देश की सशक्त नेता श्रीमती इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी। श्रीमती इंदिरा गांधी ने 25 जुलाई 1982 को ज्ञानी जैल सिंह को देश का राष्ट्रपति बनवाया था। ज्ञानी जैल सिंह ने उस समय कहा था कि यदि मेरी नेता अर्थात इंदिरा गांधी मुझे झाड़ू लगाने के लिए भी कहेंगी , तो मैं झाड़ू भी लगाऊंगा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के इस कथन से पता चलता है कि वह नेहरू गांधी परिवार के प्रति कितने वफादार थे ? वह भली प्रकार जानते थे कि यदि इंदिरा गांधी नहीं चाहतीं तो वह कभी भी देश के राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे । उन्होंने नेहरू गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी को प्रकट करने का अब अच्छा अवसर समझा। जब इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई तो राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हीं के बेटे राजीव गांधी को उसी दिन शाम 6:15 बजे देश का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया।
राजीव गांधी बने देश के प्रधानमंत्री
राजीव गांधी एक भद्रपुरुष थे राजनीति उनके लिए उपयुक्त नहीं थी। परंतु समय और परिस्थितियों ने उन्हें देश का प्रधानमंत्री बना दिया था। प्रधानमंत्री के रूप में अब उन्हें एक नई परीक्षा के दौर से गुजरना था। जब वह देश के प्रधानमंत्री बने तो देश के लोगों को उनसे कई प्रकार की आशाएं थीं। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने बहुत धैर्य, संयम और समझदारी का परिचय दिया। उन्होंने बहुत ही धैर्य के साथ संयत भाषा में देश को संबोधित किया।
देश में उस समय सिख विरोधी दंगे भड़क चुके थे। सर्वत्र अस्थिरता, अराजकता का माहौल बन चुका था। विदेशी शक्तियां भारत को तोड़ने की प्रतीक्षा में थीं। देश निश्चित रूप से एक भयंकर दौर से गुजर रहा था। राजीव गांधी राजनीति में बहुत कच्चे थे। देश में चल रहे सिख विरोधी दंगों को लेकर उन्होंने अपने सलाहकारों की सलाह के आधार पर कह दिया कि जब बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती हिल ही जाती है। अर्थात यदि इंदिरा गांधी जैसा बड़ा वृक्ष गिरा है तो कुछ ना कुछ प्रतिक्रिया तो होगी ही । राजीव गांधी के इस कथन से दंगे और भी अधिक भड़क गए। वास्तव में, यह राजीव गांधी का अपनी मां के प्रति संवेदनात्मक दृष्टिकोण न होकर उनकी राजनीतिक अनुभवहीनता थी, जो उनसे ऐसा कहलवा गई थी। राजीव गांधी ने विरासत को तो संभाल लिया पर देश को नहीं संभाल सके। उनके इस कथन के परिणामस्वरूप दंगों की आग में देश और भी अधिक जलने लगा।
सियासत को सांप सूंघ गया था
विरासत की चादर रियासत की चादर को बचाने में अक्षम सिद्ध हुई। देश की राजनीति को निश्चित रूप से राजीव गांधी के रूप में एक भद्र पुरुष तो मिला पर एक योग्य प्रशासक की कमी अभी भी देश को अखर रही थी। उस समय सारे देश में राजीव गांधी के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा हो गई थी। जिसे देखकर देश की सियासत को सांप सूंघ गया था। सारे विपक्षी दलों ने अनुमान लगा लिया था कि अब देश के अगले लोकसभा चुनाव को लेकर उन्हें अपने प्रति अधिक आशान्वित नहीं होना चाहिए। विपक्ष के एक बड़े नेता बापू कालदाते ने तो उस समय कह भी दिया था कि इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति इस समय राजीव गांधी के साथ है और देश की जनता उन्हें भारी बहुमत से लोकसभा में भेजेगी। इसलिए इस समय विपक्ष के भाग्य पर ताले लग गए हैं। विरासत ने सियासत को तो मौन कर दिया पर उधर रियासत (अर्थात राष्ट्र ) दंगों से झुलसती जा रही थी। विरासत और सियासत दोनों ही रियासत को दूर से खड़ी देखती रहीं। ... और चमन जलता रहा। 