धन और शांति का मनुष्य जीवन में महत्व

     व्यक्ति को धन भी चाहिए और शांति भी। धन कमाने के लिए वह पढ़ाई करता है, ऊंची ऊंची डिग्रियां लेता है, ऊंचे-ऊंचे पदों की प्राप्ति करता है। "फिर धन कमा कर वह भोजन वस्त्र मकान मोटर गाड़ी तथा अन्य भी बहुत से जीवन ज़रूरी सामान खरीद लेता है। बहुत सा सम्मान भी उसे मिल जाता है।" "इन सब भौतिक पदार्थों की सहायता से व्यक्ति का जीवन अच्छा चलता है। बहुत सी सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। उसे "भौतिक सुख" के नाम से कहा जाता है। इतना सब होने पर भी उसके मन में अशांति बनी रहती है।"
     इसके दो कारण हैं । पहला कारण -- "धन संपत्ति भोजन वस्त्र मकान यान आदि भौतिक वस्तुओं में सुख सुविधा देने का सामर्थ्य तो है, परंतु मानसिक शांति देने का सामर्थ्य नहीं है।" और दूसरा कारण -- "जब व्यक्ति बहुत अधिक धन कमाता है, तो अनेक बार वह संविधान के विरुद्ध आचरण भी कर लेता है। अर्थात झूठ छल कपट चोरी बेईमानी रिश्वतखोरी इत्यादि पाप कर्म भी कर लेता है। इन पाप कर्मों को करने के कारण ईश्वर उसके मन में अशांति उत्पन्न कर देता है।"
      "यदि कोई व्यक्ति धर्मानुकूल पद्धति से धन कमाए, बुद्धिमत्ता ईमानदारी और परिश्रम से धन कमाए, गैरकानूनी कार्य न करे, तो ईश्वर उसके मन में शांति उत्पन्न देता है। उसे अशांति नहीं होती।"
       इसलिए जो लोग शांति प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें दो कार्य करने होंगे। "एक तो -- व्यवहार में ईश्वर की आज्ञा का पालन करें। गैर कानूनी कार्य न करें, धर्मानुकूल आचरण करें। सभ्यता नम्रता सेवा पुरुषार्थ परोपकार बुद्धिमत्ता ईमानदारी परिश्रम आदि अच्छे गुण कर्म स्वभाव को धारण करें, और इनसे सारे व्यवहार चलावें। ईश्वर उन्हें शांति अवश्य देगा।"
     और दूसरा कार्य -- "शांति प्राप्त करने के लिए ईश्वर की उपासना करें।" "क्योंकि शांति कहीं बाजार में नहीं मिलती, धन से नहीं मिलती, बल्कि व्यवहार में ईश्वर आज्ञा पालन करने और सुबह शाम उसकी उपासना करने से मिलती है।" "भौतिक वस्तुओं का प्रयोग केवल इतनी सीमा तक करें, कि उनकी सहायता से जीवन रक्षा हो जाए।" "उनसे शांति की आशा न रखें, क्योंकि भौतिक पदार्थ शांति देने में असमर्थ हैं।" 

—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”

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