देश के विरुद्ध साज़िशकर्ताओं पर मीलॉर्ड कब गंभीर होंगे?

देश के खिलाफ विद्रोह करने वालों को ऐसे छोड़ दिया जाता है ;
सुभाष चन्द्र
मई 16 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने न्यायप्राणी पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर सुप्रीम कोर्ट पर भी प्रहार कर दिया, जिससे सुप्रीम कोर्ट में हड़कंप मचना स्वाभाविक है। जिस आधार पर अरविन्द केजरीवाल को interim bail दी, तिहाड़ में बंद अन्य मुख्यमंत्रियों/नेताओं को क्यों नहीं दी? अगर चुनाव केजरीवाल के लिए प्रमुख है अन्यों के लिए क्यों नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने कल(मई 15) Newsclick के editor प्रबीर पुरकायस्थ की UAPA में गिरफ्तारी अवैध कहते हुए रिहा कर दिया। जस्टिस बी आर गवई और संदीप मेहता ने उसका कारण बताया कि उसे गिरफ़्तारी के कारण लिख कर नहीं दिए गए।
यानी 2021 जुलाई से पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी गिरफ़्तारी पर रोक लगाई थी और बड़ी मुश्किल से दिल्ली पुलिस के हाथ लगा था ये चीन पैसा लेकर भारत की Stability & Integrity के साथ खिलवाड़ करने वाला और उसे छोड़ कर जैसे उसके देश के खिलाफ सभी कामों को भी जैसे ठीक बता दिया। मीलॉर्ड ने कहा कि UAPA में गिरफ़्तारी के कारण बताना जरूरी है और नहीं बताए तो गिरफ़्तारी अवैध है।

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चर्चित यूटूबर
पुरकायस्थ पर चीन से 75 करोड़ रुपए मंगवाने का गंभीर आरोप है।
इसके अलावा सबसे खतरनाक आरोप इन पर था कि इसने उत्तर भारत के borders का ऐसा नक्शा बनाया जिसमें अरुणाचल प्रदेश और J&K को भारत का हिस्सा नहीं दिखाया लेकिन मीलॉर्ड ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया और तकनीकी आधार पर रिहा कर दिया।

पुरकायस्थ 3 अक्टूबर, 2023 को गिरफ्तार हुआ था। तब मजिस्ट्रेट को इसे 7 दिन की रिमांड पर भेजते हुए यह देखना चाहिए था कि Grounds of Arrest बताये गए हैं या नहीं। तुषार मेहता ने हाई कोर्ट में कहा था कि UAPA guidelines में अरेस्ट के ग्राउंड के written copy देना जरूरी नहीं है वैसे मजिस्ट्रेट के सामने grounds बता दिए गए थे।

पुरकायस्था ने हाई कोर्ट में अपील की थी लेकिन हाई कोर्ट ने 10 अक्टूबर को उसकी अपील खारिज कर दी यह कहते हुए कि उसमे कोई Merit नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने उसकी रिहाई के लिए पंकज बंसल के केस का जिक्र किया है लेकिन वह केस UAPA का नहीं था बल्कि PMLA का था और दोनों कानून अलग है। वैसे भी वह फैसला दिसंबर, 2023 का था जबकि पुरकायस्था गिरफ्तार अक्टूबर, 23 में हुआ। उसको backdate में कैसे apply कर सकते हैं।

ये तो मतलब साफ़ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट हर किसी को छोड़ने में आगे रहेगा चाहे वह देश का दुश्मन ही क्यों न हो। दूसरे शब्दों में जो भी मोदी सरकार के खिलाफ होगा, अदालत उसके साथ होगी जैसे केजरीवाल के साथ थी जिसे अनैतिक रूप से बेल दे दी गई। आज(मई 16) अमित शाह से सुन ही लिया न कि अदालत द्वारा उसे special Treatment दिया गया। एक गृह मंत्री इससे ज्यादा और सख्त नहीं कह सकता अदालत के आचरण पर।

मजिस्ट्रेट ने परवाह नहीं की और न ही हाई कोर्ट ने परवाह नहीं की। आपको चिंता थी तो पुलिस को हिदायत दे सकते थे कि 2 दिन में उसको लिखित में गिरफ़्तारी के आधार बताये जाएं मगर आपने तो उसे छोड़ना ही बेहतर समझा।

आप उसे कह रहे हैं कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ न करना। आपने कह दिया और उसने मान लिया, ऐसा होगा क्या? वो सारे पैसे और ख़ुफ़िया जानकारी सात तालों में बंद कर छुपा कर चीन से मंगवा लाया और उससे आप उम्मीद कर रहे हो कि सबूतों से छेड़छाड़ न करे।

पुरकायस्थ तो मौका मिलते ही सबूतों को नष्ट कर देगा। इतना गंभीर केस सुप्रीम कोर्ट ने मिट्टी मिला दिया जिसका मतलब यह भी निकलता है कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट को इशारा है। सोच कर फैसले करना हम बैठे हैं ऊपर।

इंडिया फर्स्ट से साभार

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