ज्वार की रोटी*
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लेखक आर्य सागर खारी🖋️
बाजरा जहां सर्दियों का मोटा अनाज वहीं ज्वार गर्मियों का खाने योग्य मोटा अनाज है भले ही हरियाणा पंजाब पश्चिम उत्तर प्रदेश आदि उत्तर भारत में ज्वार की रोटी प्रचलित ना हो लेकिन महाराष्ट्र गुजरात में ज्वार की रोटी घर से लेकर होटल ढाबा आदि पर मिलती है।
उत्तर भारत में जहां ज्वार को पशुओं को खिलायी जाती है ,पशुओं को उच्च क्वालिटी का पोषण मिलता है पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ती है तो वहीं महाराष्ट्र आदि पश्चिम दक्षिण भारत में ज्वार मनुष्यों के खाने के प्रयोग में लाई जाती है मुख्य खाद्यान्न है नतीजा वहां भी स्वास्थ्य का उत्तम लाभ मिलता है।
मोटे अनाजों में सर्वाधिक स्वादिष्ट ज्वार की रोटी मानी गई है ।इसका लो ग्लिसमिक इंडेक्स, त्रिदोष नाशक होना ,उच्च विटामिन व मिनरल एंटीऑक्सीडेंट से युक्त होना इसे गुणकारी बनाता है। गठिया, मोटापा, डायबिटीज ,उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल ,जीर्ण कब्ज, हृदय रोगी, चर्म रोग में बेहद लाभकारी है ज्वार।यहां तक की अनेक स्टडी में विविध प्रकार के कैंसर रोधी गुण भी इसमें पाए गए हैं । ज्वार स्वास्थ्य व बलवर्धक अनाज है।
ज्वार पुरी तरह हानिकारक ग्लूटेन प्रोटीन से मुक्त अनाज है यह आंतों को स्वस्थ रखता है। जिनको गेहूं जो या चावल आदि से एलर्जी है उनके लिए भी है निरापद अन्न है ज्वार।
लोक में एक किंवदंती है वीर महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाई थी । उल्लेखनीय होगा गेहूं से लेकर सभी खाए जाने योग्य अनाज वनस्पतियों के घास वर्ग में ही आते हैं तो महाराणा प्रताप ने किसी जंगली अन्न का ही सेवन किया था जो ज्वार के समान ही गुणकारी रहा होगा वैसे ऐतिहासिक तौर पर पुष्ट तथ्य है वीर शिवाजी ज्वार की ही रोटी ही खाते थे।
आयुर्वेद की मान्यता है ऋतु अनुसार बदल-बदल कर अन्न खाना चाहिए आहार में विविधता होनी चाहिए एक ही जैसे अनाज का प्रयोग लंबे समय तक नहीं करना चाहिए यह भी रोगों का कारण बन जाता है।
आहार ही औषध है। इन दिनों भयंकर गर्मी पड़ रही है। गर्मीयों में ज्वार का दलिया या रोटी के रूप में सेवन किया जाए तो खान-पान दिनचर्या मौसम से जुड़ी बहुत सी बीमारियों डिसऑर्डर्स से निजात पाई जा सकती है।
लेखक आर्य सागर खारी