एक इन्द्र पुरुष किस प्रकार ज्ञान के समुद्र को अपना मित्र बना लेता है?
एक इन्द्र पुरुष किस प्रकार ज्ञान के समुद्र को अपना मित्र बना लेता है?
किस प्रकार सूर्य समुद्र को ठंडा और मित्रवत बनाये रखता है?
सूर्य का विज्ञान किस प्रकार आध्यात्मिकता के विज्ञान से सम्बन्धित है?
वि यत्तिरो धरुणमच्युतं रजोऽतिष्ठिपो दिव आतासु बर्हणा।
स्वर्मीळहे यन्मद इन्द्र हर्ष्याहन्वृत्रं निरपामौब्जो अर्णवम्।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.56.5
(वि) विशेष रूप से (यत्) जब (त्तिरः) अन्तर्मुखी, झुकाव वाला (धरुणम्) धारण करता है (शक्तियों को) (अच्युतम्) बिना असफलता के, लगातार (रजः) मूल्यवान तरल, मूल शक्ति, सभी ग्रह शरीरों की तरफ (अतिष्ठिपः) स्थापित (दिवः आतासु) सभी दिशाओं में दिव्यता, प्रकाश और ऊर्जा (बर्हणाअ वृद्धि के लिए (स्वर्मीळहे) युद्धों में, कठिन समय में, अन्तरिक्ष में (यत्) जब (मदे) शक्ति के उल्लास में (इन्द्र) इन्द्रियों का नियंत्रक, सूर्य (हर्ष्या) अपार आनन्द के साथ (अहन्) नष्ट करता है (वृत्रम्) मन की वृत्तियाँ, बादल (निर) निश्चित रूप से (अपाम्) ज्ञान, प्रकाश (औब्जो) अनुकूल करता है, मित्र बना लेता है (अर्णवम्) समुद्रों का।
व्याख्या:-
एक इन्द्र पुरुष किस प्रकार ज्ञान के समुद्र को अपना मित्र बना लेता है?
किस प्रकार सूर्य समुद्र को ठंडा और मित्रवत बनाये रखता है?
आध्यात्मिक व्याख्या:- जब एक इन्द्र पुरुष, इन्द्रियों का नियंत्रक विशेष रूप से अपनी मूल शक्ति, मूल्यवान् तरल पदार्थ को धारण करता है और स्थापित रखता है तो वह लगातार इसका प्रभाव अपने अन्तर्मुखी मन पर महसूस करता है, चारों दिशाओं से दिव्यताओं की वर्षा उसे आगे बढ़ाती हैं। यहाँ तक कि युद्धों और कठिन समय में वह शक्ति से ओत-प्रोत रहता है और अपने मन की वृत्तियों को पूरे आनन्द के साथ मारकर ज्ञान और प्रकाश के समुद्र की कोमलता को अपने जीवन में प्राप्त करता है।
वैज्ञानिक व्याख्या:- जब एक इन्द्र, सूर्य, विशेष रूप से सभी आकाशीय पिण्डों को धारण करता है और अपनी शक्तियाँ उनमें स्थापित करता है तो उसका प्रकाश और उसकी ऊर्जा सभी दिशाओं में फैल जाती हैं। गरम समय में जब वह अपनी शक्ति से ओत-प्रोत होता है तो वह पूरे आनन्द के साथ बादलों का नाश कर देता है और उन्हें समुद्र के पास भेजकर समुद्र को शीतल और सबके लिए मित्रवत् बना देता है।
जीवन में सार्थकता: –
सूर्य का विज्ञान किस प्रकार आध्यात्मिकता के विज्ञान से सम्बन्धित है?
सूर्य का विज्ञान सभी जीव तत्त्वों के कल्याण के लिए, समुद्र को शीतल रखने के लिए और समुद्र में तरंगे उत्पन्न करने के लिए बादलों को नष्ट करता है। यह अनुपातिक सिद्धान्त इन्द्र पुरुष के जीवन में भी समान रूप से दिखाई देता है जो अपने व्यक्तिगत बादलों अर्थात् मन की वृत्तियों को नष्ट करता है जिससे सबका कल्याण होता है। वह सभी वृत्तियों को ज्ञान के समुद्र में मिलाकर उनका अन्त कर देता है। इस प्रकार ज्ञान का समुद्र कोमल और उसके लिए मित्रवत बन जाता है। वह अनुभूति के बाद प्राप्त अपने सर्वोच्च ज्ञान को तीव्र करता है और उसे ऊपर उठाता है जिससे उस सर्वोच्च ज्ञान की तरंगे उत्पन्न होकर सबका कल्याण करें।
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