जब देश 16वीं लोकसभा के चुनाव की तैयारी कर रहा था तो उस समय भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी सावधानी से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने स्टार प्रचारक के रूप में मैदान में उतारा। पार्टी बहुत सावधानी से आगे बढ़ रही थी। उसने देश में नरेंद्र मोदी की विभिन्न सभाओं का आयोजन करना आरंभ किया। यद्यपि उन्हें प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया था। इसके पीछे कारण यह था कि भाजपा गोधरा कांड का दाग उनके ऊपर लगे होने के कारण यह देखना चाहती थी कि लोग नरेंद्र मोदी की सभा में बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं या नहीं ? जब नरेंद्र मोदी ने सभाओं को संबोधित करना आरंभ किया तो उनकी प्रत्येक सभा में अपार जनसमूह उमड़ने लगा। वह ऐसा दौर था जब नेता अपने लिए भीड़ खोज रहा था और भीड़ अपने लिए नेता खोज रही थी। देश के राजनीतिक संक्रमण काल से लोग पार पाना चाहते थे। दिन प्रतिदिन के राजनीतिक घोटाले, भ्रष्टाचार और लड़खड़ाती सरकारों के भंवरजाल में फंसा जनमानस अब इस सारी कुव्यवस्था से छुटकारा पाना चाहता था। वह पुरातन से निकलकर नवीनता की खोज में था । नरेंद्र मोदी के रूप में उसे नवीनता दिखाई दे रही थी। मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण अनेक स्थानों पर देश का बहुसंख्यक समाज मुसलमानों के साथ-साथ राजनीतिक उत्पीड़न का भी शिकार होता जा रहा था । जिससे गोधरा कांड के कथित आरोपी मोदी जी को लोगों ने अपने लिए अंतिम आश्रय के रूप में देखा। भाजपा गोधरा कांड के कथित आरोपी मोदी जी को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में उतारने में संकोच कर रही थी, पर लोगों ने उन्हें देश का अगला प्रधानमंत्री मानना आरंभ कर दिया। लोगों की अपार भीड़ 'मोदी लाओ- भारत बचाओ' के संकल्प के साथ उनकी सभाओं में उमड़ रही थी।
सोशल मीडिया का लिया गया सहारा
बात अक्टूबर 2013 की है। जब लेखक और उनके ज्येष्ठ भ्राता श्री देवेंद्र सिंह आर्य जी (अध्यक्ष उगता भारत समाचार पत्र) भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह जी से एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में उनके दिल्ली आवास पर मिले थे। जिसमें उनसे यह आग्रह किया गया था कि वह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पार्टी के अगले प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में प्रस्तुत करें। इससे भाजपा का सत्ता में आना निश्चित हो जाएगा। तब राजनाथ सिंह जी ने इस पर अपना सकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट किया था। जिससे पता चलता है कि भाजपा का तत्कालीन नेतृत्व पार्टी को सत्ता में लाने के लिए नरेंद्र मोदी को स्टार प्रचारक के रूप में उतार कर भीतर ही भीतर बहुत बड़ा प्रयोग करने की तैयारी कर चुका था।
भाजपा के लिए एक चेहरा बन चुके नरेंद्र मोदी जी ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया की ओर ध्यान न देकर सोशल मीडिया को अपने लिए मैदान में उतारा। बहुत ही सावधानी से उन्होंने सोशल मीडिया का सदुपयोग अपने लिए करना आरंभ किया। देश में उस समय पहली बार सोशल मीडिया सक्रिय हुई । इसे आप यह भी कह सकते हैं कि उस समय देश में सोशल मीडिया का प्रारंभिक दौर था। जिसे श्री मोदी ने स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । लोग इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया की ओर से हटकर सोशल मीडिया की ओर आकर्षित हुए। जिसके द्वारा अनेक ऐसी जानकारी देश के समाज को मिलनी आरंभ हुईं जो नेहरू गांधी परिवार ने अब तक भारत के जनमानस से छुपा कर रखी थीं।
