के द्वारा समय समय पर लिखे गए लेखो के संपादन द्वारा तैयार की गयी है ,जिनमे मुख्य विद्यासागर वर्मा ,पूर्व राजदूत, कार्तिक अय्यर, गंगा प्रसाद उपाधयाय प्रमुख है। कृपया अपने विचार बताये और फॉरवर्ड भी करें ।

बौध धर्म और मांसाहार —

बौद्ध धर्म के ९९ प्रतिशत से ज्यादा मांसाहारी है, यहां तक कि चीन,कोरिया, थाईलैंड,जापान ,श्रीलंका आदि देशों में मांसाहार के नित नए तरीके अपनाए जाते है और यहां के मांस के बाजारों में पशु पक्षियों के प्रति इतनी निर्दयता होती है की बाजार में कमजोर ह्रदय वाले नहीं जा पाएंगे।
इसलिए बौध धर्म में मांसाहार के विषय में प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
इस प्रश्न का उत्तर दो भागो में समझना उचित होगा
1.क्या तथागत बुध मांसाहारी थे?
2.क्या बौद्ध धर्म में मांसाहार की मनाही नहीं है?
ये तथ्य है कि गौतम बुद्ध की विरक्ति का एक कारण यज्ञों के नाम पर क्रूर बलिप्रथा,यज्ञ में पशु – पक्षियों की हिंसा , यज्ञ में की आड़ में मांसाहार जैसा पाप था । बुद्ध ने भी धम्मपद में स्वयं कहा है–’न तेन अरियो होति, येन पाणानि हिंसति। अहिंसा सबपाणानं, अरियोति पवुच्चति।।‘ (धम्मपद श्लोक 270, धम्मट्ठवग्गो 15) अर्थात् प्राणियों का हनन कर कोई आर्य नहीं होता, सभी प्राणियों की हिंसा न करने से उसे आर्य कहा जाता है।
महात्मा बुद्ध पर मांसाहार का मिथ्या दोषारोपणः –
महात्मा बुध मांस खाते थे इसका कोई प्रमाण नहीं है। यदि बुध मांसाहारी होते तो उनके प्रवचनों में ,दिनचर्या आदि में कही ना कही मांसाहार ,जीव हत्या ,पशु बलि आदि का कही ना कही उल्लेख मिलता। तथागत‘ ने जीवन में कभी भी मांसाहार नही किया, वरन् जीवनपर्यन्त उन्होंने मांसाहार के विरुद्ध उपदेश किया।उनका जन्म शुद्धोदन के घर हुआ। शुद्धोदन को यह उपाधि शुद्ध भोजन का व्यवहार करने से प्राप्त हुई थी।
‘मांसभक्षण और कुकर्म का कलंक देवदत्त ने बुद्ध के ऊपर झूठमूठ ही लगा दिया था। वह बुद्ध का एक शिष्य था और उसने अपने गुरु के प्राण भी आघात करने की चेष्टा की थी, किन्तु इतने पर भी बुद्ध सदा उसे क्षमा कर दिया करते थे और उसे अपने साथ ही रखते भी थे। निसन्देह, जिस ओर से मनुष्य एकदम निश्चिन्त रहता है उसी ओर से उसपर घोर आपत्ति आती है। बुद्ध को भी सांसारिक क्लेश भोगने पड़े थे।‘
भगवान् बुद्धदेव ने जीवनपर्यन्त मांसाहार का विरोध किया। यथा-
‘सब्बे तसन्ति दण्डस्स सब्बे भायन्ति मच्चुनो।
अत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातवे।।‘ -१२९ धम्मपद, दण्डवग्गो १
‘सब्बे तसन्ति दण्डस्स सब्बेसं जीवितं पियं।
उत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातये।।‘ -१३०, धम्मपद, दण्डवागो २
अर्थात्- ‘सभी दण्ड से डरते हैं, सबको जीवन प्रिय है, (इन बातों को) अपने समान जानकर न (किसी को) मारे और न मारने की प्रेरणा करे।‘
‘पाणं न हाने न च घातयेय्य, न चानु जंजा हननं परेसं।
सब्वेसु भूतेषु निधाय दण्डं, ये थावरा ये च तसन्ति लोके।।‘ -सूत्रनिपात्र, धार्मिक सूत्र १९
भिक्षु धर्मरत्नजी कृत टीका- ‘संसार के स्थावर और जंगम सब प्राणियों के प्रति हिंसा त्याग, न तो प्राणी का वध करे, न करावे और न करने की दूसरों को अनुमति ही दे।‘
‘एकजं वा द्विजं वाणि, योऽध पाणं विहिंसति।
यस्य पाणे दया नत्थि, ते जञ्जा वसलो इति।।‘ -वसलसूत्र
अर्थात्- ‘जो अण्डा, पक्षी अथवा जानवरों को मारता है और जीवित प्राणियों के प्रति दयालु नहीं है, उसे चाण्डाल के तुल्य जानना चाहिए।‘
बुध ने आर्य की परिभाषा करते हुए कहा है कि ‘ प्राणियों की हिंसा करने वाला आर्य नहीं होता । अहिंसक ही सच्चा आर्य होता है ‘ ( वही , १९ . १५ )
इन प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि भगवान् बुद्धदेव (तथागत) पर मांसाहार का मिथ्या दोषारोपण किया गया है।
प्रश्न 2 क्या बौद्ध धर्म में मांसाहार की मनाही नहीं है?
