Categories
आतंकवाद

शुद्धि आंदोलन और ख्वाजा हसन निजामी

#डॉविवेकआर्य

आज सुबह दैनिक जागरण समूह द्वारा दिल्ली के इरोस होटल में निजामी बंधुओं की सूफी नाइट का आयोजन करने का समाचार प्रकाशित हुआ है। यह निजामी बंधु इम्तियाज अली की फिल्म रॉकस्टार के बाद प्रसिद्ध हुए थे जिसमें रणबीर कपूर को ए आर रहमान के संगीत के साथ सूफी कलाम गाते हुए दिखाया गया है। दिल्ली के एक कोने में निजामुद्दीन की दरगाह है। निजामी बंधु उसी दरगाह के खादिम है। 1947 से पहले इस दरगाह के हाकिम का नाम ख्वाजा हसन निजामी था। हिंदुओं को मुसलमान बनाने की
तबलीग और तंजीम की मुहिम को चलाने वालों में सबसे अधिक सक्रिय रहा था। धार्मिक मतान्धता के विष से ग्रसित निज़ामी ने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए 1920 के दशक में एक पुस्तक लिखी थी। जिसका नाम था ‘दाइये इस्लाम’ । इस पुस्तक को इतने गुप्त तरीके से छापा गया था कि इसका प्रथम संस्करण कब प्रकाशित हुआ और कब समाप्त हुआ इसका पता ही नहीं चला था। इसके द्वितीय संस्करण की प्रतियाँ अफ्रीका तक पहुँच गई थी। एक आर्य सज्जन को उसकी यह प्रति अफ्रीका में प्राप्त हुई जिसे उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद जी को भेज दिया। स्वामी जी ने इस पुस्तक को पढ़ कर उसके प्रतिउत्तर में पुस्तक लिखी जिसका नाम था “खतरे का घंटा” । इस पुस्तक में उस समय के 21 करोड़ हिन्दुओं में से 1 करोड़ हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने का लक्ष्य रखा गया था।

इस पुस्तक के कुछ सन्दर्भों के दर्शन करने मात्र से ही की मानसिकता का बोध हमें सरलता से मिल जायेगा कि किस तक जाकर हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए मुस्लिम समाज के हर सदस्य को प्रोत्साहित किया गया था। इस कृत्य से न केवल वार्मि द्वेष के फैलने की आशंका थी, अपितु दंगे तक भड़कने के पूरे आस थे। इस पुस्तक के कुछ अंशों को प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसमें मुसलमान को हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने के लिए प्रेरित किया गया थ 1. फकीरों के कर्तव्य – जीवित पीरों की दुआ से बे औलादों

औलाद होना या बच्चों का जीवित रहना या बीमारियों का दूर होन या दौलत की वृद्धि या मन की मुरादों का पूरा होना, बददुआओं क भय आदि से हिन्दू लोग फकीरों के पास जाते हैं, बड़ी श्रद्धा हैं। मुसलमान फकीरों को ऐसे छोटे छोटे वाक्य याद कराया जावे, जिन्हें वे हिन्दुओं के यहाँ भीख मांगते समय बोले और जिनके सुनने से

हिन्दुओं पर इस्लाम की अच्छाई और हिन्दुओं की बुराई प्रगट हो 2. गाँव और कस्बों में ऐसा जुलुस निकालना जिनसे हिन्दू लोगों में उनका प्रभाव पड़े और फिर उस प्रभाव द्वारा मुसलमान बनाने का कार्य किया जावे।

  1. गाने बजाने वालों को ऐसे ऐसे गाने याद कराना और ऐसे ऐसे नये नये गाने तैयार करना जिनसे मुसलमानों में बराबरी के बर्ताव को बातें और मुसलमानों की करामातें प्रगट हो ।
  2. गिरोह के साथ नमाज ऐसी जगह पढ़ना जहाँ उनको दूसरे के लोग अच्छी तरह देख सके।

  3. ईसाइयों और आर्यों के केन्द्रों या उनके लीडरों के यहाँ से उनके खानसामों, बहरों, कहारों चिट्ठीरसारों, कम्पाउन्डरों, भीख मांगने वाले फकीरों, झाड़ू देने वाले स्त्री या पुरुषों, धोबियों, नाइयों, मजदूरों सिलावतों और खिदमतगारों आदि के द्वारा ख़बरें और भेद मुसलमानों को प्राप्त करनी चाहिए ।

