डॉ डी के गर्ग , भाग 1
निवेदन: ये लेख ५ भागो में है ,पूरा पढ़े / इसमें विभिन्न विद्वानों के द्वारा लिखे गए समय समय पर लेखो का संपादन किया है। कृपया अपने विचार बताये।
प्रचलित मान्यता: ऐसा कहा जाता है की इस पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्म भारत के बिहार प्रदेश के लुम्बिनी के स्थान पर हुआ था, और इसी पूर्णिमा के दिन कुशीनगर में निर्वाण हुआ था.उनके जन्म-ज्ञान-निर्वाण के साथ इस दिन को जोड़ कर देखते है और बैसाख की पूर्णिमा के दिन को बौद्ध अनुयायी बुद्ध-पूर्णिमा पर्व मनाते है।
वास्तविकता क्या है ? जन्म बैसाख की पूर्णिमा के दिन होना और निर्वाण भी इसी दिन होना ,दोनों को एक ही दिन होना संदिग्ध है और इसका कोई प्रमाण भी नही है ।
पूर्णिमा को चंद्रमा अपने उजाले से पूरी रात अमृत वर्षा करता है,पुष्प आदि में सुगंध और बड़ जाती है । इस आलोक में पूर्णिमा का पर्व गोतम बुध से पूर्व उनके पूर्वज भी मनाते आए है और सम्मान व उपयोगिता के अनुसार पूर्णिमा के दिन को किसी न किसी महापुरुष के साथ जोड़ दिया ,ये भी संभव है।
उदाहरण के लिए पूर्णिमा पर: होली, बुद्ध पूर्णिमा , शरद पूर्णिमा,गुरु पूर्णिमा, रक्षाबंधन,हनुमान जयंती , गुरु नानक जन्मदिन,कबीर जयंती,गंगा स्नान आदि अलग अलग पूर्णिमा माह को मनाए जाते है।
इसी आलोक में बुध पूर्णिमा का पर्व गौतम बुध के सम्मान के रूप में मनाया जाने लगा ।ये तथ्य ज्यादा तार्किक प्रतीत होता है।
बैसाख की पूर्णिमा का पर्व बुद्ध-पूर्णिमा हो गया और ये ही प्रचलन में आ गया ।
बैसाख माह की पूर्णिमा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस माह मुख्य रूप से उत्तरी भारत में वसंत ऋतु की फसल के उत्सव के रूप में देखा जाता है।इस दिन तक अधिकांश फसल उग चुकी होती है, किसान को भरपूर आमदनी होती है, घर में सुख शांति के साथ-साथ धन और वैभव का आगमन होता है। इसलिए ये खुशी का नियत दिन है और आमदनी में से दान, पुण्य कार्य किये जाते है। गुरुकुलों को शिक्षा हेतु अन्न, और धन आदि दान में देने की परम्परा रही है ताकि शिक्षा कार्य, बौद्धिक विकास हो।
बुद्ध शब्द का भावार्थ ईश्वर से भी जुड़ा है : ‘‘बुध अवगमने ‘‘ धातु से बुध शब्द सिद्ध होता है।‘‘ यो बुध्यते बोध्यते वा स बुधः‘‘ जो स्वयं बोध स्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है, इसलिए परमेश्वर का नाम बुध है ।(सत्यार्थप्रकाश, प्रथम समुल्लास, महर्षि दयानन्द कृत)
परम पिता परमात्मा हमारा गुरु है,आचार्य भी है,मार्गदर्शक है, प्रेरक है, बोध स्वरूप है, प्रबोधक है, ज्ञान प्रदाता है, जागृत करने वाला है, उपदेशक है, इतने सारे शब्दों का सार है ‘‘बुध‘‘। ईश्वर स्तुति करने, ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और आध्यात्मिक ज्ञान वर्धन का पर्व बुद्ध पूर्णिमा है।
गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) की तीन मुख्य शिक्षाओं का अध्ययन: मित्रो , जीवन में एक सिद्धांत अपना ले -सत्य को ग्रहण करना है और असत्य को छोड़ देना है। ये जो वर्तमान में बुद्ध के पूजक है ये सच में बुद्ध के बताये हुए रास्ते पर नहीं चलते ,बल्कि सत्य से भटकने का मार्ग तलाशते रहते है। इसलिए महान संत गौतम बुद्ध की तीन प्रमुख शिक्षा समझने की जरुरत है। इसके पूर्व ये भी स्पष्ट कर देना चाहिए की गौतम बुद्ध ने वेद न नहीं पढ़े थे और उस समय पाखंड अपनी चरम सीमा पर था , इसलिए राज काज छोड़कर बौद्ध ने समाज सुढार के लिए जो भी प्रयास किया उसकी सराहना की जानी चाहिए।
शिक्षा १: बुद्धं शरणं गच्छामि : मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ। का वास्तविक भावार्थ है की मैं ज्ञान अर्जित करके बुद्धिमान बनु। अज्ञान से दूर रहु। इस विषय में वेद मंत्र भी है –
यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते |
तया मामद्य मेधायग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा || ( यजुर्वेद — ३२ / १४ )
व्याख्या — हे सर्वज्ञाग्ने ! परमात्मन् ! ” यां मेधाम् ” जिस विज्ञानवती , यथार्थ धारणावाली बुद्धि को ” देवगणाः ” देवसमूह ( विद्वानों के वृन्द ) ” उपासते ” धारण करते हैं तथा यथार्थ पदार्थविज्ञानवाले ” पितरः ” पितर जिस बुद्धि के उपाश्रित होते हैं , उस बुद्धि के साथ ” अद्य ” इसी समय कृपा से ” माम् मेधाविनम् कुरु ” मुझको मेधावी कर । ” स्वाहा ” इसको आप अनुग्रह और प्रीति से स्वीकार कीजिए , जिससे मेरी सब जड़ता दूर हो जाए ।
दूसरा: धम्मं शरणं गच्छामि : मैं धर्म की शरण लेता हूँ। ये शब्द पाली भाषा का है ,हिंदी में धर्म शब्द ही समझे।
अब समझे धर्म क्या है ?
