” हम युद्ध नहीं करेंगे ” – ऐसी जिनकी घोषणा को उनसे वह कौन डरेगा ? — सावरकर
मित्रो ! सावरकर जी नेहरू सरकार की ढुलमुल विदेश नीति के विरोधी थे ।
नेहरू सरकार पड़ोसी देशों से अपने भूभाग की सुरक्षा करने में निरंतर असफल हो रही थी। पहले टूटा फूटा हिंदुस्तान लेकर 15 अगस्त 1947 को गलती की , फिर पाकिस्तान को कश्मीर के बड़े भूभाग पर अधिकार करने दिया । यह सब नेहरू जी की असफल विदेश नीति के परिणाम थे । उनकी असफल विदेश नीति के कारण ही चीन ने उन्हें पंचशील के मकड़जाल में फंसा लिया था । श्रीलंका और नेपाल जैसे छोटे छोटे देश भी भारत का बड़े भाई जैसा सम्मान नहीं करते थे। पाकिस्तान तो हर बात पर पहले दिन से ही धमकाने की स्थिति में रहता था । पड़ोसी देशों की ऐसी उपद्रव कारी स्थिति को देखकर सावरकर जी को बड़ी पीड़ा होती थी । वे पंडित नेहरू को कदम कदम पर सावधान करते रहे , परंतु नेहरु जी ने उनकी एक भी बात नहीं मानी । 18 अप्रैल 1953 को मुंबई में एक सभा में भाषण करते हुए सावरकर जी ने कहा था – ” जिस देश में शक्ति की पूजा नहीं होती ,उसकी प्रतिष्ठा कौड़ी की कीमत की नहीं होती । ”
भारत की प्रतिष्ठा का पता लगाने के लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। हिंदुस्तान के पड़ोस में स्थित श्रीलंका अपने यहां के भारतीयों के साथ अच्छी तरह पेश नहीं आता , फिर भी हमारी भारत सरकार कुछ नहीं कर पाती। यही क्यों ? – पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर घोर अत्याचार होते हैं , वह हमारी सीमा में घुसकर खेत काट ले जाते हैं , पशुओं को उठा ले जाते हैं , पर हमारी भारत सरकार उसके विरोध में क्या करती हैं ? केवल विरोध पत्र भेज देने मात्र से क्या वे बाज आएंगे ? ”
पाकिस्तानी हिंदुओं के प्रति सावरकर जी जीवन भर संवेदनशील बने रहे । 1947 में जो हिंदू पाकिस्तान में रह गए थे उनको हमने मरने के लिए भेड़ियों के सामने डाल दिया था । एक प्रकार से वे लोग जेल में बंद कर दिए गए थे । जहां धीरे-धीरे उनका अंत हो जाना था। इस प्रकार गांधीजी की अहिंसा ने लगभग ढाई तीन करोड़ हिंदुओं को पाकिस्तान में मुस्लिमों की हिंसा का शिकार बनाने के लिए छोड़ते समय तनिक भी इस बात पर विचार नहीं किया कि उनका क्या हाल होगा ? एक देश को स्वतंत्रता मिली और वह उस स्वतंत्रता को पाते समय अपने ढाई तीन करोड़ बंधुओं को मरने के लिए या घुट घुट कर अपमानित होने के लिए भेड़ियों के सामने छोड़ दे तो आप क्या कहेंगे ?
यह बात आज सच सिद्ध हो गई है कि हमने अपनी स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए जुआ पर जिन ढाई तीन करोड़ बंधुओं को दाव पर लगाया था , उनको पाकिस्तान ने लगभग मिटा ही दिया है । यह हमारी हार है और कथित रूप से अहिंसा व सत्य के आधार पर पाई गई आजादी का सबसे घृणास्पद पक्ष भी है। सावरकर जी इस व्यवस्था के विरोधी थे।
बात सही है कि शत्रु को भयभीत किये रखने के लिए और अपने आप को सुरक्षित व शांतिपूर्ण ढंग से रखने के लिए एक हाथ में डंडा और एक हाथ में शास्त्र होना ही उचित होता है ।
(मेरी ‘ स्वातंत्र्यवीर सावरकर ‘ – नामक पुस्तक से )
मुख्य संपादक, उगता भारत