मुहम्मद ने कुरान कब और क्यों बनाई थी ?

मुस्लिम विद्वानों और इतिहासकारों ने यह दावा कर रखा है कि कुरान का पहला हिस्सा जिब्राईल नामका फरिश्ता आसमान से रमजान महीने की तारीख 27 को सन 610 में लेकर आया था ,उस समय रात थी , जिसे आज मुस्लिम लैलतुल ,कद्र कहते हैं ,उस समय मुहम्मद की आयु 40 साल थी ,
लेकिन यह बात सरासर बेबुनियाद और झूठ है ,क्योंकि मुस्लिम विद्वान् कुरान के आवरण की जो तारीख सन 610 बताते हैं ,उस से काफी पहले सन 586 ही मुहम्मद के ताऊ जुबैर इब्न अब्दुल मत्तलिब ने एक कविता मक्का के लोगों को सुनाई थी ,जो कुरान को अल्लाह की किताब होने की पोल खोलने वाली है ,
यह बात न तो हम अपनी तरफ से कह रहे हैं , और न किसी हिन्दू संगठन की तरफ से कह रहे हैं , लोगों को यह बात जानकर सहसा विश्वास नहीं होगा की , यह बात खुद मुहम्मद के ताऊ ” अल जुबैर – ” ने उस समय कह दी थी , जब मुहम्मद ने कुरान बनाना चालु कर दिया था ,, और अपनी उलटी सुल्टी , बेतुकी बातों को अल्लाह का कलाम बता कर मक्का के लोगों को जिहादी बना रहे थे ,
-इस संवेदनशील विषय की सत्यता को समझाने के लिए आपको यह बताना जरुरी था कि हमें यह जानकारी कहाँ से और कैसे मिली ?
1- जानकारी का सुराग कैसे मिला ?
कुछ दिन पहले मुझे एक उर्दू किताब मिली जो निजामी प्रेस लखनऊ से छपी थी इसका नाम “ग़दीर से करबला -غدیر سے کربلا تک
” था , इसके लेखक का नाम हसन नवाब रिजवी है , इस किताब के पेज नंबर 49 पर मुहम्मद के ताऊ “जबीर अब्दुल मत्तलिब का एक अरबी शेर दिया गया है ,
لعبت هاشم بالملک فلا
خبر جاء و لا وحی نزل‏
(लबअत हाशिम बिलमुल्क फला ,खबर जाअ व् ला वही नजल )
अर्थात – हाशिम की औलाद(MUhammad) ने दुनिया के साथ खेल किया , नतो आसमान से कोई खबर आयी और न कोई वही ( revelation ) ,यानी कुरान आयी.
,हमने इस पूरी कविता के बारे में दो दिन तक अंगरेजी और उर्दू में सर्च किया लेकिन कुछ पता नहीं चला , तीसरे दिन जब हमने फारसी में सर्च किया तो ईरानी साईट में अरबी की वह पूरी कविता मिल गयी , साथ में उसका फारसी अनुवाद भी मिल गया , यह कविता मुहम्मद सबसे बड़े चाचा यानि ताऊ जुबैर बिन अब्दुल मुत्तालिब जिसे अव्वाम भी कहा जाता है , उस समय लिखी थी जब मुहम्मद लोगों से यह कहा करता था कि अल्लाह के फ़रिश्ते मेरे पास खबर लाया करते हैं , और मैं जो भी कहता हूँ वह अल्लाह का कलाम है ,
2-मुहम्मद का संयुक्त परिवार
लेकिन मुहम्मद के ताऊ , चचेरे भाई सभी मुहम्मद को पाखंडी और सत्तालोभी मानते थे , दादा (grand father ) का नाम ” अब्दुल मुत्तलिब बिन हिशाम – شيبة ابن هاشم عبد المطّلب ” था। इसकी छह पत्नियां थी ,जिन से अब्दुल मुत्तलिब के 10 संतानें हुई ,( कुछ लोग 12 संतानें भी कहते हैं ,)इनका विवरण यह है
1″ अल जबीर – الزبير بن عبد المطلب‎ “यह परिवार का सबसे बड़ा बेटा था इसलिए मुत्तलिब ने इसे घर का मुखिया बना दिया , यह अपने ऊँटों से व्यापारियों का सामान लाने और भेजने का काम करता था , इसके अतिरक्त अरबी में कविता भी करता था , लोग इसे अबू ताहिर भी कहते थे , इसी नाम से यह शायरी भी करता था ,और जब मुहम्मद के पिता गुजर गए तो सबसे पहले इसी ने मुहम्मद को पाला था , और जब मुहम्मद 14 साल का हो गया तो सन 584 में यही मुहम्मद को सीरिया घुमाने ले गया , वहां राजा की शान शौकत देख कर मुहम्मद के दिल में दुनियां पर राज करने इच्छा पैदा हो गयी , चूँकि अपना राज कायम करने के लिए सेना जरुरी होती है , और सैनिकों को वेतन देने की मुहम्मद की औकात नहीं थी , इसके लिए मुहम्मद ने जिहाद का तरीका खोज निकाला ,
