मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के विपरीत राज्यसभा में इस बार विधेयकों को पारित कराने में रुकावटें आने की संभावना लगभग समाप्त हो गई है। विरोध व्यक्त करने के उपरांत भी जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन पर सरकार को जिस प्रकार तृणमूल कॉंग्रेस ने अपना समर्थन दिया है , उससे आशा की कुछ नई उम्मीद जगती दिखाई दे रही है ।
इसे भारतीय राजनीति का शुभ संकेत ही कहा जाएगा कि तृणमूल कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन पर सरकार के विधेयक को अपना समर्थन दिया है। जबकि इससे पूर्व भाजपा और टीएमसी के बीच जमकर संघर्ष होता दिख रहा था । पश्चिम बंगाल में दोनों राजनीतिक दल जिस प्रकार गुत्थमगुत्था हैं , उससे लग रहा था कि राजनीति करते यह राजनीतिक दल राष्ट्रहित में भी किसी अच्छे मुद्दे पर साथ नहीं आ पाएंगे । बीजेडी ने भी जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने के प्रस्ताव का समर्थन कर सरकार को सकारात्मक सहयोग दिया है । इससे कांग्रेस या उसके वे साथी जो जम्मू कश्मीर संबंधी इस विधेयक को राज्यसभा से पारित न होने देने के लिए सक्रिय थे , की आशाओं पर पानी फिर गया है ।
वास्तव में विपक्ष का अर्थ यह होता है कि वह विशेष पक्ष बनकर सरकार के साथ खड़ा हो । सरकार यदि गलतियां कर रही है तो उसे रोकने का अधिकार विपक्ष के पास होता है । साथ ही उसकी नीतियों में राष्ट्रहित में यथावश्यक संशोधन कराना विपक्ष का संवैधानिक अधिकार होता है । जब विपक्ष अपनी इस भूमिका को सही करके चलता है तो राष्ट्र के विकास कार्यों में प्रगति आती है और सरकार भी सावधान रहकर कार्य करने के लिए प्रेरित और बाध्य होती है।
सत्ता पक्ष को भी चाहिए कि वह विपक्ष के राष्ट्रहित में दिए गए सभी सुझावों और विचारों का दिल खोलकर स्वागत करे । यदि सत्तापक्ष भी किसी प्रकार के नशे या अहंकार के वशीभूत होकर निर्णय लेता रहता है तो उसका परिणाम भी उसके लिए घातक होता है । भारतवर्ष में कांग्रेस जिस वर्तमान दुर्दशा को झेल रही है उसका कारण यही है कि इंदिरा गांधी के शासनकाल में इस राजनीतिक दल का अहंकार सिर चढ़कर बोल रहा था । इंदिरा गांधी यदि 1984 में न मारी जाती तो कॉंग्रेस का पतन अब से पहले ही हो गया होता । 1984 के लोकसभा चुनाव को कांग्रेस केवल इसलिए जीत पाई थी कि उस समय लोगों में इस पार्टी के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो गई थी ।
ऐसे में भाजपा को इतिहास और परिस्थितियों से शिक्षा लेकर आगे बढ़ना चाहिए । उसके द्वारा यदि विपक्ष के बिना कार्य किया जाता है तो यह भी अनुचित होगा । साथ ही विपक्ष को भी देशहित में सत्तापक्ष के साथ खड़ा होना सीखना होगा । तभी हम भारत के लिए अपेक्षित लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्कृति को विकसित कर सकेंगे । जिसकी यह देश 1947 से प्रतीक्षा कर रहा है ।
आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू एवं कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने का प्रस्ताव तथा ‘ जम्मू एवं कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 ‘ संशोधन विधेयक सोमवार को राज्यसभा में प्रस्तुत किया था । इसके पूर्व शुक्रवार को दोनों प्रस्ताव लोकसभा में पारित किए जा चुके थे । यहां पर यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि 235 सदस्यों वाले उच्च सदन में भाजपा के इस समय 75 सदस्य हैं। जिनके आधार पर भाजपा इस समय राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी है । कांग्रेस 48 सदस्यों वाली पार्टी होने के कारण सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है । जबकि समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस 13 – 13 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई पार्टी के रूप में स्थापित हैं । आगामी 24 जुलाई को तमिलनाडु से 5 सीट रिक्त होने वाली हैं । नहीं लगता कि भाजपा एक सीट भी अपने लिए ला पाएगी
मुख्य संपादक, उगता भारत