-ललित गर्ग-
लोकसभा चुनाव का चुनाव प्रचार चरम पर है। सभी राजनीतिक दल अपनी बढ़त बनाने के लिये कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण करने का प्रयास करते हुए राष्ट्र की एकता-अखण्डता एवं बहुसंख्यक हिन्दू धर्म विरोधी स्वरों को बुलंद किये हुए है और अपनी मर्यादाओं को भूल रहे हैं। विशेषतः इंडिया गठबंधन से जुड़े दल एवं बाहर से समर्थन देने की बात करने वाले दल ऐसा दूषित प्रचार कर रहे हैं, जिससे न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हो रहा है बल्कि ऐसे दलों को राजनीतिक लाभ की बजाय नुकसान होने की संभावनाएं प्रबल हो रही है। इन चुनावों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस एवं इंडिया गठबंधन के अन्य दल हिन्दुओं से, हिन्दू मन्दिरों-भगवानों-संतों एवं हिन्दू पर्वों से नफरत का बिगुल हर मोड़ पर बजाते रहे हैं जो हर रोज सामने आ रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए और अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए हिन्दू संतों को राजनीति में घसीटने की कोशिश की है। उन्होंने रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन और भारत सेवाश्रम संघ से जुड़े संतों पर निशाना साधते हुए कहा है कि ये लोग भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। मुस्लिम तुष्टीकरण के लिये ओबीसी आरक्षण पर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्णय पर कानून की धज्जियां उडाते हुए उंगली उठाई है। इस प्रकार कानून की अवमानना वह नेता ही खड़ी कर सकता है, जिसे एक खास वर्ग के वोट चाहिए। संतों को लेकर राजनीतिक टिप्पणी करना, निःसंदेह आपत्तिजनक है एवं दुर्भाग्यपूर्ण है।
कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस हिन्दुओं को अपने ही देश में सेकेंड क्लास सिटिज़न एवं अल्पसंख्यक बनाना चाहती है। मुस्लिम तुष्टीकरण की इन दलों की सोच एवं नीति न केवल उनके घोषणा-पत्रों में बल्कि उनके बयानों में स्पष्ट झलक रही है। सभी विपक्षी दलों ने मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति की है, राजनीतिक दलों का एकतरफा रवैया हमेशा से समाज को दो वर्गों में बांटता रहा है एवं सामाजिक असंतुलन तथा रोष का कारण रहा है। बदले हुए राजनीतिक हालात इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि किसी भी एक वर्ग की अनदेखी कर कोई भी दल राजसत्ता का आनंद नहीं उठा सकता। लेकिन लगातार जीत की ओर बढ़ रहे भाजपा को हराने के लिये इन दलों को मुस्लिम वोटों का ही सहारा नजर आ रहा है, जिसके चलते ये हिन्दू विरोध को प्रचंड किये हुए।
ममता बनर्जी ने अपने शासन में मुस्लिमों को खुश करने एवं उनके वोटों को अपने पक्ष में करने के लिये हिन्दू विरोध का कोई मौका नहीं छोड़ा है। ममता ने रामकृष्ण मठ, मिशन और भारत सेवाश्रम संघ पर झूठा एवं भ्रामक आरोप लगाया है कि ये हिन्दू संगठन भाजपा के पक्ष में काम कर रहे हैं, जबकि इन संगठनों की ओर से एक बार भी भाजपा के पक्ष में मतदान करने का आह्वान नहीं किया गया है। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में इस्लामिक संगठनों एवं चर्चों के द्वारा भाजपा के विरोध में किसी एक विशेष दल के पक्ष में मतदान करने के प्रकरण बार-बार सामने आये हैं। चुनावों को धार्मिक एवं साम्प्रदायिक रंग देने की इन विडम्बनापूर्ण स्थितियों पर आज तक ममता बनर्जी ने एक भी बयान नहीं दिया है। इसलिए भी कहा जा सकता हैं कि बिना किसी प्रमाण हिन्दू संतों पर निशाना साधने का अभिप्राय यही है कि ममता बनर्जी की निगाहें कहीं और है निशाना कहीं और है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा ममता बनर्जी पर संतों को धमकाने का आरोप निराधार नहीं है। क्योंकि एक संत कार्तिक महाराज ने मुख्यमंत्री ममता को कानूनी नोटिस भेज कर कहा है कि ममता बनर्जी के बयान निराधार, झूठे और अपमानजनक है।
पश्चिम बंगाल ही नहीं, अन्य गैर-भाजपा सरकारों के प्रांतों में हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के घटनाक्रम सामने आते रहे हैं। पश्चिम बंगाल में तो हिन्दुओं के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का उग्र और हिंसक प्रदर्शन होता रहा हैं। पिछले कुछ सालों से हमेशा यह देखा गया है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता सत्ता पाकर भाजपा समर्थकों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करते हैं। वर्ष 2021 में भी तृणमूल कांग्रेस के जीतने के बाद राज्य में बवाल हुआ था और पंचायत चुनाव जीतने के बाद भी उसके कार्यकर्ताओं ने हिंसक उत्पात