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उगता भारत न्यूज़

आस्तिक और नास्तिक का संघर्ष

   संसार में कुछ लोग आस्तिक हैं, और कुछ नास्तिक। आजकल नास्तिकों की संख्या बढ़ती जा रही है, क्योंकि भौतिकवाद या भोगवाद का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ चुका है।
    वैदिक शास्त्रों में बताया है, दो मार्ग हैं। एक भोग का मार्ग और एक योग का मार्ग (या अध्यात्म का मार्ग)। ये दोनों मार्ग विपरीत दिशा में चलते हैं। संसार में जब भोगवाद बढ़ता है तो योगवाद या अध्यात्मवाद कम हो जाता है।
      आजकल कुछ ऐसी ही स्थिति है। जो नास्तिक लोग हैं, वे आत्मा परमात्मा को नहीं मानते। केवल इतना ही मानते हैं, कि "यह संसार है। इसमें खाओ पियो नाचो गाओ मजा करो। कल किसने देखा है? क्या आत्मा, क्या परमात्मा, क्या कर्म फल, क्या बंधन और क्या मुक्ति, क्या पुनर्जन्म, ऐसी बातों को वे लोग प्रायः नहीं मानते।"
    जो ऐसे नास्तिक लोग हैं, उनके लिए हम कुछ प्रश्न रखते हैं। "वे इन पर विचार करें, और इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढें।"
    "आपका हृदय जन्म से भी पहले से लगातार धड़क रहा है, और जीवन भर धड़केगा। आपके पास चिंतन करने की अद्भुत विचार शक्ति है। आपके पास अन्न को पचाने की पाचनशक्ति है। आपके पास बहुत सी बातें याद करने की क्षमता है, और ऐसी भी व्यवस्था है कि पुरानी बेकार बातें आप भूल भी जाते हैं। चोट लग जाने या दुख की घटना हो जाने पर, आपकी आंखों से आंसू गिरते हैं। अपने परिवार वालों के प्रति जो आप को प्रेम है, यह भी जन्म से ही आपके अंदर है। और जब जीवन में अनेक दुख आ जाते हैं, तो उनको सहन करने की शक्ति भी आपके अंदर विद्यमान है।"  ये सब चीजें आपकी स्वाभाविक तो नहीं हैं। "तो फिर कौन है,जो यह सारी व्यवस्थाएं आपके जीवन में स्थापित करता है।"
     अपने मन को शुद्ध करके ईमानदारी से यदि आप विचार करेंगे, तो आपको समझ में आ जाएगा, कि "कोई मनुष्य ये सारी व्यवस्थाएं नहीं कर सकता। आप स्वयं भी ये सब व्यवस्थाएं अपने जीवन में नहीं कर सकते।" "ये सब बुद्धि पूर्वक व्यवस्थाएं जड़ शरीर में अपने आप भी नहीं हो सकती। इसलिए एक ऐसे पदार्थ को अवश्य ही मानना चाहिए, जो इन सब सारी व्यवस्थाओं को करता है। उसका नाम 'ईश्वर' है।"

—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”

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