1947 में जिस इस प्रकार देश विभाजन के समय हिंदू मुस्लिम दंगों के भयावह दृश्य लोगों ने देखे थे, नवंबर 1984 में भी देश के कितने ही भागों में उन्हीं दृश्यों की पुनरावृत्ति हो रही थी । इस बार देश तो नहीं बंटा था पर दिलों में एक दर्दनाक दीवार खड़ी हो गई थी। उस दीवार की ओट में लोग हत्याओं का पाप करते जा रहे थे। अस्तु।
आठवीं लोकसभा के चुनाव की आहट
1984 के अंत में राजीव गांधी ने अपने सलाहकारों की सलाह के आधार पर निर्णय लिया कि 8 वीं लोकसभा के चुनाव करवा लिए जाएं। उन्हें यह सलाह दी गई थी कि यदि इस समय चुनाव कराए जाते हैं तो उनका परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आना निश्चित है। इंदिरा जी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर को कांग्रेस उस समय अपने पक्ष में भुना लेना चाहती थी। फिर भी हम यह मानते हैं कि उन अत्यंत विषम परिस्थितियों में लोकसभा चुनाव कराने का निर्णय लेना भी एक साहसिक निर्णय था। जिसे राजीव गांधी ने अब ले लिया था। वैसे भी सातवीं लोकसभा का कार्यकाल भी लगभग पूर्ण ही होने वाला था। ऐसे में लोकसभा चुनाव तो होने ही थे। देश के मतदाताओं ने नई लोकसभा के चुनावों का हृदय से स्वागत किया।
कांग्रेस को मिला प्रचंड बहुमत
1984 के 8 वीं लोकसभा के चुनाव 24, 27 और 28 दिसंबर को कराये गए। चुनाव प्रचार के समय देश का युवा वर्ग और विशेष रूप से महिलाऐं राजीव गांधी के प्रति बहुत आकर्षित हो रही थीं । लोगों ने “कांग्रेस लाओ – देश बचाओ” के भावनात्मक नारे पर विश्वास किया और प्रचंड बहुमत के साथ राजीव गांधी को लोकसभा में भेज दिया। इन चुनावों के समय देश के कुल मतदाताओं की संख्या 40 करोड़ 3 लाख 75 हजार 333 थी।
लोगों ने राजीव गांधी के हाथ मजबूत करने के लिए बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लिया। अब तक के जितने भी लोकसभा चुनाव हुए थे उन सबसे बढ़कर पहली बार 64% से अधिक मतदाताओं ने मतदान किया। कांग्रेस को कुल 12 करोड़ 1 लाख 7 हजार 44 अर्थात 40.86% मत प्राप्त हुए। इतना बड़ा समर्थन अबसे पहले कांग्रेस को कभी नहीं मिला था।
लोकसभा की कुल 543 में से 541 सीटों के लिए चुनाव हुआ था। जिन पर कांग्रेस को 415 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई थी। यह भी पहली बार हुआ था जब कोई राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव में 400 के पार जाकर सीट लेने में सफल हुआ था। विपक्ष के बड़े-बड़े नेता चुनाव हार गए थे । अटल बिहारी वाजपेई जैसे दिग्गज भी ग्वालियर से चुनाव हार गए। चौधरी चरण सिंह भी बहुत कम अंतर से बागपत से अपनी जीत सुनिश्चित कर पाए थे। राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस अपनी अप्रत्याशित और शानदार सफलता के साथ शासन में लौट आई थी।