धर्म संस्कृत भाषा का शब्द हैं जोकि धारण करने वाली धृ धातु से बना हैं। “धार्यते इति धर्म:” अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं। अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यहभी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति हैं वह धर्म हैं।
मनु स्मृति में धर्म की परिभाषा :
धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं ६/९
अर्थात धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फँसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण हैं।
दूसरे स्थान पर कहा हैं आचार:परमो धर्म १/१०८
अर्थात सदाचार परम धर्म हैं
तीसरा सिद्धांत :संघं शरणं गच्छामि : मैं संघ की शरण लेता हूँ। इसका भावार्थ संगठन से लेना चाहिए। संयुक्त परिवार ,संयुक्त गांव ,संयुक्त विचारधारा से ही तरक्की संभव है। ऋग्वेद में संगठन सूत्र पर वेद मंत्र भी मिलते है है –
ओ३म् सं समिधवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्य आ | इड़स्पदे समिधुवसे स नो वसुन्या भर || …
ओ३म सगंच्छध्वं सं वदध्वम् सं वो मनांसि जानतामं | देवा भागं यथा पूर्वे सं जानानां उपासते || …
समानो मन्त्र:समिति समानी समानं मन: सह चित्त्मेषाम् | …
ओ३म समानी व आकूति: समाना ह्र्दयानी व:
संक्षेप में भावार्थ काव्य में ,
“हों विचार समान सब के चित्त मन सब एक हों |
ज्ञान देता हूँ बराबर भोग्य पा सब नेक हो ||
हों सभी के दिल तथा संकल्प अविरोधी सदा |
मन भरे हो प्रेम से जिससे बढे सुख सम्पदा ||
एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है हमारा वास्तविक सनातन धर्म।”
आप भी बन सकते है बुद्ध —
बुद्ध के तीन मुख्य शिक्षाओं पर चलकर आप भी बुद्ध बन सकते है। लेकिन वर्तमान में जो बौद्ध समुदाय है उसमे मांसाहार ,शराब का सेवन ,महिलाओं का फूहड़ प्रदर्शन आदि का चलन बढ़ता जा रहा है। सिर्फ बौद्ध की तस्वीर के आगे अगरबत्ती का धुँवा करने ,वेद और मनुस्मृति को नकारने ,जन्मना जाति का समर्थन करने ,बौद्ध की मूर्ति के आगे दंडवत करने ,बच्चो के सर मुंडवाकर लाल कपडे पहनाने से आप कभी भी बुद्ध नहीं हो सकते।
पर्व विधि:
1 गौतम बुध की तीनों प्रमुख शिक्षाओं पर चर्चा करे और अनुपालन का संकल्प ले।
2 सामाजिक समरसता और एकता के लिए गोष्ठी आयोजित करे और मिलजुलकर रहने का संकल्प ले।
3 शिक्षा का प्रचार प्रसार करें। ज्ञानवान ,बुद्धिमान बनाने के लिए पुस्तकालय खोले ,पत्रिकाएं मंगवाएं।
3 छुआछूत खत्म करने का संकल्प और शाकाहारी भोजन का संकल्प ले,जीव हत्या ना होने देने का संकल्प ले।
४विद्वान लोगो की संगति करें, उनका आदर सम्मान करने का संकल्प ले ।
5.वैदिक साहित्य का प्रचार-प्रसार करने का और ज्ञान वर्धन का संकल्प लें।
6 सामूहिक यज्ञ करे और पूर्णिमा के मंत्रों के साथ विशेष आहुति डाले।