सोशल मीडिया ने की क्रांति
सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोगों ने नए भारत के निर्माण के लिए नरेंद्र मोदी के प्रचार अभियान के साथ जुड़ना आरंभ किया। वास्तव में यह प्रचार अभियान न होकर उस समय विचार अभियान बन चुका था। बहुत शीघ्र मोदी जी के इस अभियान ने विचार क्रांति उत्पन्न कर दी। सोशल मीडिया के माध्यम से यह विचार क्रांति जनमानस को प्रभावित कर गई। एक-एक व्यक्ति को नई ऊर्जा प्राप्त हुई और उसने नये भारत के निर्माण के लिए नई सोच के साथ आगे बढ़ना आरंभ किया। देश के जनमानस की इस प्रकार की सोच का लाभ सीधे मोदी जी को मिल रहा था।
कांग्रेस को तत्कालीन परिस्थितियों में मोदी जी का सामना करने के लिए कोई चेहरा नहीं मिल रहा था। उसने प्रारंभ में अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी का सामना करने के लिए प्रस्तुत किया। पर डॉ मनमोहन सिंह मोदी के पहले प्रहार में ही उड़ गए। कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी की सोच थी कि लोग कांग्रेस के 10 वर्षीय शासन में हुए घोटालों के लिए केवल मनमोहन सिंह को ही उत्तरदायी मानेंगे और उन्हें ‘मिस्टर क्लीन’ का प्रमाण पत्र सौंप देंगे। पर ऐसा हुआ नहीं। लोगों ने जागरूकता दिखाई और पिछले 10 वर्ष में जिस प्रकार सोनिया गांधी ‘सुपर प्राइम मिनिस्टर’ के रूप में पीछे बैठकर देश का शासन चला रही थीं, देश के लोगों ने उनको ही कांग्रेस के कुशासन के लिए जिम्मेदार माना।
राहुल गांधी आए सामने
लोगों की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में कोई रुचि नहीं थी। वह लोगों की नापसंद बन चुके थे और भाजपा के नरेंद्र मोदी बड़ी तेजी से लोगों की पहली पसंद बनते जा रहे थे। सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी के आगे बढ़ते कदमों को रोकने के लिए अपना हर प्रकार का दांव चला , पर वह उनका प्रत्येक दांव उनके लिए उल्टा पड़ा। कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को पीछे कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने अपने अगले प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में उतारने का निर्णय लिया। पर तब तक बहुत अधिक देर हो चुकी थी । सोशल मीडिया पर कांग्रेस के राहुल गांधी के लिए लोगों ने ‘पप्पू’ का नाम खोज लिया था। वह अपने व्यवहार और वक्तृत्व शैली से अनेक बार यह सिद्ध कर चुके थे कि वह राजनीति में ‘पप्पू’ से आगे कुछ हैं भी नहीं। भाजपा के नरेंद्र मोदी ने भी अपनी रणनीतिक चाल चलते हुए सीधे राहुल गांधी को ही चुनौती दी और उन्हें चारों ओर से सफलतापूर्वक घेरने लगे।
प्रारंभिक रणनीति में कांग्रेस गोधरा के आरोपी मोदी को गोधरा पर घेरने और बदनाम करने का काम करती रही। पर कांग्रेस जितना ही उन्हें इस बिंदु पर घेरती थी, लोग उतने ही अनुपात में मोदी के साथ जुड़ते जा रहे थे। गोधरा को लोग पूर्णतया भूल चुके थे और मोदी को उस कांड के आरोप से पूरी तरह मुक्त भी कर चुके थे ,पर कांग्रेस के रणनीतिकार गोधरा को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर भाजपा के स्टार प्रचारक मोदी को इस मुद्दे पर मार लेना चाहते थे।
मोदी निरंतर आगे बढ़ रहे थे