सत्य तो ये है कि जैन धर्म की तरह बौद्ध धर्म भी अहिंसा का समर्थक है और बौद्ध धर्म में भी मांसाहार नहीं करने की सलाह दी जाती है। बौद्ध धर्म के अनुयायी को मांस खाने के लिए एवं जीव हत्या करने से मना किया गया है। परन्तु दुनिया के जितने भी बौद्ध धर्म को मानने वाले देश जैसे कि थाईलैंड, कोरिया, जापान, श्रीलंका आदि है वह माँसाहर करने वालो की संख्या ९९ः या ज्यादा हो सकती है जिसमे मासांहार मुस्लिम, ईसाई समाज को भी पीछे छोड़ दिया है। गौमांस से सूअर तक, कुत्ते सर्प, सभी पक्षी इनकी थाली का भोजन है। इस विषय में सच्चाई जानना जरूरी है।
1- महायान संप्रदायः इनको मांसाहार से परहेज नहीं है। सिर्फ इतना बदला है की इनके बौद्ध मठ में शाकाहार पर जोर दिया गया है। यानि मांसाहार छोड़ने के लिए और इसके विरुद्ध कोई प्रचार प्रसार नहीं किया है। अभी तक इनके मठ में भी मांसाहार भोजन दिया जाता रहा है।
धर्मशाला स्थित मुख्यालय से बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने निर्देश जारी किया है कि अब से महायान संप्रदाय के बौद्ध मठों में सामिष भोजन नहीं चलेगा। मांसाहारी भोजन नहीं करना ही श्रेयस्कर है। ऐसा समझने में और स्वीकार करके में सैकड़ो साल लग गये ? जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग जिले के प्रमुख मठों के भिक्षुओं ने भी बौद्ध मठों में शाकाहारी भोजन का प्रचलन करने के पक्ष में बयान दिए हैं। उनके अनुसार बौद्ध शाकाहार इस मान्यता पर आधारित है कि भगवान बुद्ध के उपदेशों में शाकाहार की शिक्षा अन्त र्निहित है।
छावलिंग गुम्पा के लामा वांग चुक का कहना है कि बौद्ध मठ पवित्र स्थान होता है जो धर्म का प्रतीक है। वहां मांसाहारी भोजन नहीं करना ही श्रेयस्कर है। पूजा अर्चना की जगह मांसाहारी भोजन करना हिंसा को बढ़ावा देने के ही बराबर है। यह भगवान बुद्ध की अहिंसा की मूल शिक्षा के विपरीत जाती है। इसलिए बौद्ध मठों में मांसाहारी भोजन पर पूरी तरह से निषेध होना चाहिए। उसके अनुसार गौतम बुद्ध अहिंसा के पुजारी थे। इसलिए बौद्ध मठ में मांसाहार उचित नहीं है। चूंकि मांसाहार का अर्थ ही हिंसा को बढ़ावा देना है।
आश्चर्य है कि ये बात सिर्फ भारत में कही है क्योकि यहाँ की अधिकांश जनता शाकाहारी है और उनको बौद्ध धर्म में परिवर्तित करने में कठिनाई आ रही थी।
धर्मगुरु की बातो का सारांश इस तरह से हैः
1.गौतम बुद्ध अहिंसा के पुजारी थे। इसलिए बौद्धमठ में मांसाहार उचित नहीं है। यानि अभी तक ये गौतम बौद्ध के विपरीत आचरण करते रहे है और पूरी तरह से मांसाहार बंद नहीं करना चाहते क्योकि बौद्ध भिक्षु और अनुयायी नाराज हो सकते है। मठ के बाहर मांस खाना अनुचित नहीं। उपरोक्त से ये प्रश्न उठा है की क्या बौद्धमठ ही पवित्र है ? रहने का घर, दूकान, देश, शहर पवित्र नहीं है तो क्या अपवित्र स्थान पर बौद्ध निवास करते ह?
