मित्रो ! आज 3 जुलाई है । आज के दिन 1947 में अखिल भारत हिंदू महासभा के नेता वीर सावरकर के आवाहन पर इस पार्टी ने 3 जून 1947 को कांग्रेस , मुस्लिम लीग और अकाली दल के द्वारा विभाजन पर अपनी सहमति देने के विरोध में काला दिवस मनाया था । 3 जून की इस पीड़ादायक घोषणा को लेकर 4 जून को हिंदू महासभा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री एल वी भोपटकर के पास सावरकर जी ने तार भेजा और उनसे आग्रह किया कि पाकिस्तान के विरुद्ध हमारी लड़ाई निरंतर जारी रहनी चाहिए । उन्होंने 6 ,7 व 8 जून को हिंदू महासभा की कार्यकारिणी की एक आपात बैठक दिल्ली में आयोजित करने का आग्रह भी राष्ट्रीय अध्यक्ष से किया । सावरकर जी ने कहा था : — ” मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण यह है कि केंद्रीय भारतीय राज्य के विरुद्ध जो स्वतंत्र राज्य की स्थापना हो रही है , उसका हमें प्रबल रूप से विरोध करना चाहिए ।
भारत की अखंडता के मृत्यु प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए हम उद्यत नहीं होंगे । यदि ब्रिटेन हमारे ऊपर पाकिस्तान को थोपता है तो दूसरी बात है । इससे निपटने के लिए विद्रोही मुस्लिम प्रांतों को जोड़ने में हमारा संघर्ष जारी रहेगा । दूसरे , पाकिस्तान का विरोध करने के लिए पूरे हिंदुस्तान में ‘काला दिवस ‘ मनाने की तिथि निश्चित की जानी चाहिए । तीसरे , बंगाल ,पंजाब और सिंध के हिंदु बहुल क्षेत्रों में अखंड हिंदुस्तान को दृष्टि में रखकर साथ साथ किसी प्रकार का पाकिस्तान निर्मित नहीं होने देना चाहिए । “अपने नेता के आवाहन पर हिंदू महासभा ने 3 जुलाई को सारे देश में ‘काला दिवस ‘ मनाने का निर्णय लिया । निर्धारित तिथि को देश में पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बड़े जोरदार ढंग से अपना विरोध व्यक्त करते हुए ‘ काला दिवस ‘ मनाया ।आज फिर देश की संसद में ‘ अल्लाह हू अकबर ‘ के नारे लग रहे हैं । पश्चिमी बंगाल में बांग्लादेश से मुस्लिम नेता आकर लोगों को ममता बनर्जी के लिए काम करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं ,और खुल्लम खुल्ला हिंदू समाज के विरुद्ध जहर उगल रहे हैं ।
कश्मीर से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन हो चुका है , फिर वही परिस्थितियां बन रही है । कहने का अभिप्राय है कि 3 जुलाई 1947 को मनाया गया यह ‘ काला दिवस ‘ आज भी उतना ही प्रासंगिक है , जितना उस समय था। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस मानसिकता ने पाकिस्तान का निर्माण करवाया , उसने संसार में 56 देश अपनी विचारधारा के खड़े कर लिये । उसके पश्चात भी वह विश्व कलह का कोई ऐसा समाधान नहीं दे पायी जिससे विश्व शांति स्थापित हो सके । नए-नए देशों को खड़ा करने का अभिप्राय है कि विभाजन और विखंडन उसकी सोच में है , जबकि वैदिक संस्कृति ‘वसुधैव कुटुंबकम ‘ की बात करती है । विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए नए-नए देश खड़े करने की नहीं ,अपितु ‘वसुधैव कुटुंबकम ‘ की भावना को प्रबल करने की आवश्यकता है । वैदिक धर्म की वसुधैव कुटुंबकम की इसी पवित्र भावना के विरुद्ध कार्य कर रहे लोगों के विरुद्ध क्या आज भी काला दिवस मनाने की आवश्यकता नहीं है ?
राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत