कौन परमात्मा में विलीन होता है?
एक सच्चे जिज्ञासु की कितनी गहराई और कितनी ऊँचाई होती है?
तं गूर्तयो नेमन्निषः परीणसः समुुुद्रं न संचरणे सनिष्यवः।
पतिं दक्षस्य विदथस्य नू सहो गिरिं न वेना अधि रोह तेजसा।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.56.2
(तम्) वे जो (गूर्तयः) स्तुति करते हैं (परमात्मा की) (नेमन इषः) परमात्मा को नमन करने के बाद विनम्र होकर (परीणसः) सक्रियता से व्याप्त होते हैं (समुुुद्रम्) समुद्र की ओर (न) जैसे कि (संचरणे) संयुक्त होकर (सनिष्यवः) भिन्न-भिन्न भूमियों की सेवा करती हुई नदियाँ (पतिम्) स्वामी, संरक्षक (दक्षस्य) दक्ष का, शक्तिशाली का (विदथस्य) ज्ञान का (नू) प्राप्त हो (सहः) शक्ति का स्रोत (गिरिम्) पर्वतों पर (न) जैसे कि (वेनाः) उत्सुक (अधि रोह) चढ़ता है और स्थापित करता है (तेजसा) पवित्र बल के साथ।
व्याख्या:-
कौन परमात्मा में विलीन होता है?
जो व्यक्ति परमात्मा के प्रशंसक होते हैं और विनम्रता के साथ अपना नमन उसे प्रस्तुत करते हैं तथा गतिविधियों के साथ व्याप्त हो जाते हैं वे शक्ति और बल के स्रोत के द्वारा ग्रहण किये जाते हैं जैसे – भिन्न-भिन्न भूमियों को सेवित करती हुई नदियाँ समुद्र में जा मिलती हैं और जैसे एक उत्सुक और उत्साही व्यक्ति अपने शुद्ध बल के साथ पर्वत की चोटी तक पहुँच जाता है और वहाँ स्थापित हो जाता है। परमात्मा हर प्रकार की दक्षताओं और प्रत्येक ज्ञान का स्वामी और संरक्षक है।
जीवन में सार्थकता: –
एक सच्चे जिज्ञासु की कितनी गहराई और कितनी ऊँचाई होती है?
एक सच्चा जिज्ञासु एक तरफ परमात्मा की प्रशंसा करता है और दूसरी तरफ अपनी गतिविधियों से व्याप्त हो जाता है। उसकी शुद्धता उसे परमात्मा में इतना गहरा विलीन कर देती हैं जैसे – नदियाँ समुद्र में जाकर मिलती हैं। वह अपने ज्ञान तथा त्याग कार्यों के साथ जीवनयापन करते हुए इतना ऊँचा हो जाता है कि वह एक उत्साही पर्वतारोही की तरह पर्वत की चोटी पर स्थापित हुआ दिखाई देता है। उसकी गहराई और उसकी ऊँचाई असमानान्तर होती है।
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