2- थेरावाद सम्प्रदायः- इस सम्प्रदाय के लोग मानते हैं कि बुद्ध ने अपने शिष्यों को शूकर, कुक्कुट और मछली खाने की अनुमति दी थी बशर्ते उनको पता हो कि वह जानवर उनके लिए ही नहीं मारा गया था। कुछ सूत्रों में यह बात सामने आती है कि महात्मा बुद्ध इस बात पर बल देते थे कि उनके अनुयायी किसी ऐसे प्राणी का मांस न खाएं जो संवेदन शील हो। ब्रह्मजाल सूत्र का अनुसरण करने वाले महायान सम्प्रदाय के भिक्षु किसी भी प्रकार के मांस का सेवन न करने की प्रतिज्ञा करते हैं।
इनके अनुसार कई बौद्ध ग्रंथों से भी ये बात पता चलती है कि भगवान बुद्ध और अन्य भिक्षु मुख्य रूप से शाकाहारी थे लेकिन परिस्थिति वश मांस या मछली का सेवन कर लेते थे।
बौद्ध अनुयायी द्वारा दिए जाने वाले कुछ भद्दे कुतर्क और गंदे कार्यो का विवरण-
म्यांमार में जीवित गऊ और अन्य पशु को उसका मांस खाने के लिए पहाड़ी से गिराकर मार देते है, या जानवर का मुँह सिल देते है की भूख से उसकी मृत्यु हो जाये और उसका मांस खाया जाये। श्रीलंका में बड़ी तादात में मुस्लिम कसाई मंगवाए गए ताकि जानवर की हत्या का पाप इन पर न लगे और ये मांस के चटखारे लेते रहे। ये कैसी कुटिल चाल थी ।इसके बुरे परीणाम आ भी रहे है कि इन देशों में बड़ी संख्या में बौध लोग मुस्लिम बन रहे हैं ।
डाँ. बी आर अम्बेडकर द्वारा धर्म परिवर्तन के अवसर पर अनुयायियों को दिलाई गयीं 22 प्रतिज्ञाओं में से 13 वीं प्रतिज्ञा में वे कहते हैं कि-
“मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा।“
बौद्ध भिक्षु कहते है की हम प्राणियों को नहीं मारते सिर्फ मरा हुआ मुर्दा लेकर आते है, लेकिन ये बताये कि किसी भी प्राणी को मारे बिना मांस की प्राप्ति नहीं हो सकती, इसीलिए अगर इन्सान मांस खाना बंद कर देंगे तो कोई प्राणियो को क्यों मारेगा ?
इस तरह से मांस खाने के शौकीन बौद्ध ने अपने धर्म के आदि गुरु के सिद्धांतो की खिल्लिया उड़ाई है।
स्पष्ट है कि गौतम बुद्ध का मार्ग अहिसां कहते हुये भी मध्यमार्गीय रहा लेकिन वह व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति के लिये पशु हिंसा के पक्ष मे नहीं थे। किसी भी प्राणी को मारे बिना मांस की प्राप्ति नहीं हो सकती, इसलिए तथागत बुद्ध ने हर प्रकार के जीवों की हत्या करने को पाप बताया है और कहा है कि ऐसा करने वाले कभी सुख शांति प्राप्त नहीं करेंगे। अहिंसा के पुजारी बुद्ध के अनुयायी दुनिया के सबसे बड़े मांसाहारी, नास्तिक निकले जिनकी कोई अच्छर संहिता ही नहीं है। मांसाहारी व्यक्ति संत नहीं हो सकता, और बौद्ध धर्म के संत अधिकांश मांसाहारी है या मांसाहार के समर्थक है विरोधी नही।

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