दौलत और शोहरत, ज़माना देखता है
स्वर्ग की कामना रखने वालों, जरा ध्यान दो :-
दौलत और शोहरत,
ज़माना देखता है।
मगर दिल की पाकीज़गी,
सिर्फ खुदा देखता है॥2650॥
जन्नत की तमन्ना है,
तो दिल को पाक रख।
जहाँ तेरा यकीन करें,
ऐसी साख रख ॥2651॥
जन्नत में पुण्य की ,
मुद्रा चलती है।
वहाँ संसारी दौलत को,
कोई नहीं पूछता॥2652॥
साधक सच्चिदानन्द के स्वरूप को कब प्राप्त होता है:-
नदी समर्पण जब करें,
तो सागर पन जाए।
मन बुद्धि अर्पण करे,
तो हरि सा हो जाए॥2653॥
*मुखतक*
मलने को तो रोज,
हजारो लोग मिलते हैं।
मगर हजारों गलतियों को,
माँ-बाप ही माफ करते हैं॥2654॥
*शेर*
केतना बदनसीब है ज़फ़र,
क़फ़न के लिए,
दो गज जमीन भी न मिली,
दफ़न के लिये॥2655 ॥
‘दिल्ली का अंतिम बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र’
*'शेर'*
कभी रोती -कभी हसंती,
कभी लगती शराबी सी,
मोहब्बत जिन में होती है,
वे आँखे और होती है॥2656॥
आत्मस्वरूप को निहारो, बुढ़ापे को सुधारो :-
तन की गति धीमी पड़े,
मन की गाति हो तेज ।
निज स्वरूप निहारे नहीं,
हरि से करे गुरेज॥2657॥
प्रज्ञापराध के दुष्परिणाम क्या है?:-
आवै जब अज्ञान तो,
आत्म- रस खो जाय।
प्रज्ञा से अपराध हो,
कृति बिगड़ती जाय॥2658॥
संसार के प्रति सोइये किन्तु भगवान के प्रति जागिये:-
जग के प्रति सोना भला,
ईश के प्रति जाग।
मोह-निद्रा को त्यागियें,
जा जग से बेदाग॥2659॥
तत्वार्थ :- भाव यह है कि संसार के प्रति विरक्त रहो किन्तु भगवान के भक्त रहो, भक्त से अभिप्राय है अपने आराध्य देव के गुण, कर्म, स्वभाव जो व्यक्ति के आचरण में भावित होने लगे तो वह व्यक्ति भक्त कहलाता है दूसरा इसमें विरक्त से अभिप्राय है संसार में रहो किन्तु बहो मत, अर्थात् संसार रूपी नदी में तैरना है डूबना नहीं। प्राय: देखा जाता है कि कतिपय लोग मोहवश होकर पाप कमाते है ऐसे लोगों का मानव जीवन निष्फल रहता है। सफल जीवन उन्हीं का होता है जिनका दृष्टिकोण संसार के प्रति विरक्त भाव का होता है और भगवद् भाव में जीते हैं।
*'शेर ' भाव विभोर होकर मेज़बान अपने मेहमान का स्वागत अथवा शुक्रिया इन शब्दों से करे :-*
तुम्हारी तशरीफ़ा का,
शुक्रिया में कैसे करू,
भावनाएं आगे चल रही है,
इनमें अल्फाजों के मोती,
मैं कैसे भरू !
तहे दिल से कह रहा हूँ,
ये मंजिलो की बात है,
मैं रास्ते में क्या कहू!॥2560॥
*अपने मेज़बान का शुक्रिया तहे दिल से इन शब्दों के साथ करें-
इस इस्क़बाल के लिए,
तहेदिल से करता हूँ ।
खुदा महफूज़ रखे हर बला से,
यह दुआ सरेआम करता हूँ॥2661॥
समारोह की सफलता पर परमपिता परमात्मा को ऋद्धा के साथ कृतज्ञता ज्ञापित इन भावपूर्ण शब्दो से करें :-
तेरी कृपा से भगवान् !
आगंन बसन्त आया ।
मन का मयूर नाचा,
कल्मष का अन्त आया।
विद्वान योगी भोगी,
कोई तपसी संत आया।
शत्- शत् नमन तुझे हैं,
आनन्द अनन्त आया॥2662॥
तेरी कृपा से ……
क्रमशः