हमें सुनने के योग्य कौन बना सकता है? परमात्मा के विस्तृत ज्ञान और गतिविधियों को अनुसरण करने का क्या उद्देश्य है?

हमें सुनने के योग्य कौन बना सकता है?
परमात्मा के विस्तृत ज्ञान और गतिविधियों को अनुसरण करने का क्या उद्देश्य है?
ज्ञान, कर्म और उपासना का दिव्य पथ क्या है?

स हि श्रवस्युः सदनानि कृत्रिमा क्ष्मया वृधान ओजसा विनाशयन्।
ज्योतींषि कृण्वन्नवृकाणि यज्यवेऽव सुक्रतुः सर्तवा अपः सृजत्।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.55.6

(सः) वह (हि) केवल (श्रवस्युः) हमें सुनने के योग्य बनाने के लिए तत्पर (सदनानि कृत्रिमा) बुराईयों और धूर्तों का आवास (क्ष्मया) शक्ति के साथ (वृधानः) पृथ्वी की तरह विस्तृत (ओजसा) बहादुरी के साथ (विनाशयन्) नष्ट करते हुए (ज्योतींषि) ज्ञान की किरणें (कृण्वन) पैदा करता है (अवृकाणि) आवरण से रहित (यज्यवे) अच्छे कार्य करने के लिए (अव – सुक्रतुः से पूर्व लगाकर) (सुक्रतुः – अव सुक्रतुः) उत्तम कार्यों को करने वाला परमात्मा (सर्तवा) गति के लिए तैयार करता है (अपः) जल, व्यापक गतिविधियाँ (सृजत्) उत्पन्न करता है।

व्याख्या:-
हमें सुनने के योग्य कौन बना सकता है?

अपनी शक्तियों और साहस के साथ वह हमारे अन्दर बसी बुराईयों और कुटिल प्रवृत्तियों का नाश करके हमें सुनने के योग्य बनाने के लिए तत्पर है। वह धरती की तरह विस्तृत है। उत्तम कार्यों को करने वाला होने के नाते, परमात्मा ज्ञान की किरणें पैदा करता है जो रहस्यों से मुक्त होती हैं और अच्छे कार्यों को करने के लिए होती हैं तथा जल को बहने के योग्य बनाता है और अपार गतिविधियों को पैदा करता है।

जीवन में सार्थकता: –
परमात्मा के विस्तृत ज्ञान और गतिविधियों को अनुसरण करने का क्या उद्देश्य है?
ज्ञान, कर्म और उपासना का दिव्य पथ क्या है?

परमात्मा के पास अपार ज्ञान और असीम गतिविधियाँ हैं। उसने अपने कोष हमारे लिए खोल रखे हैं। वह हमें बुरे विचारों का नाश करने के लिए तथा हमें अपने समान उत्तम गतिविधियों में लगाने के लिए प्रेरित करता है और हमारी सहायता भी करता है। वह सुनने के योग्य है। इसलिए वह हमें भी सुनने के योग्य बनाने के लिए तत्पर रहता है।
अतः परमात्मा का अनुसरण करना और परमात्मा से ज्ञान प्राप्त करना, सबके कल्याण के लिए परमात्मा के समान कार्य करना और परमात्मा के समान सुविख्यात होना ही दिव्य मार्ग है। इसका अभिप्राय है कि परमात्मा ही ज्ञान और कर्म दोनों का दाता है। यदि हम परमात्मा के इन दोनों उपहारों को पूर्ण संकल्प के साथ स्वीकार करें तो यही अपने आपमें सर्वोच्च भक्ति अर्थात् उपासना बन जायेगी। 


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टीम
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