चुनाव के महासमर में गोधरा के बने चक्रव्यूह में खड़े मोदी अनेक महारथियों से घिरे हुए थे, पर उनके सामने जो भी आया उसी को उन्होंने मात देनी आरंभ कर दी, वह इस चक्रव्यूह से सफलता के साथ बाहर निकले। वह अभिमन्यु नहीं थे, अपितु अर्जुन के रूप में स्वयं चक्रव्यूह वाले दिन महाभारत के समर में उपस्थित थे। भाजपा अपने राजग के साथियों के साथ आगे बढ़ रही थी। उसके स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी का कोई तोड़ गैर भाजपा दलों के पास नहीं था।
भाजपा ने कांग्रेस की जड़ता और भ्रष्टाचार को राजनीतिक मुद्दा बनाया। जिससे 16वीं लोकसभा का चुनाव इन्हीं दोनों मुद्दों के आसपास सिमट कर रह गया । इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन चुके नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय सम्मान को भी पहली बार चुनावी मुद्दा के रूप में लोगों के सामने उछालने और स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने बहुत ही सावधानी के साथ सधी हुई भाषा में हिंदुत्व को भी राजनीतिक मुद्दे के साथ-साथ राष्ट्रीय विमर्श का विषय बना दिया। जिससे पहली बार राजनीतिक क्षेत्र में हिंदुत्व चर्चा का विषय बना। टी0वी0 चैनलों और समाचार माध्यमों में इस पर खुलकर चर्चा होनी आरंभ हुई। अब से पहले हिंदुत्व को भाजपा चोरी छिपे प्रयोग करती थी, पर अब इसका खुलकर प्रयोग किया गया।
हिंदुत्व को मोदी ने बना दिया मुद्दा
चर्चाओं के माध्यम से हिंदुत्वनिष्ठ राजनीति देश के लिए कितनी उपयोगी हो सकती है ? इस पर भी चर्चाओं का आयोजन टी0वी0 चैनलों सहित सोशल मीडिया पर भी अच्छी प्रकार स्थान बनाने लगा। भारत और भारतीयता से प्रेम करने वाले लोगों के लिए ये चर्चाएं बहुत महत्वपूर्ण हो चुकी थीं। लोग अपनी जड़ों को खोज रहे थे और उनसे जुड़े रहना चाहते थे। कांग्रेस और कम्युनिस्ट जैसे राजनीतिक दल इन जड़ों को उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे। उनकी इस प्रकार की कार्यशैली, विचारधारा और गतिविधियों की ओर भाजपा के नरेंद्र मोदी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। जिससे अनेक लोगों को यह पता चला कि भारत में 'हिंदी - हिंदू- हिंदुस्तान' की जड़ों को खोदने का काम कौन से चेहरे और कौन से लोग या कौन से राजनीतिक दल किस प्रकार और कब से करते चले आ रहे हैं ?
राजनीति की नई हांडी में कई चीजें एक साथ पक रही थीं। नरेंद्र मोदी हांडी में नया-नया तड़का लगा रहे थे ,जिससे बहुत चटकारेदार भोजन बनने की आशा में लोग हांडी केआसपास एकत्र होते जा रहे थे। इसी समय श्री मोदी ने लोगों को 'अच्छे दिन' आने का विश्वास दिलाया। उन्होंने अपनी जनसभाओं में लंबे-लंबे भाषणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि कांग्रेस जैसी मुस्लिमपरस्त पार्टी के द्वारा अपने राजनीतिक नेतृत्व के माध्यम से भारत के राजनीतिक क्षितिज पर जिस प्रकार का कुहासा स्थापित किया गया है, उससे अब आप लोगों को मुक्ति मिलेगी। नये भारत के निर्माण के संकल्प के साथ हम आगे बढ़ते हुए अच्छे दिनों में प्रवेश करेंगे। भारत प्रत्येक क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व करते हुए आगे बढ़ेगा और एक दिन विश्व गुरु बनेगा। देश के लोगों के भीतर श्री मोदी तेजस्वी राष्ट्रवाद की लहर पैदा करने में सफल हुए। यह पहली बार था जब लोगों के भीतर अपने देश को लेकर तेजस्वी राष्ट्रवाद की भावना प्रवेश करने में सफल हुई थी। इसके वशीभूत होकर लोगों ने बहुत उत्साह के साथ मोदी के साथ जुड़ना आरंभ किया।
सिने स्टारों को बैठा दिया घर
