इस्लामी संक्रामक रोग से बचाव और छुटकारा

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वास्तव में इस्लाम कोई धर्म नहीं है बल्कि एक ऐसा संक्रामक रोग है जो बड़ी जल्दी फैलता है इस रोग ने कई देश धर्म और संस्कृतियों को नष्ट कर दिया फहले तो यह रोग जिहादियों ने तलवार के जोर से फैलाया था लेकिन अब अज्ञान के काऱण इस्लामी रोग से ग्रस्त रोगियों के संपर्क से खुद रोगी बन रहे है जैसा की सब जानते हैं की इलाज से पहले सावधानी रखना जरुरी होती है ,इसलिए हम उन सभी लोगों के लिए कुछ जानकारियां दे रहे हैं जो इस रोग से पीड़ित है ,फिर इस्लाम से बचने के उपाय बताएँगे और आखिर में उन महिलाओं का भ्रम दूर करेंगे जो खुद को मुसलमान समझ बैठी है ,जबकि महिला कभी भी मुसलमान नहीं बनायी जा सकती है ,इस लेख के माध्यम से हम उन लोगों को उन लोगों से बचने की विधि बताएँगे जो इस रोग से पीड़ित है और दूसरों को बीमार करना चाहते हैं अनावश्यक विवाद से बचने के लिए हम केवल अरबी कुरान का ही सहारा लेंगे हमें विश्वास है की पाठक इस लेख को ध्यान से पढ़ेंगे
1-दुनियां का एक भी व्यक्ति मुसलमान नहीं
आज ओवैसी जैसे हजारों नेता खुद को मुसलमान होने का दावा करके लोगों को डराते रहते हैं लेकिन दुनियां में न कोई व्यक्ति मुसलमान था और न हो सकता है , वह स्त्री हो या पुरुष , हम सभी मुस्लिम नेताओं को खुली चुनौती देते हैं की वह अरबी कुरान में ” मुसलमान – مُسلمان ” शब्द निकाल कर दिखाएँ पूरी कुरान में यह शब्द नहीं है , व्यक्ति जिहादी ,चोर ,लुटेरा हत्यारा हो सकता है कुरान के अनुसार मुसलमान नहीं हो सकता
2-किसी को मुसलमान बनाना असंभव है
सभी जानते हैं की जब किसी गैर मुस्लिम को इस्लाम में शामिल किया जाता है ,तो उसे कलमा पढ़ाया जाता है वास्तव में उस से मौलवी द्वारा कलमा बुलवाया जाता है ,इस्लाम के कुल छह कलमा हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं ,
1.तय्यब , 2.शहादत ,3.तमजीद ,4.तौहीद , 5.अस्तग़फ़ार ,6.रद्दे कुफ्र
कोई भी व्यक्ति इन छह कलमा को गूगल में सर्च कर सकता है और अर्थ समझ सकता है लेकिन आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि यह सभी कलमा कुरान में नहीं हैं जबकि इनको इस्लाम का आधार कहा जाता है ,यह बात सभी हिन्दू युवक ,युवतियों को याद रखना चाहिए , की अगर कोई आपको कलमा पढ़ कर मुसलमान होने का प्रयास करे तो उस से कहिये पहले हमें कुरान में यह कलमा दिखाइए ,आप हमें मुर्ख नहीं बना सकते ,ऐसा करना बिना सामग्री के मकान बनाने जैसा है क्योंकि यह कलमा ही इस्लाम की बुनियाद दीवारें और छत जैसे हैं
3-कलमा पढ़ कर भी मुसलमान नहीं होता
सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि कलमा पढ़ने के बाद व्यक्ति पूरा मुसलमान बन जाता है लेकिन ऐसा नहीं है यह गूढ़ रहस्य कलमा तय्यब और कलमा शहादत के शब्दों में छुपा हुआ है मुस्लिम विद्वान् इस गुप्त रहस्य को प्रकट नहीं करते क्योंकि ऐसा करने से मुसलमान काफिर हो जायेंगे और दौनों कलमा के शब्दों में सुधार करना पड़ेगा इस बात को स्पष्ट करने के लिए यह समझना पड़ेगा कि सुन्नी मुस्लिम अहमदिया लोगों को काफिर क्यों कहते हैं ? जबकि वह भी कलमा पढ़ते हैं जो सुन्नी पढ़ते है ,जैसे दोनो समुदाय के लोग कलमा तैयब और शहादत में कहते है कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं लेकिन अंतर यह है कि अहमदिया मुहम्मद को रसूल तो मानते हैं परन्तु अंतिम रसूल नहीं मानते ,इसी लिए मुसलमान अहमदियों को काफिर कहते हैं ,और वह
जब तक कलमा के शब्दों में मुहमद के साथ “ख़ातिमु अर्रसूल – مُحمدُ خاتمُالرّسول ” नहीं जोड़ेंगे काफिर ही बने रहेंगे
,इसलिए जो भी पुरुष या महिला अज्ञानवश , डर से लालच से मुस्लमान बन गए हों और इस जाल से निकलना चाहते हों वह सार्वजनिक रूप से घोषित कर दें कि हम अल्लाह और मुहम्मद को रसूल तो मानते हैं लेकिन अंतिम रसूल नहीं मानते ,देखना मुल्ले मौलवी आपको दूध की मक्खी की तरह इस्लाम से बाहर कर देंगे यह गारंटी है
4-स्त्रियां कभी भी मुस्लमान नहीं हो सकती
इसका पहला कारण तो यह है कि कुरान के अनुसार पहली स्त्री हव्वा को आदम की पसली ( Rib ) से बनाया था यानि वह पुरष का एक अंश है पूरी नहीं है फिर भी कुछ मुर्ख हिन्दू लड़कियां मुस्लिम युवकों के प्रेम जाल में फस कर बच्चे पैदा करने की मशीन बन जाती हैं और जो पहले से ही मुस्लमान हैं वह बुर्के की गर्मी में सड़ती रहती है उन्हें पता होना चाहिए की वह चाहे जीतनी नमाजें पढ़ें , रोजे रखें जहन्नम में ही जाएँगी ,इसका कारण कुरान की सूरा बकरा 2 : 282 है इसमें कहा है
“अपने पुरुषों में से दो गवाहों को गवाह बना लो और यदि दो पुरुष न हों तो एक पुरुष और दो स्त्रियाँ, जिन्हें तुम गवाह के लिए पसन्द करो, गवाह हो जाएँ ”
that two women are the equivalent of one man in providing a witness testimony ”
यानी स्त्रियों की गवाही पुरुषों की गवाही की आधी है और जब भी कोई स्त्री शहादत का कलमा बोलती है तो एक प्रकार से आधी गवाही देती है जिसे अल्लाह स्वीकार नहीं करता ,क्योंकि जब कोई स्त्री कहती है
“मैं गवाही देती हूँ अल्लाह के आलावा कोई माबूद नहीं और मैं गवाही देती हूँ मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं ”
और ऐसी अधूरी गवाही के करण स्त्रियां अपने आप आधी काफिर बन जाती हैं ,इसी लिए स्त्रियों का मस्जिदों में जाना प्रतिबंधित है ,और कोई स्त्री मुफ़्ती , मौलवी या इम्माम नहीं बन सकती अल्लाह ने भी आज तक किसी स्त्री को नबी या रसूल नहीं बनाया यहाँ तक मर जाने पर भी किसी स्त्री की कोई दरगाह या मजार नहीं बना .मौजूदा मुस्लिम लड़कियों को सलाह है कि जितना जल्दी हो इस्लाम से छुटकारा कर लें ,नहीं तो अल्लाह और रसूल मिल कर उनकी ऐसी हालत कर देंगे
औरतें जहन्नम का ईंधन
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बृजनंदन शर्मा

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