31 अक्टूबर से लेकर अब तक देश में केवल इतना ही काम हुआ था कि नए चुनाव संपन्न हो गए थे । अब देश को आगे लेकर चलने की बारी थी । रुका हुआ देश कैसे आगे बढ़े ? – इस बात पर विचार करने की आवश्यकता थी। राजीव गांधी युवा थे। उनके भीतर आगे बढ़ने की लगन थी । यह अलग बात है कि वह सियासत में कमजोर थे ,पर युवा होने के कारण उनमें सपने देखने की अच्छी सोच थी। आगे बढ़ने की इच्छा शक्ति भी थी। उन्होंने देश के लोगों को और विशेष रूप से युवाओं को कंप्यूटर के साथ जोड़कर 21वीं सदी की ओर देखने के लिए प्रेरित किया। प्रारंभिक समय में देश के युवाओं को भी लगा कि 21वीं सदी बहुत ही सुनहरी होगी और उसके निर्माण में उनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी। देश के युवाओं ने अपने युवा प्रधानमंत्री के साथ सपने देखते हुए आगे बढ़ना आरंभ किया।
राजीव का विजय अभियान और 8वीं लोकसभा के चुनाव
राजीव गांधी के विजय अभियान के रथ को उस समय कोई भी प्रदेश रोकने में सफल नहीं हुआ था। सर्वत्र उनके विजय रथ का देश के लोगों ने जाति, संप्रदाय, भाषा प्रांत आदि से ऊपर उठकर स्वागत किया। वास्तव में, यह लोगों का राष्ट्र प्रेम था जो उस समय सहानुभूति के चलते कांग्रेस के साथ जुड़ गया था। राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए लोग कांग्रेस को लाना आवश्यक समझ रहे थे। अपनी राष्ट्र प्रेम की भावना को प्रकट करते हुए बड़ी संख्या में लोग राजीव गांधी के रथ का स्वागत करते। जहां भी राजीव गांधी जाते, वहीं पर लोग बड़ी संख्या में पहुंचकर उनके प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते। बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया था कि 1977 के चुनावों की भांति लोग स्वयं ही कार्यकर्ता बनकर मैदान में उतर आए हैं। वे राजीव गांधी को इस बात के लिए निश्चित कर देना चाहते हैं कि हम देश का भविष्य आपके भीतर देख रहे हैं। आप आगे बढ़िये, सारा देश आपके साथ है।
जहां सारा देश इस प्रकार राजीव गांधी के साथ खड़ा हुआ दिखाई दे रहा था, वहां दक्षिण में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन0टी0 रामाराव ने राजीव गांधी के विजय रथ को रोकने का बड़ा काम कर दिखाया। उनकी तेलुगू देशम पार्टी उस समय लोकसभा में कांग्रेस के बाद विपक्ष की ओर से सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई। जिससे विपक्षी दल का दर्जा तेलुगु देश को ही प्राप्त हुआ। उस समय तेलुगू देशम ने लोकसभा की 30 सीट जीतकर इस महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह किया था। यह अब तक की पहली क्षेत्रीय पार्टी थी, जिसे इतना बड़ा सम्मान भारतीय संसदीय लोकतंत्र में प्राप्त हुआ।
‘मिस्टर क्लीन’ बनाम नौसिखिया
राजीव गांधी को उनके प्रशंसकों ने 'मिस्टर क्लीन' के नाम से पुकारना आरंभ किया। जबकि उनके विरोधी उन पर नौसिखिया होने का आरोप लगाते रहे। उन्होंने अपनी राजनीतिक कार्य शैली से यह सिद्ध भी किया कि वह राजनीति में नौसिखिया ही थे और अपने कुछ सलाहकारों की सलाह के आधार पर कार्य करने के अभ्यासी बन गए थे। इसके उपरांत भी वह किसी प्रकार के राजनीतिक भ्रष्टाचार में सम्मिलित रहे थे, यह नहीं कहा जा सकता। उन पर बोफोर्स तोप के सौदे में दलाली का आरोप लगाया गया। वी0पी0 सिंह ने अपनी कुटिल राजनीति खेलते हुए राजनीति के एक भद्रपुरुष को अपमानित, लज्जित और अपयश का भागी बनाने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी। अपनी ही कैबिनेट में मंत्री रहे वी0पी0 सिंह की इस कुटिल राजनीति का शिकार बने राजीव गांधी 5 वर्ष बाद सत्ता से हटा भी दिए गए, पर उनकी मृत्यु के उपरांत जब यह बात न्यायालय के द्वारा सिद्ध हुई कि बोफोर्स में कोई दलाली नहीं हुई थी तो कई लोगों ने वी0पी0 सिंह की कुटिल राजनीति को कोसा और दिवंगत राजीव गांधी के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त की।