इससे पहले देश की राजनीति में इस प्रकार की नीरसता, शिथिलता या ठहराव सा आ गया था कि राजनीतिक लोग अपनी सभाओं को सफल करने के लिए सिनेमा जगत के अभिनेताओं को अपने मंचों पर बुलाते थे। जिससे कि लोगों की भीड़ उन्हें सुनने के लिए उनकी सभाओं में पहुंच जाए। राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित की जाने वाली रैलियों पर बहुत मोटी धनराशि खर्च करने के उपरांत भी लोग नेताओं को सुनने के लिए नहीं आते थे। पर अब इस प्रकार की नीरसता, शिथिलता या ठहराव की स्थिति में परिवर्तन आया । लोगों को लगा कि सचमुच 'अच्छे दिन' आने वाले हैं, इसलिए दशकों बाद ऐसा देखा गया कि लोग किसी अभिनेता को सुनने के लिए ना आकर देश के भावी नेता मोदी को सुनने के लिए सभाओं में आने लगे। इससे सिने जगत के उन अनेक अभिनेताओं को गहरी चोट लगी, जिनके लिए राजनीति साइड का व्यवसाय बन चुकी थी।वे चुनाव के समय सभाओं में उपस्थित होने के लिए राजनीतिक दलों से अपने लिए मोटी धनराशि प्राप्त करते थे। मोदी के तेजस्वी राष्ट्रवाद के संकल्प ने इन सभी अभिनेताओं की इस दुकानदारी को बंद करवा दिया। वास्तव में भारतीय लोकतंत्र के लिए यह स्थिति सचमुच बहुत ही खतरनाक थी कि सिने जगत के वे लोग मंचों पर आकर लोगों को संबोधित करते थे जो देश की समस्याओं का कोई ज्ञान नहीं रखते थे। उन्हें देश की शिक्षा नीति की कोई जानकारी नहीं थी। देश के युवाओं का चारित्रिक निर्माण करने के बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं था। अपने देश की सामाजिक ,राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं का कोई उन्हें कोई बोध नहीं था। उन्होंने राजनीति को भी अभिनय का क्षेत्र बना दिया था। वे राजनीतिक मंचों पर अभिनय के लिए आ रहे थे और उसकी मोटी रकम लेकर अपने वातानुकूलित भवनों में लौट जाते थे। राजनीतिक क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के नैतिक पतन और उनके छोटे व्यक्तित्व के कारण बनी इस स्थिति से मोदी ने एक झटके में देश को मुक्ति दिला दी।
भाजपा के स्टार प्रचारक श्री मोदी ने जी0एस0टी0, नोटबंदी, डिजिटल इंडिया और स्वच्छ भारत अभियान जैसी नीतियों को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया । उन्होंने नए भारत की नई तस्वीर खींचकर लोगों के समक्ष प्रस्तुत की और देश के जनमानस को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
भाजपा के नरेंद्र मोदी ने लोगों को 2006 में कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए उस बयान को याद दिलाया जिसमें उन्होंने कहा था कि इस देश के आर्थिक संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के इस बयान को भाजपा के श्री मोदी द्वारा कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के साथ जोड़कर बार-बार प्रस्तुत किया गया। जिससे लोगों में कांग्रेस के प्रति और भी अधिक अलगाव पैदा हो गया।
भाजपा के श्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारतीय राजनीति का भारतीयकरण करने पर बल दिया गया। वैदिक राज्य व्यवस्था में प्रधानमन्त्री को ‘विष्णु’ अर्थात पालन पोषण , वृद्धि और विकास करने वाला कहा गया है । राष्ट्रचेता ऐसा हो , जिसे लोग सहर्ष ‘विष्णु’ मानें। भारत में राष्ट्र नायक होने की यह सबसे बड़ी कसौटी है । जो ऐसे दिव्यगुणों से भरा होता है, उसे राष्ट्र की जनता मर्यादा पुरुषोत्तम राम या योगीराज कहकर युगों-युगों तक पूजती है। श्री मोती द्वारा राष्ट्र नेताओं की परंपरा को इसी प्रकार के भारतीय राजनीतिक दर्शन के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया उन्होंने नेता को जननायक बनाने के लिए यह अनिवार्य किया कि वह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और योगीराज श्रीकृष्ण की राजनीतिक विचारधारा और उनके राजनीतिक चिंतन में विश्वास रखने वाला हो अर्थात मानवीय चेतना और मानवीय संवेदना उसको हृदय से प्रभावित करती हों। बहुत सावधानी से श्री मोदी ने अपने भाषणों में कांग्रेस के अब तक के प्रत्येक प्रधानमंत्री को धो-धोकर मारा और जनसाधारण में इस विश्वास को स्थापित करने में सफल हुए कि कांग्रेस का कोई भी नेता जन चेतना और संवेदना के साथ कभी संवाद करने में सफल नहीं हुआ।
16वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम
उपरोक्त परिस्थितियों में देश की 16वीं लोकसभा के चुनाव 7 अप्रैल 2014 से 12 मई 2014 के बीच संपन्न हुए। इन चुनावों को 9 चरणों में संपन्न किया गया। लोकसभा के इस चुनाव पर 3870.1 करोड़ रूपया खर्च हुआ था। उस समय देश के मुख्य चुनाव आयुक्त श्री वी. एस. संपत (11 जून 2012 से 15 जनवरी 2015) थे। 16 मई 2014 को चुनाव परिणाम घोषित हुए। चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया कि देश के लोगों ने अपने लिए भाजपा के श्री नरेंद्र मोदी के रूप में नया नेता खोज लिया था । भाजपा यद्यपि अपने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही थी। परंतु लोगों ने 543 के सदन में भाजपा को 282 सीट देकर स्पष्ट बहुमत दे दिया । पिछले कई चुनावों के पश्चात पहली बार लोगों ने खंडित जनादेश न देकर स्पष्ट जनादेश दिया। 282 से अलग कांग्रेस के पास अपने मित्र दलों की सीटें भी थीं। कांग्रेस को इस चुनाव में केवल 44 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। अब तक के जितने भी लोकसभा चुनाव हुए थे, उनमें से किसी में भी कांग्रेस को इतनी कम सीटें कभी नहीं मिली थीं। भाजपा के श्री मोदी के द्वारा किया गया पुरुषार्थ सफल हुआ। देश की अधिकांश सीटों पर कमल खिल गया। भाजपा ने पहली बार इतनी अधिक सीटें लोकसभा में प्राप्त की थीं। अब सत्ता पर उसकी दावेदारी पक्की हो चुकी थी। भाजपा ने अपनी संसदीय दल की बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में संसदीय दल का नेता चुना।
देश की 16वीं लोकसभा के समय देश के कुल मतदाताओं की संख्या 81 करोड़ से कुछ अधिक थी । कुल पड़े 66.38 प्रतिशत मतों में से 31% के लगभग भाजपा को मिले थे।
16वीं लोकसभा के पदाधिकारी
नरेन्द्र मोदी जी ने 26 मई 2014 को भारत के 15वें प्रधानमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली। 16वीं लोकसभा का पहला सत्र 4 जून से 11 जुलाई 2014 के बीच चला । यह पहला अवसर था जब भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं था। संसद की मान्य परंपरा के अनुसार नेता प्रतिपक्ष उस दल का नेता हो सकता है, जिसे लोकसभा की कुल सीटों का 10% प्राप्त हुआ हो। इस प्रकार कांग्रेस के पास कम से कम 55 की सदस्य संख्या होना अनिवार्य था। परंतु उसे लोगों ने 44 सीटों तक सिमटा दिया था।
कांग्रेस के बाद संसद में ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की सर्वाधिक सदस्य संख्या थी। जिसके पास 37 सीटें थीं। प्रधानमंत्री मोदी ने 26 मई 2014 को देश के 15वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। 6 जून 2014 को भाजपा की श्रीमति सुमित्रा महाजन को लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया।उपाध्यक्ष के रूप में एम. थंबीदुरई (अन्नाद्रमुक) को चुना गया।
लोकसभा की महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव बनीं। उस समय प्रणब मुखर्जी देश के राष्ट्रपति थे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
मुख्य संपादक, उगता भारत