यदि आपसे पूछा जाए कि देश पहले है या दल पहले है तो आपका उत्तर निश्चित रूप से यही होगा कि देश पहले है। पर राजनीति में इस समय देश से पहले दल हो गया। लोकतंत्र नीतियों का आलोचक है। हो सकता है कि किसी विषय को लेकर आपकी विचारधारा या मत अलग हो और मेरा अलग हो पर दोनों का उद्देश्य सांझा होता है। दोनों की सोच एक होती है कि देश का भला कैसे हो सकता है ? यह मतभिन्नता लोक के कल्याण के लिए होती है, तंत्र को सुचारू रूप से व्यवस्थित किये रखने के लिए होती है। इसका अभिप्राय कदापि यह नहीं होता कि आप व्यक्ति विरोध से राष्ट्र विरोध तक पहुंच जाएं और उसे भी आप भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में व्याख्यायित करने लगें। लोकसभा के चल रहे चुनाव के समय इंडिया गठबंधन के नेताओं ने जिस प्रकार व्यक्ति विरोध से आगे बढ़कर राष्ट्र विरोध के स्वर मुखरित किए हैं, वह चिन्ता का विषय है। राष्ट्र विरोध की भाषा शैली से देश के लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हुआ है। हमें अपेक्षा करनी चाहिए कि देश का जागरूक मतदाता राष्ट्र विरोध करने वाली राजनीति और राजनीतिक लोगों को पहचाननेगा । उन्हें उनका सही स्थान बतायेगा और इस बात के लिए बाध्य करेगा कि तुम्हें आत्मावलोकन करना चाहिए। इस दौरान देश के धर्मनिरपेक्ष दलों या कहिए कि इंडिया गठबंधन के नेताओं की ओर से हिंदुत्व के विषय में बार-बार इस प्रकार के विचार आए हैं कि यही विचारधारा है जो देश को तोड़ने का काम करती है। उन्होंने हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं को चोट पहुंचाने की भाषा को अपनाकर यह संकेत भी दिया है कि वह अपनी परंपरागत हिंदू विरोध की राजनीति को मुस्लिम तुष्टिकरण के माध्यम से यथावत जारी रखेंगे। उन्होंने अपने आचरण से ऐसा स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि आज भी देश में हिंदुत्व और बहुसंख्यक हिंदू समाज या सनातन की ठेकेदार केवल भाजपा या उसके सहयोगी दल हैं और हमें हिंदुत्व सनातन से कोई लेना देना नहीं है। इन नेताओं की इस प्रकार की राजनीति से स्पष्ट होता है कि इन्होंने अपनी नीतियों को लेकर आत्म मंथन नहीं किया है। तभी तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव प्रचार के दौरान रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन, भारतीय सेवा मिशन जैसे शांतिप्रिय संगठनों को भी राजनीति की गंदी कीचड़ में घसीटने का काम किया है। उन्होंने कहा है कि यह सभी संगठन या धार्मिक संस्थाएं भाजपा के लिए काम कर रही हैं। अब प्रश्न यह है कि यदि देश के धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल मुस्लिम इमामों , मौलवियों या मुस्लिम संगठनों के चक्कर काटें और उनको मुस्लिम समाज को अपने साथ लामबंद करने के लिए प्रयोग करें तो यह तो चलेगा, पर देश की जनभावना के साथ जुड़कर चुपचाप काम करने वाले हिंदू संगठन या धार्मिक संस्थाएं यदि शांतिपूर्वक भी काम करें तो भी वह देश में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने का काम कर रही होती हैं? राजनीति दूषित ही नहीं होती है यह खतरनाक भी होती है। यह देश को बचाने के लिए नहीं , जलाने के लिए भी काम कर रही होती है। इसके आचरण और उद्देश्य को समझना किसी भी देश के मतदाताओं के लिए बड़ा आवश्यक होता है। यह स्वार्थी लोगों का जमावड़ा होती है। जिन्हें देश और समाज की सेवा से कुछ लेना नहीं होता है। ये सारे के सारे पेटसेवा के लिए मैदान में उतरकर सफेदपोश बनकर काम कर रहे होते हैं। वास्तव में यह बड़े काले होते हैं, उनके कपड़ों पर खून के धब्बे लगे होते हैं। इनके दिल की कालिमा इनके आचरण में स्पष्ट दिखाई देती है।
मुस्लिम तुष्टिकरण को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता उच्च न्यायालय के निर्णय पर जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया है, उससे स्पष्ट होता है कि उनका कानून के राज में तनिक सा भी विश्वास नहीं है। वह संविधान से ऊपर उठकर या अलग हटकर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने के लिए आतुर दिखाई देती हैं। उनके आलोचक उनके बारे में कहते रहे हैं कि वह वृहद बांग्लादेश बनाकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने के लिए भी काम करती रही हैं। निश्चित रूप से ऐसे राजनीतिक लोग देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा होते हैं।
आज की राजनीति का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इस समय अपने आप को देश के कर्णधार समझने वाले अधिकांश धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञ भारत और सनातन के बारे में शून्य ज्ञान रखते हैं। उन्हें नहीं पता कि सनातन का अभिप्राय क्या है ? जबकि सृष्टि के प्रारंभ के साथ सनातन का उदय हुआ है। सृष्टि प्रलय पर्यंत सनातन यथावत रहेगा। इतना ही नहीं, सनातन इस सृष्टि के पूर्व में भी था और सृष्टि के पश्चात भी रहेगा। यह कभी समाप्त नहीं होता। यह परमपिता परमेश्वर की व्यवस्था का शुद्धतान सात्विक ज्ञान है। जिसकी परंपरा प्रत्येक सृष्टि में बनी रहती है। विद्वानों की मान्यता है कि विकराल काल में भी जो मृत्यु से मुक्त रहता है, वह सनातन है। वही हमारा आर्यत्व है। उसी को आज के व्याख्याकार हिंदुत्व के नाम से पुकारते हैं ।यही परंपरा हमारे आर्यत्व की परंपरा है। जो मरता है वह झरता है। यह आर्यत्व की या सनातन की विकृति है। विकृति हमारे चिंतन की मुख्यधारा कभी नहीं हो सकती। क्योंकि हमने संस्कृति को निर्मित किया है और संस्कृति को ही अपनी विचारधारा का केंद्रीभूत तत्व स्वीकार कर राष्ट्र निर्माण से विश्व निर्माण के कीर्तिमान स्थापित किए हैं। भारत का सत्य सनातन धर्म वह है जो काल के इस अनंत वक्ष विस्तार में इतिहास के प्रत्येक युगांतरकारी मोड़ पर त्याग और बलिदान की रोमांचकारी घटनाओं से महिमा मंडित है। सनातन अजन्मा है। अनादि है। अनंत है। वह सदा से था और सदा रहेगा। इसमें शाश्वत और सनातन जो कुछ है, वही भारत का वैदिक ज्ञान है। क्या आज के राजनीतिज्ञ इस सत्य को स्वीकार करने का साहस दिखा सकते हैं ? हमारा मानना है कि कदापि नहीं। देश के जितने भर भी धर्मनिरपेक्ष नेता हैं उन सबके पास ज्ञान गांभीर्य उतना नहीं है जितने की अपेक्षा उनसे की जा सकती है।
राजनीति आज जिस कीचड़ में धंसी खड़ी है, सचमुच इसे उससे निकालने की आवश्यकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)