आज हम आपको पांडवों की माता कुन्ती के बारे में बतायेगें !!
कुंती एक अद्भुत महिला थीं। पति की मृत्यु के बाद कैसे उन्होंने अपने पुत्रों को हस्तिनापुर में प्रवेश करवाकर गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा दिलवाई और अंत में उन्हें राज्य का अधिकार दिलवाने के लिए प्रेरित किया यह सब जानना अद्भुत है। एक स्त्री की संघर्ष कहानी में द्रौपदी का नाम तो लिया जाता है लेकिन कुंती की कम ही चर्चा होती है।
आओ जानते हैं कुंती के बारे में 10 रहस्य जिन्हें आप शायद नही जानते होंगे।
1.नहीं मिला माता पिता का प्यार : – यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक कन्या और वसुदेव नामक एक पुत्र था। पृथा नामक कन्या को राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया। कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा। इस तरह पृथा अर्थात कुंती अपने असली माता पिता से दूर रही। जैसे दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को गोद दे दिया था।
2.श्रीकृष्ण की बुआ थीं कुंती : – वसुदेव का विवाह कंस की बहन देवकी से हुआ। देवकी से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। इस तर कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं। यही कारण भी था कि भगवान श्रीकृष्ण ने कुंती का हर कदम पर साथ दिया था। श्रीकृष्ण और कुंती में एक दूसरा रिश्ता भी था। श्रीकृष्ण और अर्जुन आपस में सौतेले भाई थे लेकिन जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा से विवाह किया तो वे आपस में जीजा-साले भी बन गए।
3.दुर्वासा ऋषि ने दिया देव आह्वान मंत्र!!!!!
कुंती अपने महल में आए महात्माओं की सेवा करती थी। एक बार वहां ऋषि दुर्वासा भी पधारे। कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने कहा, ‘पुत्री! मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूं अतः तुझे एक ऐसा मंत्र देता हूं जिसके प्रयोग से तू जिस देवता का स्मरण करेगी वह तत्काल तेरे समक्ष प्रकट होकर तेरी मनोकामना पूर्ण करेगा।’ इस तरह कुंती को एक अद्भुत मंत्र मिल गया।
मंत्र के ट्रायल से उत्पन्न हुआ कर्ण- एक दिन कुंती के मन में आया कि क्यों न इस मंत्र की जांच कर ली जाए। कहीं यह यूं ही तो नहीं? तब उन्होंने एकांत में बैठकर उस मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव का स्मरण किया। उसी क्षण सूर्यदेव प्रकट हो गए।
कुंती हैरान-परेशान अब क्या करें? तब कुंती ने सूर्यवेद से एक पुत्र की कामना कर दी। जब कुंती हो गई गर्भवती, तब लज्जावश यह बात वह किसी से नहीं कह सकी और उसने यह छिपाकर रखा। समय आने पर उसके गर्भ से कवच-कुंडल धारण किए हुए एक पुत्र उत्पन्न हुआ। कुंती ने उसे एक मंजूषा में रखकर रात्रि को गंगा में बहा दिया।
वह बालक गंगा में बहता हुआ एक किनारे से जा लगा। उस किनारे पर ही धृतराष्ट्र का सारथी अधिरथ अपने अश्व को जल पिला रहा था। उसकी दृष्टि मंजूषा में रखे इस शिशु पर पड़ी। अधिरथ ने उस बालक को उठा लिया और अपने घर ले गया। अधिरथ निःसंतान था। अधिरथ की पत्नी का नाम राधा था। राधा ने उस बालक का अपने पुत्र के समान पालन किया। उस बालक के कान बहुत ही सुन्दर थे इसलिए उसका नाम कर्ण रखा गया।
इस सूत दंपति ने ही कर्ण का पालन-पोषण किया था इसलिए कर्ण को ‘सूतपुत्र’ कहा जाता था तथा राधा ने उसे पाला था इसलिए उसे ‘राधेय’ भी कहा जाता था। उस दौर में ब्रह्मण कन्या और छत्रिय पुरुष से उत्पन्न संतान को सूत कहा जाता था। मतलब यह कि अधिरथ सूत था।
4.हस्तिनापुर के राजा पांडु से हुआ विवाह!!!!