राजीव गांधी के कार्यकाल में शाहबानो प्रकरण भी बहुत प्रखरता से उभरा था। जिसमें उन्होंने कांग्रेस की परंपरागत तुष्टिकरण की नीति का सहारा लेकर शाहबानो के साथ अन्याय कर इस्लाम को मानने वाली आधी आबादी के साथ भी अन्याय करने में देर नहीं लगाई। शाहबानो के साथ हुए इस अन्याय को लेकर राजीव गांधी की उस समय बहुत आलोचना हुई थी। उनके शासनकाल में ही भोपाल की गैस त्रासदी भी हुई। इस त्रासदी से निपटने में भी उन्होंने शिथिलता का प्रमाण दिया।
किए कई शांति समझौते
बोफोर्स तोप खरीद घोटाले में दलाल रहे अपने मित्र क्वात्रोची को जिस प्रकार उन्होंने उस समय बचाने का काम किया था उसकी भी बहुत अधिक आलोचना हुई। कश्मीर में चल रहे आतंकवाद के प्रति भी राजीव गांधी कोई ठोस कदम नहीं उठा पाए ।वह किमकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में बने रहे। जिससे जम्मू कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार जारी रहा। यद्यपि उन्होंने पंजाब में शांति बहाली की दिशा में अकालियों के साथ समझौता कर एक ठोस कदम उठाया। इसी प्रकार ‘असम समझौता’ कर वहां पर चल रही अशांति को भी नियंत्रित करने का प्रयास किया। पर उनके ये सभी समझौते भी स्थाई रूप से कोई समाधान नहीं दे पाये। यद्यपि आरंभिक अवस्था में इनसे समस्याओं के समाधान में कुछ सहायता अवश्य प्राप्त हुई।
राजीव गांधी की मां इंदिरा गांधी ने श्रीलंका में तमिलों को अपना समर्थन देकर इस पड़ोसी देश को तोड़ने की दिशा में काम करना आरंभ किया था । अब स्थिति ऐसी बनी कि राजीव गांधी को अपनी मां की नीति के विरुद्ध निर्णय लेना पड़ा और वहां पर शांति सेना भेज कर उन्होंने अपने अनेक सैनिकों का बलिदान करवा दिया। इससे तमिल उग्रवादी राजीव गांधी के प्राणों के शत्रु बन गए। उनका यह निर्णय ही राजीव गांधी के लिए मृत्यु का कारण बना। जब नौवीं लोकसभा के चुनाव हो रहे थे तो 1991 की 21 मई को चुनाव प्रचार के दौरान लिट्टे के आत्मघाती लोगों ने उनकी हत्या कर दी थी।
इस चुनाव पर सरकारी आंकड़ों के अनुसार 81.5 करोड़ रूपया खर्च हुआ था।
आठवीं लोकसभा के पदाधिकारी
आठवीं लोकसभा के स्पीकर के रूप में बलराम जाखड़ ने 16 जनवरी 1985 से लेकर 18 दिसंबर 1989 तक कार्य किया। जबकि उपाध्यक्ष के रूप में थंबी दुरई 22 जनवरी 1985 से 27 नवंबर 1989 तक इस पद पर कार्य करते रहे। लोकसभा के महासचिव के रूप में सुभाष सी0 कश्यप 31 दिसंबर 1983 से 20 अगस्त 1990 तक पदासीन रहे।
इस समय सातवीं पंचवर्षीय योजना लागू हुई। जिसका कार्यकाल 1985 से1990 रहा। देश के युवा नेता राजीव गांधी ने इस योजना के माध्यम से प्रौद्योगिकी के उन्नयन द्वारा उद्योगों के उत्पादकता स्तर में सुधार लाने पर जोर दिया। सातवीं पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य “सामाजिक न्याय” के माध्यम से आर्थिक उत्पादकता बढ़ाने, खाद्यान्न उत्पादन और रोजगार पैदा करने के क्षेत्रों में विकास स्थापित करना निश्चित किया गया था। इस समय देश के मुख्य चुनाव आयुक्त आर.के. त्रिवेदी थे।
जिनका कार्यकाल 18 जून 1982 से 31 दिसंबर 1985 तक रहा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
मुख्य संपादक, उगता भारत