  4. सज्जादा नशीन अर्थात् दरगाह में काम करने वाले लोगों को मुसलमान बनाने का कार्य करे।

  5. ताबीज और गंडे लेने वाले जो हिन्दू उनके पास आते हैं. उनको इस्लाम की खूबियाँ बतावें और मुसलमान बनने की दावत दें 8. देहाती मदरसों के अध्यापक अपने से पढ़ने वालों को और उनके माता पिता को इस्लाम की खूबियाँ बतावें और मुसलमान बनने की दावत दें।

  6. नवाब रामपुर, टोंक, हैदराबाद, भोपाल, बहावलपुर और जूनागढ आदि को, उनके ओहदेदारों, जमींदारों, नम्बरदार, जैलदार आदि को अपने यहाँ पर काम करने वालों को और उनके बच्चों को इस्लाम की खूबियाँ बतावें और मुसलमान बनने की दावत दें।

  7. माली, किसान, बागबान आदि को आलिम लोग इस्लाम के मसले सिखाएँ क्योंकि साधारण और गरीब लोगों में दीन की सेवा करने का जोश अधिक रहता है ।

  8. दस्तगार जैसे सोने, चाँदी, लकड़ी, मिट्टी, कपड़े आदि का काम करने वालों को आलीम इस्लाम के मसलों से आगाह करें जिससे वे औरों को इस्लाम ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करें।

  9. फेरी करने वाले घरों में जाकर इस्लाम की खूबियां बताये, दुकानदार दुकान पर बैठे बैठे सामान खरीदने वाले ग्राहक को इस्लाम की खूबियाँ बताये ।

  10. पटवारी, पोस्ट मास्टर, देहात में पुलिस ऑफिसर, डॉक्टर, मिल कारखानों में बड़े औहदों पर काम करने वाले मुसलमान इस्लाम का बड़ा काम अपने नीचे काम करने वाले लोगों में इस्लाम का प्रचार करके कर सकते हैं।

  11. राजनैतिक लीडर, संपादक, कवि, लेखक आदि को इस्लाम की रक्षा एवं वृद्धि का काम अपने हाथ में लेना चाहिये।

  12. स्वांग करने वाले, मुजरा करने वाले, रण्डियों को, गाने वाले कव्वालों को, भीख मांगने वालों को सभी भी इस्लाम की खूबियों को गाना चाहिये।

यहाँ पर सारांश में निज़ामी की पुस्तक के कुछ अंशों को लिखा गया है। पाठकों को भली प्रकार से निज़ामी के विचारों के दर्शन हो गये होंगे।

स्वामी श्रद्धानन्द ने शुद्धि आंदोलन के मुखर विरोधी महात्मा गाँधी को हसन निज़ामी की इस पुस्तक के विषय में अवगत करवाया । गाँधी जी ने इस पर विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी। हसन निज़ामी का इससे मनोबल इतना बढ़ा कि उसने गाँधी जी को ही इस्लाम स्वीकार करने का न्योता दे दिया । शुद्धि समाचार में हसन निज़ामी के कृत्यों पर अनेक लेख और समाचार प्रकाशित हुए। पं. देवप्रकाश जी ने ‘ख्वाजा हसन निजामी का वास्तविक स्वरूप’ लिखा जो भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा लखनऊ द्वारा प्रकाशित हुआ था। यहां हसन निजामी पर संक्षिप्त जानकारी ही दी गई है। शुद्धि आंदोलन का विरोध करने वालों में उनका नाम सबसे ऊपर है।

क्या ऐसी पृष्ठभूमि के लोगों को बुलाकर सूफी नाइट करवाना बड़े शर्म की बात नहीं है? आप स्वयं चिंतन करें।

(संदर्भ – आर्यसमाज और शुद्धि आंदोलन, प्रकाशक भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा, दिल्ली, 2023, पृष्ठ 329 -332)
पुस्तक राशि 500 रूपये डाक खर्च सहित।
इस पुस्तक को खरीदने के लिए इस नंबर पर whatsapp करें 07015591564

Comment:Cancel reply

Exit mobile version