*भक्ति के संदर्भ में ‘शेर’* ग़र ख़ून में बेवफाई हो, तो वफ़ा मिलती नहीं हैं।
भक्ति के संदर्भ में ‘शेर’
ग़र ख़ून में बेवफाई हो,
तो वफ़ा मिलती नहीं हैं।
ग़र दिल की ज़मी बंजर हो,
तो तेरे ईश्क की कली खिलती नहीं है॥2644॥
कब मिलती है मन की शांति
सुकून -ए-दिल के लिए,
तू दर – दर गया।
मगर ये उसको मिला,
जो रहबर हो गया॥2645॥
रहबर अर्थात् – ऐसी पुण्यात्मा जो निर्विकार,निर्विचार,निर्द्वन्द्व, निष्काम और अकाम हो गई हो,
उसे रहबर कहते है।
दिव्य प्रकाश के संदर्भ में-
चल हंसा उस देश को,
जहाँ प्रभु का वास।
कल्मष सारे दूर हो,
मिले दिव्य प्रकाश॥2646॥
हंसा अर्थात्– आत्मा कल्मष अर्थात् – मनोविकार, पाप दिव्य प्रकाश अर्थात् वह ईश्वरीय रोशनी जिसमें आत्मा की ज्योति परमात्मा में मिलकर तद् रूप हो जाती है अर्थात् मोक्ष को प्राप्त हो जाती है।
प्रभु प्राप्ति के संदर्भ में –
भक्ति से प्रभु- प्राप्ति,
सहज सरल हो जाए।
माया का पर्दा हटे,
मुक्ति तक दिलवाय॥2647॥
‘ विशेष ‘संसार में धन्य कौन है?
धन्य वही संसार में,
राग-द्वेष ले जीत।
ब्रह्मवेत्ता हो गया,
पावै कालातीत॥2648॥
‘ विशेष ‘ व्यक्ति के व्यक्तित्त्व का वास्तविक परिचय उसके मन में उठने वाली उर्मियों (Vibration) से होता है: –
हर व्यक्ति की भिन्न हो,
मन- चरित्र की गन्ध।
दुर्जन की दुर्गन्ध हो,
सज्जन को हो सुगन्ध ॥2649॥
व्याख्या :- ध्यान रहे, व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माणं उसकी बुध्दि की वृत्तियाँ करती है। स्मरण रहे – ” चित्त के ज्ञानात्मक व्यापार को वृत्ति कहते है।” इन से ही मनुष्य की सोच बनती है। सोच के आधार पर ही मनुष्य को श्रेणी बद्ध किया जाता है। अमुक व्यक्ति नकारात्मक सोच का है अथवा सकारात्मक सोच का यह निर्धारण होता है। मनुष्य के चित्त में उठने वाली उर्मियाँ (Vibraticon) बेशक अमूर्त होती है किन्त सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति के मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इसे एक उदाहरण से समझिये । यदि आप किसी के घर पर जाओ और वहाँ सूखे तम्बाक की बोरियाँ लगी हों, तो -आपको घुसते ही तम्बाकू की असहनीय धसक अथना गन्ध आयेगी और यदि किसी के घर में दशहरी आम की बोरियों लगी हो तो मन भावन गन्ध आयेगी। ठीक इसी प्रकार हर व्यक्ति की गन्ध भिन्न होती है। दृष्ट लोगों के मन- चरित्रा की गन्ध व्यक्ति को असहज और विचलित करती है जबकि साधु महात्माओं की सकारात्मक गन्ध मनभावन और हृदय स्पर्शी होती है। इसीलिए लोग ऐसे तपस्वी सन्तों का प्रवचन सुनने अथवा दर्शन करने मात्र से ही धन्य हो जाते हैं। दुष्ट अपनी दुष्ट सोच के कारण कुख्यात होता है। उसकी गन्ध अपयश फैलाती है जबकि सज्जन अपनी सज्जनता की सोच के कारण घर- परिवार, समाज अथवा राष्ट्र में विख्यात होता है, सम्मान का पात्र होता है। चारों दिशाओं में उसका सुयश फैलता है। वह कुल अथवा धरती भी धन्य हो जाती है, जहाँ उसका जन्म होता है जैसे-जैसे देव दयानन्द, महात्मा गाँधी, गुरु नानक, सन्त तुकाराम, नामदेव, गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर इत्यादि। सारांश यह है कि व्यक्ति को अपनी सोच सर्वदा सकारात्मक रखनी चाहिए ताकि मानव जीवन धन्य हो जाये।
क्रमशः
रखनी चाहे ए मानव जीवन THERE IS NO SUBSTITUTE OF HARD WORK
पोरवार, समाज अभावा राष्ट्र में विख्यात हो ग सम्मान का पात्र होता है। चारों दिशाओं में उसका सुमश फैलता है। वह कुल अथवा धरती भी. धन्य हो जाती है, जहाँ. उसका जन्म होता है जैसे जैसे देव दयानन्द, महात्मा गाँधी, गुरु नानक, सन्त J तुकाराम, नामदेव, गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर इत्यादि सारांश यह है कि व्यक्ति को अपनी सोच सर्वदा सकारात्मक धन्य जाम ।
रएननी चाहए मानव जीवन THERE IS NO SUBSTITUTE OF HARD WORK.