- दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)
परिवार के उत्तम जीवन हेतु पुरुष हों या महिला सभी प्रयासरत रहते हैं पर जब यह प्रयास जीवन यापन के उद्देश्य से अतिरिक्त दिखावे में परिवर्तित हो जाता है तो परिवार के पतन का मार्ग खुल जाता है । कलफ लगे हुए कपडे , मैचिंग के जूते , घडी , झुमके , महंगे फ़ोन आदि जब एक सामान्य परिवार के मन में प्रवेश करते हैं तो एक विकल्प है की आप अपने संघर्ष को बढ़ाओ और सभी साधनो की पूर्ति करो और दूसरा विकल्प है की संघर्ष के स्थान पर ऐसा मार्ग चुनो जहाँ लिप्सा हो , व्यसन हो , चारित्रिक हनन हो और स्वयं को दूसरे से ज्यादा साधनयुक्त दिखाने हेतु अपने परिवार के विश्वास को रौंद दो । स्त्री हो या पुरुष ज्यादतर सनातनी समाज के लोग दूसरे मार्ग का चयन कर रहे हैं । जिसके कारण सनातनी परिवार संस्कार विहीन जीवन जीकर इस राष्ट्र और समाज को कमजोर कर रहे हैं । कुछ लोग इस्लाम में कमियां निकालते हैं परन्तु गम्भीरतापूर्वक विचार करियेगा जितना पाश्चात्यकरण , व्यसन और लिप्सा का संचार सनातनी समाज में हुआ उतना किसी अन्य समाज में नहीं । आज के युग में किसी को धन की भूख है तो किसी को वासना की भूख , किसी को पद चाहिए तो किसी को स्वयं का वर्चस्व परन्तु इस सब होड़ में पीछे छूट रहा है तो वह है आध्यात्मिक , मर्यादित और संतुलित जीवन , प्रत्येक व्यक्ति स्वयं की जरूरतों के अनुशार अपने कुक्र्त्यो को भी सही साबित करने में लगा हुआ है परन्तु सत्यता तो यही है सनातनी समाज का पतन सर्वप्रथम स्वयं सनातनी लोग ही कर रहे हैं ।