मचाया था। उस समय भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों को खोज-खोजकर हमले हुए थे। ऐसे स्थिति में और ऐसे कार्यकर्ताओं के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का हिन्दू संगठनों एवं धर्मगुरुओं के भाजपा के पक्ष में होने का बयान संतों के लिए जान तक का खतरा पैदा कर सकता है। ऐसा हुआ भी है, ममता बनर्जी के बयान के बाद कुछ हमलावर जलपाईगुड़ी स्थित रामकृष्ण मिशन के आश्रम में घुस गए। उन्होंने भिक्षुओं पर हमला किया, सीसीटीवी आदि तोड़े दिए। याद हो कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में पहली बार संतों पर दोष लगाकर उनके खिलाफ माहौल बनाने का काम नहीं हुआ।
मुस्लिम वोटों को आकर्षित करने के लिये इंडिया गठबंधन के दल विशेषतः कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस अल्पसंख्यकों को भी सपोर्ट नहीं कर पा रहे हैं। अल्पसंख्यकों में सिख, पारसी, यहूदी, जैनी, बौद्ध आदि धर्म आते हैं, लेकिन कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम परस्ती करते आई है। ओबीसी आरक्षण पर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने जिस तरह से कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्णय पर उंगली उठाई है, उससे तो यही लगता है कि राजनीतिक वोट बैंक के लिए संविधान की जितनी अवमानना की जा सकती है, वह की जाती रहेगी। सामनेवाले को घेरने के लिए उसी संविधान की आड़ भी ली जाएगी। ममता ने मुस्लिमों को ओबीसी सर्टिफिकेट देकर उन्हें तरह-तरह से लाभ पहुंचाने का षड़यंत्र किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी रैलियों में इंडी गठबंधन के सत्ता में आते ही एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण को मुस्लिमों को देने की बात कह रहे हैं, वह भी इस घटना से साफ होता नजर आ रहा है। धर्म के आधार पर आरक्षण भारतीय संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों के खिलाफ है।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 22 मई को पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद जारी ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द करने का आदेश दिया है। जस्टिस तपोब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर की बंेच ने कहा कि 2011 से प्रशासन ने किसी नियम का पालन किए बगैर ओबीसी सर्टिफिकेट जारी कर दिए। इस तरह से ओबीसी सर्टिफिकेट देना असंवैधानिक है। यह सर्टिफिकेट पिछड़ा वर्ग आयोग की कोई भी सलाह माने बगैर जारी किए गए। इसलिए इन सभी सर्टिफिकेट को कैंसिल कर दिया गया है। हालांकि यह आदेश उन लोगों पर लागू नहीं होगा, जिन्हें पहले नौकरी मिल चुकी या मिलने वाली है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 के आधार पर ओबीसी की नई सूची पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग तैयार करेगी।
ममता बनर्जी सरकार से पहले वामपंथी शासन काल में भी हिन्दू संतों को माकपा की सरकार ने निशाना बनाया था। तब परिणाम यह हुआ था कि कोलकाता में सरेआम 16 भिक्षु और 1 साध्वी हत्या की गई थी। आज उस नरसंहार को ‘बिजोन सेतु नरसंहार’ कहा जाता है। राजनीतिक बेशर्मी देखिए कि सरेआम संतों की हत्याएं की गईं लेकिन आज तक उस नरसंहार में किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। माकपा सरकार पर आरोप हैं कि उसने इस मामले से संबंधित तथ्यों को छिपाया। नरसंहार की जाँच के लिए बने आयोगों को न तो माकपा सरकार ने सहयोग दिया और न ही तृणमूल कांग्रेस ने। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान के बाद से भय का वातावरण बन गया है। आश्रमों एवं संतों को नुकसान पहुँचाने की आशंका गहरा गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सांप्रदायिक बयान की जितनी निंदा की जाए कम है। यह तो निश्चित है कि वर्तमान कांग्रेस, पूर्व में आजादी से अब तक की कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति ही की है। इस सोच के कारण कांग्रेस एवं अन्य इंडिया गठबंधन के दलों ने राम मंदिर उद्घाटन से भी दूरी बनाये रखी। इंडिया गठबंधन, कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि का नुकसान इन दलों को निश्चित रूप से मिलेगा। क्या वास्तव में ये दल अपनी बिगड़ती छवि एवं नुकसान से परेशान है? या इस बात से कि उसकी छवि बिगाड़कर ‘हिंदू विरोधी’ बताने की कोशिश की जा रही हैं? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि वे अपनी बदहाली के कारणों को समझना भी चाहते है या नहीं?
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