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लेखक आर्य सागर तिलपता
रात्रिचर कीट तितलियां जुगनू भंवरें करोड़ों वर्षों से चांद तारों के प्रकाश का प्रयोग नेविगेटर के तौर पर करते आ रहे हैं ।जिससे यह कीट रात्रि में आकाश में अपनी स्थिति गंतव्य का निर्धारण करते हैं। चंद्रमा के प्रकाश को यह अपनी पीठ पर लेते हैं एक खास एंगल के साथ प्रकाश कोण बनाते हुए यह उड़ान भरते हैं चांद की उजियाली रात में।कीटों की इस जन्मजात वृत्ति को पृष्ठीय प्रकाश प्रतिक्रिया कहते है। विकासवादी जीव विज्ञानी कीटों के इस कौशल के लिये नेचुरल सिलेक्शन को जिम्मेदार मानते हैं।
मानव ने जब तेल दीपक ,इलेक्ट्रिक बल्ब, हाई प्रेशर मरकरी लाइट आदि कृत्रिम प्रकाश स्रोतों का आविष्कार किया उन आविष्कारों से जहां मानव का जीवन सुखमय हुआ वही जीव सृष्टि के इतिहास की दृष्टि से पक्षियों से भी पूर्व आकाश में विचरण करने वाले इन कीटों की मुसीबतें बढनी शुरू हो गयी। बहुत लंबे समय तक यह माना जाता था यह कीट बल्ब आदि कृत्रिम प्रकाश के स्रोत की ओर आकर्षित होते हैं। प्रकाश स्रोत की ऊष्मा उन्हें आकर्षित करती है लेकिन जब आधुनिक 3D मोशन सेंसर कैमरा की मदद से शोध हुआ तो बहुत ही हैरतअंगेज सच्चाई निकल कर सामने आयी।शोध के अनुसार —कीट कृत्रिम प्रकाश स्रोत की ओर आकर्षित नहीं , भ्रमित होते हैं। कृत्रिम प्रकाश को वह चंद्र तारों का प्राकृतिक प्रकाश समझकर उस स्रोत के आसपास मंडराने लगते हैं और एक उलझन भरी वक्रीय गति में उलझ कर रह जाते हैं और अंत में थककर प्राण त्याग देते हैं।
नेचुरल वर्ल्ड में जो घटना आंखों से दिखाई देती है हम उसके कारण के आकलन में कभी-कभी चूक जाते हैं। कीट और दीपक बल्ब की रोशनी के मामले भी में भी ऐसा ही होता है हम सोचते हैं कीट दीपक की लौ बल्ब के प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन वह आकर्षित नहीं, भ्रमित होते हैं ।चंद्रमा के दूधिया प्रकाश में सीधी साधी रेखीय गति से उड़ने वाले कीट कुटिल वक्रीय पथ का अनुसरण करने लगते हैं और वह मनुष्य को यही प्रेरणा देते हैं की सीधे पथ पर चलने वाला जीवन की चकाचौंध से भ्रमित ना होने वाला इंसान अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है और जो जीवन में कुटिल टेढ़ा-मेढ़ा मार्ग अपनाते हैं वह मार्ग भ्रष्ट होकर एक दिन खुद नष्ट भ्रष्ट हो जाता है।
कार्यरूप प्रकृति की प्रत्येक घटना अपने आप में एक सबक है।
लेखक आर्य सागर खारी।