• हैदराबाद सत्याग्रह का एक स्वर्णिम पृष्ठ…
अभी-अभी रिलीज हुई फिल्म ‘रजाकार’ के एक दृश्य में हैदराबाद के सुल्तान बाजार आर्यसमाज भवन में तीन युवाओं को हैदराबाद के निज़ाम को खत्म करने की योजना करते और दूसरे दृश्य में निज़ाम की कार पर बम फेंककर योजना को कार्यान्वित करते दिखाया गया है।
४ दिसम्बर, १९४७ ई. को हैदराबाद के किंगकोठी रोड पर ऑल सेंट्स स्कूल की गली के सामने शाम के ४:४५ बजे निज़ाम की मोटर पर बम का प्रहार किया गया। इस घटना से सारे हैदराबाद में सनसनी फैल गई। इस बम-काण्ड के प्रवर्तक तीन आर्य युवा थे: श्री नारायण राव पवार (नारायण बाबू), श्री गंगाराम जी (गण्डेया) और श्री जगदीश (ईश्वरैया)। जब निर्धारित समय पर निज़ाम की मोटर निकली तो नारायण राव ने आगे बढ़कर बम फेंका, परन्तु बम मोटर के पिछले हिस्से से टकराकर सड़क पर जा गिरा और फट गया। तीन व्यक्ति, जो कुछ दूर खड़े हुए थे, आहत हो गए। मोटर का पिछला हिस्सा भी खराब हो गया। मोटर रुकी और फिर घटना स्थल तक आई। यदि मोटर और आगे चली जाती तो योजना अनुसार मैथोडिस्ट स्कूल के दरवाजे पर खड़े हुए गंगाराम द्वारा उस पर बम और पिस्तौल से आक्रमण किया जाता। बोगुल कुण्टा गली के मोड़ पर श्री जगदीश को भी इसी उद्देश्य से खड़ा किया गया था, परन्तु निज़ाम बच गया, क्योंकि वह आगे न बढ़ा।
इससे पूर्व कि नारायण राव निज़ाम की पुलिस पर बम फेंकते, उनको गिरफ्तार कर लिया गया। तीनों युवाओं के पास ज़हर की शीशियाँ भी मिली। इनका उद्देश्य यह था कि बम फेंकने के बाद यदि आवश्यकता हो तो विषपान कर लिया जाय और पुलिस के हाथों में पड़कर कहीं षड्यन्त्र का रहस्य-उद्घाटन न हो। नारायण बाबू की गिरफ्तारी के दूसरे दिन श्री गंगाराम जी भी पकड़े गये। तीसरे युवक की भी खोज होती रही, परन्तु वह न मिला।
दो सप्ताह तक पुलिस जाँच-पड़ताल करती रही। मुकद्दमा अदालत में गया। दोनों युवकों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। नारायण बाबू को फाँसी और गंगाराम को आजीवन कैद का आदेश सुनाकर उन्हें केन्द्रीय कारावास भेज दिया गया। हाईकोर्ट में अपील की गई, पर वह नामंजूर हो गई। फिर ज्यूडीशनल कमेटी में अपील की गई। वकीलों की बहस के बाद मिसल निजाम के पास हस्ताक्षर करवाने के लिए भेजी गई। अभी यह कार्यक्रम चल ही रहा था कि भारत ने निजामशाही के विरुद्ध अपना ऐतिहासिक पुलिस ऐक्शन आरम्भ कर दिया। इसके लगभग एक मास बाद नारायण बाबू का दण्ड फाँसी के स्थान पर आजीवन कैद कर दिया गया और गंडेया जी को भी आजीवन कैद की सज़ा दी गई।
नारायण राव पवार तथा गंडेया जी के केन्द्रीय कारावास पहुँचने के बाद उन्हें दी जानेवाली यातनाओं का समाचार जब आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध नेता पण्डित नरेन्द्र जी को (तब वे भी उसी जेल के एक भाग में नजरबन्द थे) मिला, तो इन युवकों को धैर्य देने के निमित्त जो गुप्तपत्र उन्होंने भेजा था, उस पत्र की कुछ पंक्तियाँ यहाँ दी जाती हैं: “कारावास आत्मचिन्तन और स्वाध्याय के लिए एक उपयुक्त स्थल सिद्ध हो सकता है। आप तनिक हताश न हों। मुझे विश्वास है कि आपका यह साहस एवं त्याग हैदराबाद के भविष्य को एक नया आलोक प्रदान करेगा। वस्तुतः भविष्यत् का निर्णय वर्तमान के कार्यों पर ही आधारित होता है। एक दिन आप अवश्य इस बन्धन से मुक्त हो जाएँगे और आपकी यह मुक्ति निज़ाम के अत्याचार से मुक्ति सिद्ध होगी। मुझे आशा है कि आप दोनों पर्वत के समान अपने विचारों में अटल रहेंगे।”
