“जो मनुष्य नम्रतापूर्वक वैदिक विधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता है वह सर्वदा आनन्द में रहता है: स्वामी यज्ञमुनि”
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का ग्रीष्मोत्सव, 75वां स्थापना दिवस एवं संस्थापक बावा गुरमुख सिंह जी का स्मृति दिवस आदि कार्यक्रम आज तीसरे दिन सैकड़ों ऋषिभक्तों की उपस्थिति में प्रातः आश्रम की भव्य एवं दिव्य यज्ञशाला में यज्ञ करके आरम्भ किया गया। यज्ञ के ब्रह्मा आर्यजगत् के विख्यात् विद्वान् आचार्य पं. विष्णु मित्र वेदार्थी जी थे। यज्ञ में मंत्रोच्चार देहरादून स्थित प्रसिद्ध गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारियों द्वारा किया गया। यज्ञ के ब्रह्मा जी के साथ वा निकट स्वामी शान्तानन्द सरस्वती जी महाराज – गुजरात, श्री उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ – आगरा, श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी – हरिद्वार, पं. सूरत राम शर्मा जी, भजनोपदेशक पं. कुलदीप आर्य जी एवं आश्रम के प्रधान श्री विजय आर्य जी विद्यमान थे। यज्ञ में पं. विष्णु मित्र वेदार्थी जी ने अपने उपदेश वचनों से यज्ञकर्ताओं एवं श्रोताओं को उपकृत किया। यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री कुलदीप आर्य जी ने पं. प्रकाश चन्द्र कविरत्न जी की प्रसिद्ध रचना एक भजन ‘पहचान न पाया मैं तुमको, पहचान न पाया मैं तुमको’ प्रस्तुत किया। यह भजन ईश्वर का ज्ञान कराने में बहुत ही सहायक है। इस भजन को सुनकर आत्मा ईश्वर के स्वरूप को जान लेता है। इसका गायन सरल न होकर कठिन है। इसको कुछ ही भजनोपदेशक प्रभावशाली ढंग से गा सकते है। यह भजन कुछ लम्बा भी है। पं. कुलदीप आर्य जी ने भजन को बहुत ही मधुर वाणी में अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से गाकर सुनाया जिसे सुनकर सभी श्रोता भावविभोर हो गये। हमने भी अनेक आर्य भजनोपदेशकों से इसे सुना है। आज इसे सुनकर पुनः बहुत अच्छा लगा। कार्यक्रम का संचालन कर रहे वैदिक विद्वान श्री पं. शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने भी इसकी प्रशंसा की। इस भजन के बाद आर्यसमाज के प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी यज्ञमुनि जी का संक्षिप्त उपदेश हुआ।
स्वामी यज्ञमुनि जी ने श्रोताओं को स्मरण कराते हुए कहा कि ऋषि दयानन्द ने कहा है कि हम सर्वदा आनन्द में रहें। उन्होंने पूछा कि कौन सर्वदा आनन्द में रहता है? इसका उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि जो मनुष्य नम्रतापूर्वक वैदिक विधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता है वह सर्वदा आनन्द में रहता है। उन्होंने कहा कि परमात्मा मनुष्य की आत्मा में अपने सर्वान्तर्यामी स्वरूप से विद्यमान है। वह सभी मनुष्यों को सद्कर्म करने पर उनकी आत्मा में सुख व आनन्द प्रदान करता है तथा बुरे कर्म करने पर भय, शंका व लज्जा को उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा इससे ईश्वर का हमारी आत्मा के भीतर विद्यमान होना सिद्ध होता है। उन्होंने आगे कहा कि कुटिलाता एवं पाप कर्मो को अपने जीवन से हटाने वालों को परमात्मा आनन्द देता है। विद्वान स्वामी यज्ञमुनि जी ने बताया कि परमात्मा की उपासना वही मनुष्य कर सकता है जिसके भीतर पाप तथा कुटिलतायुक्त कर्म वा आचरण न हों। स्वामी जी ने ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों का अध्ययन कर उनकी कही सभी बातों को मानने की प्ररेणा की। स्वामी जी महाराज ने ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य का स्वाध्याय करने की प्रेरणा भी सभी श्रोताओं को की। उपदेश की समाप्ति पर स्वामी जी का सम्मान भी किया गया।
कार्यक्रम में स्थानीय आर्य लेखक श्री मनमोहन आर्य का उनके लेखन कार्य के लिए आश्रम की ओर से सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने प्रेम व स्नेह से युक्त वचनों में श्री आर्य का परिचय दिया। मंच पर उपस्थित सभी विद्वानों ने अपनी शुभकामनायें एवं आशीर्वाद भी हम, मनमोहन आर्य को प्रदान किये। हम इस सम्मान के लिए आश्रम एवं सभी विद्वानों के हृदय से आभारी हैं। हम विनम्रतापूर्वक सबका धन्यवाद करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि यह आश्रम वर्तमान एवं भविष्य में उन्नति करते हुए उन्नति एवं वेदप्रचार के नये कीर्तिमान स्थापित करे। कार्यक्रम में चण्डीगढ़ से ऋषिभक्त श्री सुशील भाटिया जी भी पधारे हुए हैं। वह कार्यक्रम को सफल कराने के लिए अपनी सेवायें दे रहे हैं। फेसबुक पर आश्रम की गतिविधियों के चित्र एवं वीडियो प्रस्तुत कर वह आश्रम के आयोजनों का आर्यजनता में अपनी पूरी वेदप्रचार की भावना से कार्य कर रहे हैं। हमें भी उनका स्नेह सदैव मिलता है। हम उनका भी आभार व्यक्त करते हैं। आश्रम के सभी अधिकारियों एवं सदस्यों सहित आश्रम के उत्सव में पधारे सभी बन्धुओं का हार्दिक आभार एवं धन्यवाद। हम आश्रम के उत्सव की सफलता की सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य