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दो पवित्र ताकतों के परस्पर जुड़ने का क्या परिणाम होता है?

जब एक इन्द्र पुरुष पर दिव्यता प्रारम्भ होती है तो क्या होता है?
दो पवित्र ताकतों के परस्पर जुड़ने का क्या परिणाम होता है?

देवी यदि तविषी त्वावृधोतय इन्द्रं सिषक्त्युषसं न सूर्यः।
यो धृष्णुना शवसा बाधते तम इयर्ति रेणुं बृहदर्हरिष्वणिः।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.56.4

(देवी) दिव्य (यदि) यदि (तविषी) शक्ति (त्वावृधः) आपकी तरफ प्रगति को प्रोत्साहित करने वाला (उतये) संरक्षण के लिए (इन्द्रम्) इन्द्र पुरुष के लिए, इन्द्रियों के नियंत्रक के लिए (सिषक्ति) संयुक्त होता है (उषसम्) सूर्योदय, प्रातःवेला (न) जैसे (सूर्यः) सूर्य प्राप्त होता है (यः) वह (धृष्णुना शवसा) मजबूत शक्ति के साथ (बाधते तमः) अन्धकार, अज्ञानता को रोकता है (इयर्ति) गतिमय करता है (रेणुम्) विनीतकाल (बृहत) महानता के साथ (अर्हरिष्वणिः) पापियों को रुलाता है।

व्याख्या:-
जब एक इन्द्र पुरुष पर दिव्यता प्रारम्भ होती है तो क्या होता है?

यदि भगवान की दिव्य शक्तियाँ इन्द्र पुरुष अर्थात् इन्द्रियों के नियंत्रक के साथ जुड़ जाती हैं तो वे उसे तथा अन्य लोगों को परमात्मा की तरफ अग्रसर करती हैं और सबका संरक्षण करती हैं। इन्द्र पुरुष के साथ दिव्य शक्तियाँ ऐसी प्रतीत होती हैं जैसे प्रातःकाल के साथ सूर्य जुड़ता है। दो शक्तियों की यह एकता, सर्वोच्च इन्द्र और इन्द्रियों के नियंत्रक की एकता, इन मजबूत शक्तियों के साथ अन्धकार और अज्ञानता मिटा देती हैं। यह सबको एक महिमाशाली समय की ओर ले चलती हैं तथा पापियों को रोने के लिए मजबूर कर देती हैं।

जीवन में सार्थकता: –
दो पवित्र ताकतों के परस्पर जुड़ने का क्या परिणाम होता है?

इस मन्त्र का केन्द्र बिन्दु यह है कि दो पवित्र शक्तियाँ मिलकर अपनी एकता को दिव्यता में बदल देती हैं। यह अनुपातिक सिद्धान्त विवाह के माध्यम से पति और पत्नी के मिलन पर लागू होता है; उन दो व्यापारिक सांझेदारों पर भी लागू होता है जो एक दूसरे के प्रति सच्चाई और ईमानदारी के संकल्प के साथ जुड़कर व्यापारिक उद्देश्य के लिए काम करते हैं; दो या अधिक सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के संगठन पर भी लागू होता है; एक नौकर का अपने मालिक के साथ मिलने पर भी लागू होता है। ऐसी एकता के निम्न परिणाम होते हैं:-
(क) दो शक्तियों की निकटता पढ़ती है।
(ख) दोनों में से जो कमजोर होता है उसे संरक्षण मिलता है।
(ग) अन्धकार, अज्ञानता और बुराईयाँ बाधित होती हैं।
(घ) दोनों को एक महिमावान् काल की ओर गति मिलती है।

 


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टीम
पवित्र वेद स्वाध्याय एवं अनुसंधान कार्यक्रम
द वैदिक टेंपल, मराठा हल्ली, बेंगलुरू, कर्नाटक
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