2-अबू तालिब -बचपन में इसका नाम “अब्द मनाफ़ -عبد مناف ” था , इसका बेटा अली था ,( मुहम्मद ने इसी से अपनी पुती फातिमा से शादी कर दी थी )यद्यपि अबू तालिब ने मुहम्मद को पाला , फिर भी अबुतालिब कभी मुस्लमान नहीं बना , जुबैर की तरह अबूतालिब भी इस्लाम को पाखण्ड और कुरान को मुहम्मद की रचना मानता था
3-अब्द इलाह – यह मुहम्मद के पिता थे ,इसकी पत्नी का नाम आमिना था, जब अब्दुल्लाह और आमिना की शादी हुई तो अब्दुल मुत्तलिब ने एकहि दिन एकसाथ एक लाइन में सौ ऊँटों को क़ुरबानी की थी , उस से कहा गया था कि इस से अल्लाह आमिना से अच्छे गुणों वाला बच्चा देगा , और बच्चे के बाप को लम्बी आयु देगा , लेकिन इसका बिलकुल उल्टा हुआ , मुहम्मद के जम्म से पहले अब्दुल्लाह मर गया , और आमिना का जो बच्चा मुहम्मद हुआ उसके हाथ पैर ऊँट के खुर जैसे थे , लोग समझते थे इस बच्चे में दुष्ट शक्तियों का वास है , इसी लिए मुहम्मद के सभी चाचा उस से दूर रहते थे , कोई भी मुस्लमान नहीं बना
4-उम्मे हकीम अल बैदा –तीसरे खलीफा उस्मान बिन अफ्फान की नानी
5-बर्रा – अबू सलमा की माता
6-अरवा -यह बचपन में मर गयी
7-अतीका -उमय्या अल मुगीरा की पत्नी
8-उम्मा -जैनब बिन्त जहश और अब्दुल्लाह इब्न जहश की माता
9-अब्दुल उज्जा -उर्फ़ अबू लहब , मुहम्मद का चाचा , कुरान में इसका उल्लेख है
10-हमजा – अली का भाई – उहद के युद्ध में अबू सुफ़यान की औरत हिंदा ने इसका कलेजा चबा लिया था
3-जुबैर ने यह कविता क्यों लिखी
जुबैर परिवार का मुखिया होने के साथ शायर भी था , मक्का के लोग उसकी कविताओं को यद् रखते थे , लेकिन लोगों को मुहम्मद की आदतें और कामों से नफ़रत थी , 13 साल होते ही मुहम्मद ने अपनी गैंग बना ली , जिस से वह काफिले लूटा करते थे , मुहम्मद ने यह बात फैला राखी थी कि ऐसा करने के लिए उसे आसमान से हुक्म मिलता है ,पहली बड़ी लूट मुहम्मद ने सन 583 में मकका के कबीले हवाजिन को लूटा ,इस लूट को “हरब अल फ़िज़ार – ﺣﺮﺏ الفجار‎ ” कहा जाता है , इसमें मुहम्मद को काफी माल मिला , इसके बाद मुहमम्मद ने लगातार चार लूट की वारदातें की , जिस से मक्का के लोग मुहम्मद के दुश्मन हो गए , लोगन का मुंह बंद करने के लिए मुहम्मद ने चाल चली , वह अपने हरेक कुकर्मों को जायज सिद्ध करने के लिए एक पुस्तक बनाया करता थे , जिसका नाम मुहम्मद ने ” अल किताब – الكِتاب ” रख लिया था .महम्मद ने बाद में इसका नाम कुरान रख दिया और , जब लोगों ने आरोप लगाया कि यह किताब तुमने ही बनाइ है , तो मुहमम्मद ने अनपढ़ होने का नाटक किया , जबकि इसका छोटा भाई अली लिखना पढ़ना सीख गया . और जब मुहम्मद ने कहा यह किताब मेरी रचना नहीं , अल्लाह फ़रिश्ते के माध्यम से भेजता रहता , और जब जुबैर को लगा कि सत्ता के लोभ में मुहममद दुनिया को धोखा दे रहा है तो उसने सोचा कि मुहमद के कारन पूरा कबीला , अरब लोगों का नाश हो जायेगा उसने यह कविता लिखी थी , और जैसे जैसे मुहम्मदी जिहाद फैलता गया , जुबैर की कविता भी लोगों को याद होती गयी ,जिहाद के बहाने मुहम्मद ने जिन लोगों को मरवाया था वह बदला लेने का मौका देखने लगे ,
4-यह कविता कब सार्वजनिक हुई