कुंती जब विवाह योग्य हुई तो उसका स्वंवर किया गया। स्वयंवर-सभा में कई राजा और राजकुमारों ने भाग लिया जिसमें हस्तिनापुर के राजा पाण्डु भी थे। कुंती ने पाण्डु को जयमाला पहनाकर पति रूप से स्वीकार कर लिया। कुंती का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहा। एक बार आखेट के दौरान पाण्डु हिरण समझकर मैथुनरत एक किदंम ऋषि को मार देते हैं। वे ऋषि मरते वक्त पांडु को शाप देते हैं कि तुम भी मेरी तरह मरोगे, जब तुम मैथुनरत रहोगे। इस शाप के चलते पांडु अपनी पत्नियों के साथ जंगल चले जाते हैं। पांडु को दो पत्नियां कुंती और माद्री थीं।
5.जंगल में पुत्रों का जन्म : – जंगल में वे संन्यासियों का जीवन जीने लगते हैं, लेकिन पांडु इस बात से दुखी रहते हैं कि उनकी कोई संतान नहीं है और वे कुंती को समझाने का प्रयत्न करते हैं कि उसे किसी ऋषि के साथ समागम करके संतान उत्पन्न करनी चाहिए। कुंती इससे अनकार करके वह अपने वरदान के बारे में बताती है। तब पांडु की अनुमति से कुंती धर्मराज का आह्वान करती है। इससे उन्हें युधिष्ठिर का जन्म होता है। फिर क्रम से वह इंद्र से अर्जुन और पवनदेव से भीम को प्राप्त करती है। अंत में कुंती माद्री को भी वह मंत्र सिखा देती है जिसे दुर्वासा ने दिया था। तब माद्री दो अश्विन कुमारों का आह्वान करती है जिससे उन्हें नकुल और सहदेव नाम पुत्र की प्राप्ति होती है।
6.पति और सौत की मृत्यु से अकेली रह गई कुंती : – एक दिन राजा पांडु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यंत रमणीक था और शीतल-मंद-सुगंधित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पांडु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत हुए ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई। कहते हैं कि माद्री उनके साथ सती हो जाती है। अब कुंती के समक्ष पांच पुत्रों के पालन-पोषण का संकट खड़ा हो जाता है। बस यहीं से कुंती के जीवन का नया संघर्ष प्रारंभ होता है।
7.हस्तिनापुर में अपने पुत्रों के हक की लड़ाई : – अपने पति की मृत्यु के बाद कुंती ने मायके की सुरक्षित जगह पर जाने के बजाय ससुराल की असुरक्षित जगह को चुना। पांच पुत्रों के भविष्य और पालन-पोषण के निमित्त उसने हस्तिनापुर का रुख गया, जोकि उसके जीवन का एक बहुत ही कठिन निर्णय और समय था। कुंती ने वहां पहुंचकर अपने पति पांडु के सभी हितेशियों से संपर्क कर उनका समर्थन जुटाया। सभी के सहयोग से कुंती आखिरकार राजमहल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गई। कुंती और समर्थकों के कहने पर धृतराष्ट्र और गांधारी को पांडवों को पांडु का पुत्र मानना पड़ा। राजमहल में कुंती का सामना गांधारी, शकुनी और दुर्योधन से हुआ जिन्होंने उसके समक्ष कई चुनौतियां खड़ी की। कुंती वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं, तो गांधारी गंधार नरेश की पुत्री और राजा धृतराष्ट्र की पत्नी थी। कुंती और गांधारी में अपने-अपने पुत्रों को राज्य का पूर्ण अधिकार दिलाने की अप्रत्यक्ष जंग शुरू हो गई।
8.पांडवों के खिलाफ षड़यंत्र : – शकुनि और दुर्योधन ने मिलकर पांडवों को मारने के कई षड़यंत्र रचे। एक बार उन्होंने दुर्योधन को जहर देकर गंगा में फेंक दिया था। मूर्छित अवस्था में भीम बहते हुए नागों के लोक पहुंच गए। वहां विषैले नागों ने उन्हें खूब डंसा जिससे भीम के शरीर का जहर कम होने लगा यानी जहर से जहर की काट होने लगी। जब भीम की मूर्छा टूटी, तब उन्होंने नागों को मारना शुरू कर दिया। यह खबर नागराज वासुकि के पास पहुंची, तब वे स्वयं भीम के पास आए। वासुकि के साथी आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना के नाना थे। अर्थात कुंती के पिता के पिता। भीम ने उन्हें अपने गंगा में धोखे से बहा देने का किस्सा सुनाया। यह सुनकर आर्यक नाग ने भीम को हजारों हाथियों का बल प्रदान करने वाले कुंडों का रस पिलाया जिससे भीम और भी शक्तिशाली हो गए।