इन दोनों युवकों से जेल में बहुत अधिक कठोरता का व्यवहार किया गया और इन्होंने भी जेल जीवन के सभी कष्टों को सहन किया। न इन्हें मृत्यु का भय था, न अपमान की चिन्ता। ‘पुलिस ऐक्शन’ के बाद जब हैदराबाद में फौजी गवर्नर का राज था तब पं. नरेन्द्र जी ने इन दोनों युवकों को छुड़वाने अनेक यत्न किये, जिसके फलस्वरूप १० अगस्त १९४९ को इन दोनों आर्यों को फौजी गवर्नर श्री जयंतनाथ चौधरी के आदेश से छोड़ दिया गया।
स्मरण रहें कि नारायण राव पवार (नारायण बाबू), गंगाराम जी (गण्डेया) और जगदीश (ईश्वरैया) ये तीनों ही नवयुवक आर्यसमाजी थे और आर्यसमाज के सभी कार्यक्रमों में उत्साहपूर्वक भाग लेते रहे। इन्होंने बम प्रयोग द्वारा निज़ाम को समाप्त कर देने का भीषण उपक्रम केवल इसीलिये किया था कि हैदराबाद राज्य को सही अर्थों में स्वतन्त्र कराया जाय और इस कार्य में अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़े तो दे दी जाय। न तो इनका निज़ाम से कोई व्यक्तिगत द्वेष था और न ही इसमें इनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ था। वे यह भी समझते थे कि यदि बम के आक्रमण से निज़ाम मर जायगा, तो उसके बेटे गद्दी की प्राप्ति के लिये अवश्य ही आपस में झगड़ा करेंगे और तब उनमें से कोई एक भारत संघ की सहायता भी अवश्य ही लेगा। निजाम की मोटर पर बम फेंकने और निज़ाम की हत्या करने का क्या अर्थ है, यह वे भली-प्रकार जानते-समझते थे। उन्होंने तो रियासत की पूर्ण स्वतन्त्रता और प्रजा की सुख-सुविधा के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने का साहस किया था।
पं. नरेन्द्र जी अपनी पुस्तक ‘हैदराबाद के आर्यों की साधना और संघर्ष’ में लिखते है कि निज़ाम की कार पर जो बम फेंका गया था, यह वही था जिसको पण्डित जी स्वयं और उसके कुछ साथी खरीदकर लाये थे। पण्डित जी की गिरफ्तारी के बाद नारायण राव के हाथ वह हथगोला लग गया था।
स्मरण रहे कि भारत सरकार के मंत्रि-मण्डल में हैदराबाद समस्या पर कई बार झगड़े हुए थे। सरदार पटेल निज़ाम और उसके रजाकारों की हिंदू-विरोधी जेहाद से क्षुब्ध थे, किन्तु नेहरू जी हैदराबाद के सम्बन्ध में किसी प्रकार के बल प्रयोग के विरुद्ध थे। अंततः जब हैदराबाद निज़ाम की चुंगल से मुक्त हुआ तब सरदार वल्लभभाई पटेल ने यह स्वीकारोक्ति की थी कि “आर्यसमाज ने यदि पहले से भूमिका तैयार न की होती तो तीन दिन में हैदराबाद में पुलिस एक्शन सफल नहीं हो सकता था।”
हैदराबाद मुक्ति संग्राम पर कुछ पठनीय पुस्तकें :
१. हैदराबाद के आर्यों की साधना और संघर्ष (पं. नरेन्द्र)
२. जीवन की धूप-छांव – स्वलिखित जीवन-चरित्र (पं. नरेन्द्र)
३. आर्य सत्याग्रह (सत्यदेव विद्यालंकार)
४. हैदराबाद सत्याग्रह (सार्वदेशिक १९३९)
५. The End of Era: Hyderabad Memories (K. M. Munshi)
प्रस्तुति : राजेश आर्य, गुजरात
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