यद्यपि जुबैर ने यह कविता कुरान के अवतरण से काफी पहले ही लिखी थी ,लेकिन इसे “यजीद बिन मुआविया – : يزيد بن معاوية بن أبي سفيان‎ ” ने अपने दरबार में लोगों के सामने उस समय पढ़ा था जब उसके सामने इमाम हुसैन का कटा हुआ सर लाया गया था , यह घटना 10 अक्टूबर सन 680 , यानी 10 मुहर्रम हिजरी 61 की बात है ,दरबार में यजीद हुसैन के कटे सर को छड़ी से मारते हुए कहने लगा और भरे दरबार में लोगों के समांने मुहम्मद के ताऊ ( grand uncle )जुबैर की यह कविता सुनाने लगा
(Most of the narrations had confirmed that Yazeed Bin Muawiya had recited the poetry of Al-Zubary during his public assembly, Al-Zubary is a poet from Quraish at the time of Jahiliyyah (pre-Islamic stage) who was very tough on Muslims)
أتمنى لو أن قادتي القدامى في بدر يمكن أن يشهدو
“मैं चाहता हूँ कि बद्र के युद्ध में भाग लेने वाले पुराने लोग गवाह रहें ”
I wish my old chiefs at Badr could witness
الخازرج خوفا من تأثير الاندفاع
“जो खजराज की भीड़ से डरे और दबे रहते हैं ”
Al-Khazraj’s fearing of the impact of rush
كانوا سيهتفون ويصرخون بسعادة
” यह लोग खुश होकर चिल्ला कर बोल उठेंगे ”
They would have cheered and shouted happily,
ثم قالوا لي ، يا حسن يا سعيد
“और कहेंगे हे यजीद तूने अच्छा काम किया है ”
Then they would have said, good job O Yazeed
ان كُن مَن خندف اِذا كُنت الانتقام
“मैं खनदफ के युद्ध में बदला नहीं ले पाया था ”
I shall not be from the Khandaf if I do not avenge,
من عائلة أحمد لما فعله
“मुहम्मद के लोगों से , जो मुहम्मद ने हमारे साथ किया ”
From the family of Ahmad for what he had done
لعبت هاشم با مُلك فما
“हाशिम की संतान ( मुहम्मद ) ने देश को बर्बाद कर दिया ”
Hashim had manipulated the Reign
لاخبرجاء ولا وحي نزل
” न कोई खबर लेने वाला (फरिश्ता ” था , और न आसमान से कोई किताब उतरी है ”
So, neither news arrived nor revelations happened”


इन पुख्ता सबूतों से यह बातें सिद्ध होती हैं ,
1 -मुस्लमान विद्वान झूट कहते हैं कि कुरान “कलाम उल्लाह – ” यानी अल्लाह की वाणी है , जो अरबी नौवें महीने रमजान में आसमान से जिब्राईल नाम का फरिश्ता मुहम्मद के पास लाया था , और मुस्लिम विद्वान् कुरान के अवतरण अर्थात नुजूल ( Revelation ) की जो 23 तारीख दिसंबर सन 609 बताते हैं वह भी सरासर झूठ है ,
2-जबकि सच्चाई तो यह है कि मुस्लिम विद्वान् कुरान के उतरने की जो तारीख (23Dec 609 ) बताते हैं उस से काफी पहले से ही लगभग सन 585 -586 से ही मुहम्मद जो भी बेतुकी बातें बोलता था उसे( वही – “यानी अल्लाह के वचन बता दिया करता था , और अपने हरेक कुकर्मों को को न कोई आयत बना कर जायज ठहरा देता है , इस काम में उसका चचेरा भाई और दामाद अली भी साथ देते थे , मुहम्मद की इस धूर्तता को बेनकाब करने के लिए ही अबू जुबैर के कविता लिखी थी , लेकिन जब सन 610 में अबू जुबैर की मौत हुई तो मुहम्मद ने अपनी किताब को अल्लाह की किताब के नाम से प्रकट कर दिया .इसी लिए कुरान की सूरा बकरा 2 :1 में कुरान को “जालिक़ अल किताब – ذَٰلِكَ الْكِتَابُ “कहा गया है , जिसका अर्थ “वह किताब-That Book ” होता है ,मतलब यह कुरान नकली है।
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बृजनंदन शर्मा

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