पौराणिक और आर्य समाजी में अन्तर

images (13)

========================

बहुत से लोग हमसे पूछते हैं कि सनातनी पौराणिक हिन्दू और एक आर्य समाजी में क्या अंतर होता है ? तो उनके लिये हम ये मुख्य विचारधारा का अंतर यहाँ पर दिखा रहे हैं :-

(१) पौराणिक हिन्दू १८ पुराणों को वेद से ऊपर मानता है और आर्य समाजी वेद को ही ईश्वरीय ज्ञान मानता है ।

(२) पौराणिक हिन्दू ६०० वर्ष पुरानी तुलसीदास की रामचरितमानस को मानता है और आर्य समाजी १० लाख वर्ष पुरानी वाल्मिकी महारामायण को मानता है ।

(३) पौराणिक हिन्दू आचार्य बोपदेव की भागवतपुराण को मानता है और आर्य समाजी कृष्णद्वैपायन व्यासमुनि जी की विशुद्ध महाभारत को मानता है ।

(४) पौराणिक हिन्दू तर्क करने को पाप समझकर मनोनुकूल श्रद्धा को मानता है और आर्य समाजी दर्शनों की तर्कशैली के अनुकूल समीक्षा करके धर्म को जानने को सही मानता है ।

(५) पौराणिक हिन्दू पुराणों के आधार पर ईश्वर का अवतार होना मानता है और आर्य समाजी वेद के आधार पर ईश्वर का अवतार होने का सदा निषेध करता है ।

(६) पौराणिक हिन्दू धूप अगरबत्ति या ज्योति जगाकर सभी देवताओं की मूर्तीयों के सामने उनको प्रसन्न करने की चेष्टा करता है और आर्य समाजी मात्र ऋषियों की परम्परा के अनुसार आयुर्वैदिक औषधियों से युक्त यज्ञ ( अग्निहोत्र ) करके सभी जड़देवों को आहुति देकर तृप्त करता है ।

(७) पौराणिक हिन्दू कई प्रकार से मंदिरों में घूम घूम कर या घंटो किसी न किसी चालीसा का पाठ करने को ही ईश्वर पूजा मानता है और आर्य समाजी योगाभ्यास करके प्राणायाम आदि कर ध्यान के माध्यम से ईश्वर से जुड़ने को सही मानता है ।

(८) पौराणिक हिन्दू बस महापुरुषों के जयकारे लगाकर धर्म की इतिश्री मानता है और आर्य समाजी महापुरुषों की जीवन से वैदिक शिक्षाओं के द्वारा कर्मयोग का प्रचार करता है ।

(९) पौराणिक हिन्दू मात्र श्राद्ध, धूपबत्ति करना, मंदिर जाकर घंटीयाँ बजाने आदि को ही सही मानता है और आर्य समाजी वेद और ऋषियों के आर्ष ग्रंथों के अनुकूल समाज में शिक्षा फैलाने को सही मानता है ।

(१०) पौराणिक हिन्दू धर्मग्रंथ पढ़ने से कन्नी काटता है और आर्य समाजी अपने धर्मग्रंथों को पढ़ना धर्म रक्षा के लिये आवश्यक मानता है ।

(११) पौराणिक हिन्दू अपने सभी धर्मग्रंथों के नाम तक पूरी तरह से नहीं जानता और आर्य समाजी अपने धर्मग्रंथों के नाम और विषय भी अच्छे से जानता है और उनमें से कुछ तो पढ़ा भी होता है ।

(१२) पौराणिक हिन्दू अपने धर्म से इतर अन्य मत पंथों जैसे कि इस्लाम-ईसाईयत आदि को भी अपनी तरह ही श्रद्धा की दृष्टि से देखता है और आर्य समाजी कुरान-बाईबल आदि की अवैदिक तर्कशून्य बातों का खंडन कर सबको वैदिक धर्म में लाने की चेष्टा करता है ।

ये कुछ संक्षेप में मुख्य अंतर हमने आपको बताए जिससे कि लोग समझ लें कि पौराणिक मत और आर्य समाज की वैदिक विचारधारा में कितना अंतर है ।

Comment: