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आज हमें देहरादून की मुख्य आर्यसमाज धामावाला के साप्ताहिक सत्संग में सम्मिलित होने का अवसर मिला। सत्संग का आरम्भ परम्परागत वैदिक यज्ञ से हुआ जिसके पुरोहित आर्यविद्वान पं. विद्यापति शास्त्री जी थे। यज्ञ के बाद भजन हुए। आर्यसमाज के पुरोहित जी एक प्रसिद्ध भजनोपदेशक भी हैं। उनके गाये हुए प्रमुख भजनों की एक सीडी भी वर्षों पूर्व बनी थी जिसे हमने सुना है। इस कैसेट के सभी भजन बहुत मधुर एवं श्रवण करने योग्य हैं। आज के सत्संग में पण्डित विद्यापति जी ने जो भजन गाया उसके बोल थे ‘आज तुम्हें प्रभु विनती सुनाऊं, विनती सुनाऊं तोहे रिझाऊ। आज नाथ तोहे विनती सुनाऊं।’ भजन बहुत ही मधुर गाया गया था जिसे सभी श्रोताओं ने पसन्द किया। इसके बाद एक स्थानीय बहिन श्रीमती रामेश्वरी देवी जी ने एक भजन गाया जिसके बोल थे ‘मुझे इस दुनिया में लाया, मुझे बोलना चलना सिखाया, ओ मात-पिता तुम्हें वन्दन मैंने किस्मत से तुम्हें पाया।।’ भजनों के बाद सामूहिक प्रार्थना हुई जिसे स्वामी श्रद्धानन्द बालवनिता आश्रम की एक छात्रा सुश्री रोशनी ने प्रस्तुत की। सामूहिक प्रार्थना करते हुए उन्होंने कहा कि हे प्रभु, हम आपकी भक्ति करें और हम धनैश्वर्यों के स्वामी होंवे।
आज सत्संग में वैदिक उपदेश आचार्य पं. शैलेशमुनि सत्यार्थी, हरिद्वार का हुआ। आचार्यजी ने गायत्री मन्त्र का सामूहिक पाठ कराकर तथा मन्त्रों का हिन्दी भाषा में अर्थ बोल कर व बुलवाकर अपना व्याख्यान किया। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज के सत्संग में आकर मनुष्य का जीवन बदल जाता है। यज्ञ में बैठने से संगतिकरण होता है जिससे यज्ञ में बोले जाने वाले सभी मन्त्र यज्ञ में बैठने वालों को कुछ ही दिनों में स्मरण हो जाते हैं। अतः यज्ञ में सभी मनुष्यों को जाना चाहिये। विद्वान वक्ता शैलेश मुनि जी ने कहा कि संसार के सभी जड़-चेतन देवताओं को परमात्मा ने बनाया है। श्री सत्यार्थी जी ने कहा कि यज्ञ में हम मन्त्रों के साथ दी जाने वाली आहुतियों के द्वारा देवताओं को भोजन कराते हैं। उन्होंने कहा कि देवयज्ञ सबका आधार है। यज्ञ का आधार वेद में स्थित है। वेद हमें परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में दिए हैं। उन्होंने कहा कि वेदमन्त्र ‘विश्वानि देव’ को व्यवहार में लाने से व्यक्ति का जीवन शुद्ध एवं पवित्र हो जाता है। यज्ञ करने वाले मनुष्य वा दम्पती पर परमात्मा की कृपा बरसती है। उन्होने कहा कि वेद के आधार पर ऋषि दयानन्द ने यज्ञ करने की विधि ‘संस्कार-विधि’ पुस्तक में प्रस्तुत की है। उन्होंने बताया कि वेद का आधार वाणी है। इसे पवित्र रखना चाहिये। वाणी से असत्य भाषण नहीं करना चाहिये। उन्होंने कहा कि वाणी का आधार मन है। जब मनुष्य का मन वाणी व अन्य इन्द्रियों से लग जाता वा जुड़ जाता है तभी वाणी व अन्य इन्द्रियां काम करती हैं। उन्होंने कहा कि जब तक हमारा भोजन व अन्न शुद्ध नहीं होगा हमारा मन शुद्ध नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि अन्न का आधार जल है। इस जल की सबको रक्षा करनी चाहिये।
आचार्य शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि जल का आधार तेज वा आकाशीय विद्युत है। विद्युत का आधार उन्होंने आकाश को बताया। आचार्य जी ने कहा कि परमात्मा सर्वव्यापक है। वह सब प्राणियों के हृदयों एवं संसार के कण-कण में विद्यमान है। विद्वान आचार्य जी ने आकाश का आधार ब्रह्म को बताया और इसके अनेक उदाहरण देकर इस सिद्धान्त की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि ब्रह्म को ब्रह्म इसलिए कहते है कि ब्रह्म जो-जो कार्य करता है वह कोई अन्य व मनुष्य आदि प्राणी नहीं कर सकते। विद्वान आचार्य जी ने ब्रह्म का आधार ब्राह्मण को बताया और कहा कि ब्राह्मण वह होता है जिसे चारों वेदों का ज्ञान होता है। ब्राह्मण परमात्मा के ज्ञान वेदों को प्रकट करता है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण का आधार ब्राह्मण के व्रत होते हैं। सत्य बोलना व्रत है। अनेक प्रकार के व्रतों के उदाहरण भी आचार्य जी ने श्रोताओं को दिये। व्रतों का आधार क्या होता है इसका उत्तर देते हुए आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ व्रतों का आधार होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि यज्ञ में बैठकर रोगी निरोगी हो जाते हैं।
आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने श्रोताओं को प्रेरणा की कि ऋषि के भक्तों को आर्य समाज के विद्वानों को समय-समय पर अपने घरों पर बुलाना चाहिये और पूरे परिवार के साथ मिलकर उनसे चर्चा करनी चाहिये। आचार्य जी ने बताया कि एक माता एक विद्वान को आर्यसमाज से अपने घर ले गई थी। वहां उसने उन्हें अपने पुत्र से मिलाया और उसके शराब पीने के दोष से उन्हें अवगत कराया। आचार्य जी का उपदेश सुनकर उस पुत्र ने शराब पीना छोड़ दिया, व्रत धारण कर नियमित यज्ञ करने लगा और उसका जीवन शुद्ध एवं पवित्र हो गया। आचार्य जी ने यज्ञ को विष्णु अर्थात् सर्वव्यापक परमेश्वर बताकर सबको यज्ञ करने की प्रेरणा की। आचार्य जी ने सभी श्रोताओं को कहा कि वह अपने परिवार के सदस्यों के जन्मदिवस एवं विवाह की वर्षगांठ आदि आर्यसमाज में मनाया करें। इसके लाभ भी उन्होंने श्रोताओं को बताये।
आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने विद्वान् वक्ता ऋषिभक्त श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी का आज के विद्वतापूर्वक प्रेरक उपदेश के लिए धन्यवाद किया। प्रधान जी ने सूचनायें देते हुए बताया कि आगामी 10 मई, 2024 को प्रातः 9.30 बजे आर्यसमाज के विद्वान् श्री रवीन्द्र कुमार आर्य जी देहरादून के मोथरोवाला में अपने नये गृह-भवन में गृहप्रवेश कर रहे हैं। इस अवसर श्री आर्यजी ने आर्यसमाज के सभी सदस्यों को यज्ञ एवं प्रीतिभोज में आमंत्रित किया। सत्संग के समापन पर शान्ति पाठ हुआ। शान्ति पाठ आर्यसमाज के पुरोहित जी ने कराया। इसी के साथ सत्संग समाप्त हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य