परमात्मा हमारे जीवन का मूलाधार किस प्रकार है?
धरती माता की तुलना परमात्मा से क्यों की जाती है?
इमे त इन्द्र ते वयं पुरुष्टुत ये त्वारभ्य चरामसि प्रभूवसो।
नहि त्वदन्यो गिर्वणो गिरः सघत्क्षोणीरिव प्रति नो हर्य तद्वचः।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.57.4
(इमे) ये (ते) आपके (इन्द्र) परमात्मा (ते) आपके वयम्) हम (पुरुष्टुत) पूर्ण करता है और धारण करता है (ये) जो (त्वारभ्य) आपकी शक्ति की शरण (चरामसि) गतिविधियाँ पूर्ण करते हुए (प्रभूवसो) परमात्मा के वास में, प्रसन्नता से भरपूर (न हि) नहीं है (त्वत् अन्यः) आपके अतिरिक्त कोई (गिर्वणः) यथार्थ में वैदिक वाणियों से प्रशंस्ति और स्तुति किया गया (गिरः) प्रशंसा में हमारी वाणी (सघत्) प्राप्त करता है (क्षोणीः इव) धरती माता की तरह (प्रति – हर्य से पूर्व लगाकर) (नः) हमारी (हर्य – प्रति हर्य) स्वीकार करता है (तत् वचः) उन वाणियों को।
व्याख्या:-
हमारा परमात्मा के साथ क्या सम्बन्ध है?
परमात्मा हमारे जीवन का मूलाधार किस प्रकार है?
हे परमात्मा! हम आपके लोग हैं, जिन्हें आप पूर्ण करते हो और पोषित करते हो; जो आपकी शक्ति की शरण की कामना करते हैं; जो आपके द्वारा उपलब्ध कराये गये आवासों में सभी गतिविधियाँ सम्पन्न करते हैं क्योंकि उन्हें आपकी संगति में पूर्ण प्रसन्नता मिलती है। आपके अतिरिक्त ऐसा कोई नहीं है जिसकी क्रियात्मक रूप से वैदिक वाणियों के साथ प्रशंसा और स्तुति की जा सके। कृपया हमारी प्रार्थना को ग्रहण करके स्वीकार करो।
जीवन में सार्थकता: –
धरती माता की तुलना परमात्मा से क्यों की जाती है?
परमात्मा के साथ हमारा सम्बन्ध अद्वितीय और असमानान्तर है। हमारा प्रत्येक श्वास और परिणामतः हमारा पूरा जीवन केवल उसी पर निर्भर करता है। परमात्मा के अतिरिक्त ऐसी कोई सत्ता या व्यक्तित्व नहीं है जो हमारी पूर्ण प्रशंसाओं का हकदार हो। वह केवल उन्हीं प्रशंसाओं को स्वीकार करता है जो वैदिक विवेक के अभ्यास के साथ जुड़ी होती हैं।
हमारी प्रशंसाओं और प्रार्थनाओं को स्वीकार करने के सम्बन्ध में परमात्मा की तुलना धरती माता से होती है, क्योंकि हमारे जन्म, पालन-पोषण और हमारी सभी गतिविधियों के लिए धरती माता ही परमात्मा की प्रत्यक्ष दिव्य शक्ति है। अन्ततः हमारे शारीर भी केवल धरती माता में ही संयुक्त हो जाते हैं। अतः धरती माता हमारे लिए परमात्मा की सभी शक्तियों का जीवन्त उदाहरण हैं।
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
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