9.लाक्षागृह से बचे कुंती और पांडव : – शकुनि और दुर्योधन ने छल से एक बार कुंती और पांडवों के वारणावत में लाक्षागृह में रुकवा दिया। लाक्षागृह अर्थात लाख से बना घर। योजना के अनुसार रात में इस घर में आग लगाने की योजना थी। लेकिन जब विदुर को इस षड़यंत्र का पता चला तो उन्होंने युधिष्ठिर तक यह सूचना पहुंचाई। तब पांडव एक सुरंग बनाकर वहां से बच निकले थे। जिस रात आग लगाने की योजना थी उस दि पांडवों ने ग्रामिणों के लिए एक भोज का आयोजन किया था। उस आग में कुछ ग्रामिण जलकर मर गए थे। उसी दिन पांडव सुरंग से बाहर निकल गए। बाद में कुछ जली हुई लाशों को कुंती और पांडवों की लाश मान लिया गया था।
जंगल में रही कुंती- पांचों पांडव लक्षागृह से बचने के बाद एक रात जंगल में सो रहे थे और भीम पहरा दे रहे थे। जिस जंगल में सो रहे थे वह जंगल नरभक्षी राक्षसराज हिडिम्ब का था। उसकी पुत्री का नाम हिडिम्बा था। हिडिम्ब ने हिडिम्बा को जंगल में मानव का शिकार करने के लिए भेजा। हिडिम्ब जब जंगल में गई तो उससे भीम को पहरा देते हुए देखा और बाकी पांडव अपनी माता कुंती के साथ सो रहे थे। भीम को देखकर हिडिम्बा मोहित हो गई और बाद में कुंती के आदेश से भीम को उससे विवाह करना पड़ा। जिससे उसको एक पुत्र मिला जिसका नाम घटोत्कच रखा गया।
10.कुंती के कारण द्रौपदी बनी पांचों पांडवों की पत्नी : – कुंती ने भी पांडवों के साथ जंगल में 12 साल गुजारे- जब जुए के खेल में पांडव हार गए तो उन्हें 12 साल का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास हुआ। इस दौरान पांचों पांडव एक कुम्हार के घर में रहा करते थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन-यापन करते थे। ऐसे में भिक्षाटन के दौरान उन्हें द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना मिली। वे भी उस स्वयंवर प्रतियोगिता में शामिल हुए और उन्होंने द्रौपदी को जीत लिया। द्रौपदी को जीत कर वे जब घर लाए तो कुंती ने बगैर देखे ही कह दिया कि जो भी लाए हो आपस में बांट लो। यह सुनकर पांडवों को बड़ा आश्चर्य लगा। हालांकि इसके पीछे और दूसरी कहानी भी जुड़ी हुई है।
11.कुंती ने लिया जब कर्ण से वचन : – श्रीकृष्ण ने युद्ध के एनवक्त पर कर्ण को यह राज बता दिया था कि कुंती तुम्हारी असली मां है। एक बार कुंती कर्ण के पास गई और उससे पांडवों की ओर से लड़ने का आग्रह करने लगी। कुंती के लाख समझाने पर भी कर्ण नहीं माने और कहा कि जिनके साथ मैंने अब तक का अपना सारा जीवन बिताया उसके साथ मैं विश्वासघात नहीं कर सकता।
तब कुंती ने कहा कि क्या तुम अपने भाइयों को मारोगे? इस पर कर्ण ने बड़ी ही दुविधा की स्थिति में वचन दिया, ‘माते, तुम जानती हो कि कर्ण के यहां याचक बनकर आया कोई भी खाली हाथ नहीं जाता अत: मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।’ कुंती के द्वारा यह वचन ले लेने के कारण ही युधिष्ठिर कई बार कर्ण से बच गई। ऐसे भी कई मौके आए जब कि कर्ण युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को मार देता लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया।
- कैसे हुयी कुंती की मृत्यु?
महाभारत युद्ध के लगभग 15 साल बाद परिवार के तीन वरिष्ठ गांधारी, कुंती और धृतराष्ट्र वन की ओर प्रस्थान करते हैं। संजय भी उनके साथ होते हैं। करीब 3 साल तक गंगा किनारे एक घने वन में बनी छोटी सी कुटिया में सभी रहते हैं। एक दिन की बात है धृतराष्ट्र गंगा में स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके जाते ही जंगल में आग लग जाती है, जिसकी वजह गांधारी, कुंती और संजय को कुटिया छोड़नी पड़ती है। वे सभी धृतराष्ट्र के पास आते हैं, ये देखने कि कहीं उन्हें तो कोई खतरा नहीं है।
संजय उन सभी को जंगल से चलने के लिए कहता हैं, क्योंकि पूरा जंगल आग से जल रहा था। लेकिन धृतराष्ट्र उन्हें कहता है कि यही वो घड़ी है जब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। तीनों लोग वहीं रुक जाते हैं और उनका शरीर उस आग में झुलस जाता है। संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं। इस तरह एक साल बाद नारद मुनि आकर युधिष्ठिर को उनके परिवारजनों की मृत्यु का दुखद समाचार देते हैं। युधिष्ठिर वहां जाकर उनके अंतिम संस्कार का क्रियाकर्म कर, पिंडदान आदि कर्म करते हैं।
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