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आज का चिंतन

🔥ओ३म्🔥* *🌷ईश्वर की भक्ति करो🌷*

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मनुष्य कई प्रकार के नशों का पान करता है, भांग, शराब, गांजा, अफीम, आदि का सेवन करता है उससे मनुष्य को एक प्रकार का नशा सा प्रतीत होता है जो उसका नाश करने वाला होता है। प्रभु भक्ति भी एक नशा है जिसके सेवन से नाश या ह्रास नहीं अपितु उसका विकास होने लगता है। मानव उन्नति की ओर अग्रसर होने लगता है, भक्ति रुपी सोम रस के पान से क्या मिलता है इसका वर्णन वेद ने इस प्रकार किया है―
(1) वह भगवान् अमर है, न मरने वाला है। जो उसकी भक्ति करता है वह भी अमर हो जाता है, मृत्यु के भय से रहित हो जाता है, उसे किसी प्रकार का कोई भय भयभीत नहीं कर सकता।
(2) भक्ति रस का पान करके मनुष्य आनन्दमय हो जाता है। इस परमानन्द का अनुभव करने लगता है जिसमें दु:ख नहीं, शोक नहीं, राग नहीं, द्वेष नहीं, मस्ती ही मस्ती है। न हटने वाली मस्ती है।
(3) भक्ति रस का पान करने से मानव के समीप देवों का सत्पुरुषों का आगमन होने लगता है। गुणी, ज्ञानी लोगों का उसके पास एक मेला सा लगा रहता है। जिससे स्वत: उसे सत्संगति प्राप्त होने लगती है।
(4) भक्ति रस का पान करने तथा ज्ञानी भक्तों की संगति से भक्त में सहसा दिव्य गुणों का आधान और दुर्गुणों का ह्रास होने लगता है। उसमें सद्विचार और सद्गुण आने लगते हैं, दुर्गुण और दुर्विचार दूर भाग जाते हैं।
(5) भक्ति रस का पान करने से मानव के अन्त:करण में अन्त:ज्योति वा प्रकाश उदय हो जाता है। जिससे अन्दर का सारा तम और अज्ञान परे हट जाता है। उस अन्त:ज्योति को प्राप्त करके भक्त कभी ठोकर नहीं खाता अपितु उसके मार्ग अपने आप सुन्दर और सुहावने बनते जाते हैं और अन्त में वह प्रभु के सुन्दर धाम को प्राप्त कर लेता है।
(6) भक्त के सब प्रकार के आन्तरिक तथा वाह्य शत्रु परास्त हो जाते हैं। काम, क्रोध, मोह, अहंकार आदि आन्तरिक कुप्रवृत्तियाँ और दुष्ट पुरुषों की कुरीतियां उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। धूर्त मनुष्यों की धूर्तताएं भी उसके समक्ष सतत् विफल रहती हैं व भक्त के मार्ग निष्कण्टक होते जाते हैं। वेद कहता है कि―
अपाम सोमममृताभूमागन्म ज्योतिरविदाम देवान् ।
किं नूनमस्मान् कृण्वदराति: किमु धूर्तिरमृत मर्त्यंस्य ।।
―(ऋ० ८/४८/३)
भावार्थ―हे अमृत रुप ईश्वर, हे जरा मृत्यु रहित देव ! हमने तेरे सोम का भक्ति रस का पान किया है। अत: हम अमर हो गये हैं। हमने तेरी ज्योति को प्राप्त कर लिया है भला शत्रु हमारा क्या बिगाड़ सकता है। और दुष्ट मनुष्य की धूर्तता भी हमारा क्या बिगाड़ सकती हैं।
प्रस्तुति: भूपेश आर्य
[ ‘अनुपम उपदेश रत्नावली’ पुस्तक से, लेखक: आचार्य हरिदेव ]

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